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हर वो औरत जो समाज के सेट स्टैंडर्ड से बहार निकल कर कुछ भी करती है, उसे बुरा माना जाता है। पिक्सी कट हो या बालों में हाइलाइट्स या कलर कराना सब संस्कारों के विरुद्ध माना जाता है। हमारे कल्चर में औरतों को एक सेट स्टैंडर्ड में ढालने की कोशिश करी जाती है, एक कदम भी उसके बाहर और बिगड़ा हुआ घोषित कर दिया जाता है।
मेरे लंबे बाल मुझे औरत नहीं बनाते। लड़कों के छोटे बाल और लड़कियों के बाल लंबे ही होंगे, ये सिर्फ़ जेंडर स्टरियोटाइप्स हैं। किसी को भी इन ढांचो में ढालने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। कई दफा ये स्टैंडर्ड तक ना पहुंच पाने से इंसेक्योरिटी महसूस होती है, और व्यक्ति खुद को बाकियों से कम समझने लगता है।
कुछ छोटे बालों के साथ कॉन्फिडेंट महसूस करते हैं और कुछ लंबे बालों के साथ। इसे एक नियम बनाने की जरूरत नहीं है । एकरूपता एक डाइवर्स देश में कैसे रह सकती है।
भले ज़्यादा पियर्सिंग हों, या फिर छोटे बाल, रिश्तेदार किसी चीज़ पर टोकने से नहीं चूकते। अगर खुद में कुछ बदलाव लाने से किसी व्यक्ति को खुशी मिलती है, तो परिवार को उसे पूरे दिल के साथ एक्सेप्ट करना चाहिए। ऐसी चीजों पर जजमेंट मिलने से परिवार में केवल अनबन बढ़ती है।
अगर कोई महिला आज़ादी से अपने जीवन के डिसीजंस ले रही है, तो वो सामाज को बहुत खटकती हैं। "बिगड़ी हुई, संस्कार भूल गई है क्या" और ना जाने क्या क्या उन औरतों को सुनना पड़ता है जो अपना जीवन अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जीती हैं।
हर औरत को लंबे बाल नहीं सुहाते, अगर कोई बदलाव की ओर बढ़ रहा हो, तो उसके पैर पीछे खींचने की जगह उसे सपोर्ट करना चाहिए। हम सभी की लाइफ चॉइसेस अलग होती हैं। ऐसे में हम एक दूसरे को हैरस्टाइल्स पर कैसे जज़ कर सकते हैं।
समाज के सेट स्टैंडर्ड और स्टरियटाइप्स से हट के अपने पसंद के काम करने और दूसरों को सपोर्ट करने की ज़रूरत है। वरना हमारे बीच की डाइवर्सिटी लुप्त हो जाएगी।
छोटे बालों से समाज की ये तकलीफें उसका पेट्रियार्की से प्यार दिखती हैं। छोटे बालों को भी उतना ही प्यार मिलना चाहिए जितना लंबे बालों को। एक दूसरे की चोइसेज का सम्मान करना ही हमें बेहतर समाज बनाएगा।
छोटे बालों में तो लड़का लगोगी।
मेरे लंबे बाल मुझे औरत नहीं बनाते। लड़कों के छोटे बाल और लड़कियों के बाल लंबे ही होंगे, ये सिर्फ़ जेंडर स्टरियोटाइप्स हैं। किसी को भी इन ढांचो में ढालने की ज़रूरत नहीं होनी चाहिए। कई दफा ये स्टैंडर्ड तक ना पहुंच पाने से इंसेक्योरिटी महसूस होती है, और व्यक्ति खुद को बाकियों से कम समझने लगता है।
कुछ छोटे बालों के साथ कॉन्फिडेंट महसूस करते हैं और कुछ लंबे बालों के साथ। इसे एक नियम बनाने की जरूरत नहीं है । एकरूपता एक डाइवर्स देश में कैसे रह सकती है।
परिवारों में सामूहिक जजमेंट
भले ज़्यादा पियर्सिंग हों, या फिर छोटे बाल, रिश्तेदार किसी चीज़ पर टोकने से नहीं चूकते। अगर खुद में कुछ बदलाव लाने से किसी व्यक्ति को खुशी मिलती है, तो परिवार को उसे पूरे दिल के साथ एक्सेप्ट करना चाहिए। ऐसी चीजों पर जजमेंट मिलने से परिवार में केवल अनबन बढ़ती है।
अगर कोई महिला आज़ादी से अपने जीवन के डिसीजंस ले रही है, तो वो सामाज को बहुत खटकती हैं। "बिगड़ी हुई, संस्कार भूल गई है क्या" और ना जाने क्या क्या उन औरतों को सुनना पड़ता है जो अपना जीवन अपनी मर्ज़ी के मुताबिक जीती हैं।
पछताओगी बाल छोटे करवाके।
हर औरत को लंबे बाल नहीं सुहाते, अगर कोई बदलाव की ओर बढ़ रहा हो, तो उसके पैर पीछे खींचने की जगह उसे सपोर्ट करना चाहिए। हम सभी की लाइफ चॉइसेस अलग होती हैं। ऐसे में हम एक दूसरे को हैरस्टाइल्स पर कैसे जज़ कर सकते हैं।
समाज के सेट स्टैंडर्ड और स्टरियटाइप्स से हट के अपने पसंद के काम करने और दूसरों को सपोर्ट करने की ज़रूरत है। वरना हमारे बीच की डाइवर्सिटी लुप्त हो जाएगी।
छोटे बालों से समाज की ये तकलीफें उसका पेट्रियार्की से प्यार दिखती हैं। छोटे बालों को भी उतना ही प्यार मिलना चाहिए जितना लंबे बालों को। एक दूसरे की चोइसेज का सम्मान करना ही हमें बेहतर समाज बनाएगा।