Satyajit Ray Films Every Women Should Watch: जब भारत में ऐसी फिल्में बन रही थी जो मनोरंजन एवं फेंटेसी से परिपूर्ण थी उसी दौर में पश्चिम बंगाल के एक ऐसे निर्देशक सामने आए जिन्होंने आम जीवन के संघर्षों और परिस्थितियों को बड़े पर्दे पर दिखाने की हिम्मत कीI इन्हीं फिल्मों के कारण भारत को कई जगह पहचान मिली और सत्यजीत रे हमारे देश के प्रथम व्यक्तित्व रहे जिन्हें 1992 में अकादमी द्वारा 'हॉनरेरी अकादमी अवार्ड' यानी कि ऑस्कर प्राप्त हुआI सत्यजीत जी अपने दौड़ से कई आगे की सोच रखते थे जो उनके फिल्मों में भी झलकती थीI यह केवल आम जीवन को ही नहीं बल्कि एक महिला के आम जीवन की मुश्किलों को भी दर्शाती है और एक महिला के दृष्टिकोण को भी बखूबी प्रदर्शित करती हैI इसलिए हर महिला को सत्यजीत रे की यह कुछ फिल्में अवश्य देखनी चाहिए जो अत्यंत प्रेरणादायक हैI
कौन से हैं सत्यजीत रे की नारी सशक्तिकरण फ़िल्में?
1. पोथेर पांचाली
पोथेर पांचाली सत्यजीत रे की पहली फिल्म है जो कि उनकी बेहतरीन 'द अपू ट्रिलॉजी' की प्रथम फिल्म हैI इस फिल्म में यदि हम किसी अहम किरदार की बात करें तो वह है सर्वजाया (करुणा बनर्जी)I जो केवल एक ग्रहणी नहीं बल्कि एक मां भी थीI जब उनके पति अपने गरीब परिवार की भूख मिटाने के लिए शहर काम करने जाते है तो सर्वजाया अपने बल पर पूरे परिवार को संभालती हैI यहां तक की इलाज और पैसे के अभाव के कारण उनकी बेटी और पति गुजर जाते हैंI अंतहीन वेदना के बावजूद भी वह अपना संसार चलाती रहती है और अपने बेटे को पढ़ने के लिए बाहर भेजती हैंI सर्वजाया उन सभी ग्रहणियों की छवि है जो तमाम दुख और मुश्किलों के बावजूद भी आत्मबल और आत्मविश्वास के साथ अपने घर को सींचती हैI
2. देवी
यह फिल्म बंगाल की 19वीं सदी की ग्रामीण अवस्था को दर्शाती है जहां पूरा इलाका आज भी आत्मविश्वास और पितृसत्तात्मकता की परछाई में डूबा हुआ हैI ऐसे समय में दयामयी (शर्मिला ठाकुर) की शादी उमा प्रसाद से होती है लेकिन उसके ससुराल में किसी कारणवश उमा प्रसाद के पिता दयामयी को देवी समझ लेते हैं और यह मान्यता स्थापित करते हैं कि दयामयी एक मनुष्य रूपी देवी है और अंधविश्वास के चलते पूरा गांव इस बात को मान लेता हैI यह फिल्म बड़े ही असाधारण तरीके से इस बात को दर्शाती है कि जहां औरत को देवी समझ कर पूजा की जा रही है, उन्हें फूलों की माला पहनाई जा रही है आज के समाज में वही फूलों की माला उनके लिए जंजीरें बन जाती हैI
3. चारुलता
रवींद्रनाथ ठाकुर के उपन्यास 'नष्टनीड़' पर आधारित यह फिल्म बंगाल के अमीर घर के साहब भूपति की पत्नी चारुलता (माधवी मुखर्जी) के जीवन को दर्शाती है कि जिनका अपने पति के साथ उमर और विचारों माय फासलों के कारण चारुलता खुद को अकेला पाती हैI तभी उसके जीवन में उनके देवर अमल आते है जिनके साथ उनके विचार भी मिलते हैं लेकिन हालातो के चलते वह अपने प्रेम को जाहिर नहीं कर पाती और अमल के चले जाने से वह अंदर से टूट जाती हैI पर फिर भी वह अपने पति का साथ देती है क्योंकि उनके पति को उनकी ज़रूरत हैI यह फिल्म दर्शाती है कि किस तरह औरतों को अपनी इच्छाओं और भावनाओं के साथ समझौता करना पड़ता है, अपनों की भलाई के लिएI
4. अरण्येर दिन रात्रि
लेखक सुनील गंगोपाध्याय की उपन्यास 'अरण्येर दिन रात्रि' की कहानी पर आधारित यह फिल्म चार दोस्तों के घूमने जाने की कहानी है जहां जाकर उन्हें जीवन की एक अलग ही छवि देखने को मिलती हैI वहां जाते ही उनमें से एक दोस्त आशिम की मुलाकात अपर्णा (शर्मिला ठाकुर) से होती है जो एक बहुत ही पढ़ी-लिखी और सुलझी औरत है उन दोनों के विचार जितने अलग थे उतने ही भिन्नI अपर्णा का जीवन को देखने का नजरिया और लोगों की पीड़ा को महसूस करने का नजरिया आशिम से बहुत ही अलग थाI जब वह अपने-अपने घर लौटने वाले थे तब आशिम और अपर्णा के बातचीत के दौरान अपर्णा को पता चलता है कि आशिम के नौकर की बीवी की हालत काफी बिगड़ी हुई है लेकिन यहां में मौज मस्ती करते वक्त किसी को भी इस बात की भनक नहीं हुईI उसकी महसूस करने की ताकत हमें यह दिखाती है कि हम अपने भले जीवन में इतने व्यस्त हो गए हैं कि दूसरों की, जरूरतमंदों की तकलीफ कि हमें खबर ही नहींI