यह हर साल होने लग गया है। इन टॉपर्स को लोगों के भद्दे कमैंट्स और सर्कास्म से झूझना पड़ता है। सोचिये अगर दिव्यांशी जैन सोशल मीडिया चेक करे तो उसे अपना चेहरा और उसके नीचे लिखे कमैंट्स पढ़कर कैसा लगेगा? इससे उस लड़की के मानसिकता पर क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या उसका मनोबल नहीं टूटेगा ? क्या वो ये सब देखकर खुश होगी? या उसे लगेगा कि अच्छे अंक लाकर उसने कोई गलती कर दी है।
हमें ये भी सोचना चाहिए कि दिव्यांशी जैसे बच्चो को अगर इसी पुराने सिस्टम के नियमों का पालन करके अच्छे अंक लाने हैं तो इसमें उनका क्या कसूर है ?
इसके अलावा अगर लोगों के लिए इस बात को मानना मुश्किल है कि किसी छात्र के अंग्रेजी और इतिहास में भी १००/१०० अंक आये हैं तो उन्हें इंडियन एजुकेशन सिस्टम को दोष देना चाहिए जो बच्चों की बुद्धि और काबिलियत को सिर्फ मार्क्स से तोलता है। हम सभी जानते हैं कि १२वी में बोर्ड की परीक्षा किस तरह ली जाती है। अक्सर उत्तर पुस्तिकाएं ठीक से चेक नहीं होती हैं, परीक्षाओं के समय पर छात्रों पर ठीक से निगरानी नहीं राखी जाती और अंक सिर्फ उसे दिए जाते हैं जो ज़्यादा अच्छे से फैक्ट्स को याद कर पाता है। अक्सर बच्चे परीक्षा देने के कुछ दिनों में ही सब भूल जाते हैं और वो सब ज्ञान व्यर्थ हो जाता है।
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हमें ये भी सोचना चाहिए कि दिव्यांशी जैसे बच्चो को अगर इसी पुराने सिस्टम के नियमों का पालन करके अच्छे अंक लाने हैं तो इसमें उनका क्या कसूर है ? ये बच्चे दिन रात एक कर देते हैं ताकि इनका रिजल्ट अच्छा आये और इनके माता पिता को इन पर गर्व हो। दिव्यांशी जैसे बच्चे अवश्य ही प्रशंसा के हकदार हैं।
एक जागरूक नागरिक होने के नाते मुझे लगता है कि हमें इन टॉपर्स को इनकी मेहनत के लिए इनकी सराहना करनी चाहिए और साथ ही साथ हमारे एजुकेशन सिस्टम को बेहतर बनाने के तरीके सोचने चाहिए
और ज़ाहिर सी बात है की ये मार्क्स सिर्फ टॉपर्स को अच्छे कॉलेज में दाखिला लेने के लिए चाहिए होते हैं और उसके बाद आपके लाइफ स्किल्स और स्मार्टनेस ही आपको आगे लेकर जाती है। इसलिए एक जागरूक नागरिक होने के नाते मुझे लगता है कि हमें इन टॉपर्स को इनकी मेहनत के लिए इनकी सराहना करनी चाहिए और साथ ही साथ हमारे एजुकेशन सिस्टम को बेहतर बनाने के तरीके सोचने चाहिए.
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