Women And Finance: समाज में लंबे समय से चली आ रही एक धारणा है कि महिलाएं फाइनेंस में उतनी माहिर नहीं होतीं जितने पुरुष। "पैसा नहीं संभाल पाएंगी", "खर्चीली हैं", "निवेश करना नहीं समझतीं" - ये कुछ ऐसे वाक्य हैं जो अक्सर महिलाओं को सुनने पड़ते हैं। लेकिन क्या ये धारणाएं हकीकत से मेल खाती हैं? क्या महिलाएं वाकई फाइनेंस में पुरुषों से पीछे हैं? मेरा कहना है कि ये सोच पूरी तरह से गलत और पुरानी है। असल में, कई मामलों में महिलाएं फाइनेंस को पुरुषों से ज्यादा बेहतर तरीके से संभालती हैं।
ये कहां से आया?
इस गलतफहमी की जड़ें हमारे सामाजिक-आर्थिक संरचना में गहराई तक धंसी हैं। पारंपरिक रूप से, पैसा कमाना और संभालना पुरुषों का ही अधिकार माना जाता था। महिलाओं की जिम्मेदारी घर संभालने और घरेलू खर्च को चलाने तक सीमित थी। यही कारण है कि कई लोगों को आज भी लगता है कि महिलाएं निवेश, बचत, या वित्तीय प्रबंधन के बारे में नहीं जानतीं या उनमें वो क्षमता नहीं होती।
लेकिन आंकड़े झूठ नहीं बोलते
अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाएं वास्तव में पैसा बेहतर तरीके से संभालती हैं। उदाहरण के लिए, एक 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में महिलाओं की बचत पुरुषों के मुकाबले 5% ज़्यादा होती है। साथ ही, निवेश के मामले में भी महिलाएं ज़्यादा समझदारी दिखाती हैं। फिडेलिटी इन्वेस्टमेंट्स की एक रिपोर्ट बताती है कि महिलाएं आमतौर पर ज़्यादा डाइवर्सिफाइड पोर्टफोलियो बनाती हैं, जो जोखिम कम करता है और लंबे समय में बेहतर रिटर्न देता है।
क्यों महिलाएं बेहतर वित्त प्रबंधक हो सकती हैं?
(Why Can Women Be Better Money Managers?)
जोखिम उठाने की क्षमता: कई शोध बताते हैं कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं अधिक संतुलित जोखिम लेती हैं। वो सोच-समझकर, आंकड़ों का विश्लेषण कर वित्तीय निर्णय लेती हैं, जिससे बड़े नुकसान की आशंका कम होती है।
दीर्घकालीन सोच: लंबे समय के लक्ष्यों को ध्यान में रखकर निवेश करना, भविष्य की सुरक्षा को प्राथमिकता देना- ये महिलाओं की खासियत है। यही सोच वो बचत और निवेश में भी लागू करती हैं।
बजट प्रबंधन में माहिर: घर का खर्च संभालना, जरूरतों और उपलब्ध संसाधनों के बीच संतुलन बनाना, ये एक कला है जिसे औरतें बखूबी निभाती हैं। यही बजट प्रबंधन कौशल बड़े वित्तीय फैसलों में भी काम आता है।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता: सहानुभूति, संवेदनशीलता और समझदारी से रिश्तों को संभालने का हुनर, आर्थिक फैसलों में भी महिलाओं की मदद करता है। वो परिस्थितियों को तर्क और भावनाओं के मेल से आंकल कर फैसले लेती हैं।
समाज को चाहिए कि वह ये पुरानी धारणाएं तोड़े और महिलाओं की आर्थिक क्षमता को पहचाने। महिलाओं को वित्तीय मामलों में शामिल करना ज़रूरी है। उन्हें घर से निकलकर व्यापार करने, निवेश करने और आर्थिक रूप से स्वतंत्र बनने का हौसला बढ़ाना चाहिए। इसलिए, अगली बार जब कोई कहे कि "औरतें पैसा नहीं संभाल पातीं," तो उन्हें ये आंकड़े और सच्चाई बताएं। महिलाओं का आर्थिक सशक्तीकरण न सिर्फ़ उनके जीवन को बेहतर बनाएगा, बल्कि पूरे समाज को तरक्की की राह पर ले जाएगा। आइए, "पैसा, पुरुष और मिथक" के तिलिस्म को तोड़ें और महिलाओं को उनकी वित्तीय बुद्धिमता का हक़ दिलाएं।