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पित्रसत्तात्मक समाज(Patriarchal Society) की जड़े आज भी इतनी गहरी और रूढ़ियों से जुड़ी हुई है, कि जब वे महिलाओं को पूर्वनिधारित दिनचर्या मे देखते हैं तो अपनी पीड़ित सोच से प्रभावित होकर महिलाओं के आत्मसम्मान पर चोट ही नहीं बल्कि उन्हे आत्मग्लानि से भर देते है। जब महिलाएं घर के काम को करती हैं परिवार भी उनके काम को कर्तव्य की श्रेणी मे डाल कर उनके अधिकार को नकारते है। महिलाएं जब परिवार की जिम्मेदारी के चलते घर पर रहना और housewife होना चुनती हैं तो आर्थिक निर्भरता के साथ साथ उनके जीवन में अन्य ऐसे दबाब आते हैं जो उन्हे शोषित करते है। ऐसे कहीं कारण हैं जीने कारण आज भी समाज housewives को इज्जत नहीं देता जिसकी वो हकदार हैं :
Patriarchal Society: क्यों आज भी समाज Housewives को उतनी इज्जत नहीं देता?
1. अदृश्य श्रम (hidden work) को "काम" नहीं माना जाता
घर का काम चाहे वो बच्चों और बड़ों की देखरेख हो, खाना बनाने से लेकर सफाई तक ये काम, "काम" नहीं माने जाते और अदृश्य काम की श्रेणी में डाल दिए जाते है। अक्सर महिलाओं को इन काम के बदले आर्थिक मदद और स्वतंत्रता नहीं मिलती और ये काम समाज की दृष्टि मे अनदेखे ही रहते है।
2. .पित्रसत्ता (Patriarchy)की सोच: आर्थिक योगदान से सम्मान की प्राप्ति
पित्रसत्तात्मक समाज में अक्सर सम्मान उसे मिलता हैं जो कमाई(earning) करता हैं और housewives आर्थिक रूप से direct योगदान नहीं करती तो उन्हे सम्मान भी नहीं मिलता जिसकी वे हकदार है। housewives को आमतौर पर आर्थिक निर्भर माना जाता हैं इसलिए समाज उनके कार्य को सम्मान की ड्रिसती से नहीं देखता।
3. फैसले लेने का अधिकार न होना
महिलाएं जो घर का काम करती हैं उन्हें घर की Decision Making या बाहर की हो उन्हें लेने का अधिकार नहीं दिया जाना जाता। अक्सर घरों मे अनुभवी महिला को भी decision लेने और बोलने का अधिकार नहीं दिया जाता है। महिला को सीमित सोच और बाहरी दुनिया की समझ न होने का समझा जाता हैं और उनके महत्वपूर्ण बात और कथन को भी नकार दिया जाता है।
4. घर संभालना तो महिला का धर्म हैं
यह सोच महिलाओं को कौशल और निपुणता से ऊपर घर के काम को जरूरी और सही समझने पर विवश कर देती है। जब महिला घर संभालती हैं तो उसे उसका निजी धर्म या कर्तव्य समझाया जाता है। और जब बो इस कार्य के लिए अपना हक मांगती हैं तो पीड़ित सोच का सामना करती है।
5. स्वतंत्रता और पहचान की कमी
housewives पूरे दिन काम मे व्यस्त होने के कारण न स्वयं को समय देती है, न अपनी पहचान बना पाती है। अगर वे समय देना भी चाहे तो उन्हे स्वतंत्रता और अधिकार नहीं दिए जाते। उनके साथ ऐसा नकरात्मक व्यवहार उन्हें मानसिक रूप से कमजोर और उनके आत्मसम्मान को कम कर देता है।