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आज हमें 21वीं सदी की महिलाओं के तौर पर जो अधिकार और आज़ादी मिली हैं, वो उन महिलाओं की वजह से हैं जिन्होंने हमसे पहले बहुत संघर्ष किए। अबाला बोस ऐसी ही एक महिला थीं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन महिलाओं की स्थिति बेहतर करने में लगा दिया। खासकर उन्होंने विधवाओं की ज़रूरतों पर ध्यान दिया। समाज में एक नारीवादी के रूप में उनका योगदान बहुत खास रहा है और हमें इसे याद रखना चाहिए।
20वीं सदी की शुरुआत में अबाला बोस ने उठाई विधवाओं की पढ़ाई के लिए आवाज़
अबाला बोस और महिलाओं का शिक्षा का अधिकार
अबाला बोस ब्रह्मो समाज के प्रमुख नेता दुर्गामोहन दास की बेटी थीं, जो लड़कियों की उच्च शिक्षा के पक्षधर थे। इसी वजह से अबाला और उनकी बहनों को उच्च शिक्षा पाने का मौका मिला। अबाला कलकत्ता विश्वविद्यालय से मेडिकल की पढ़ाई करना चाहती थीं, लेकिन उस समय महिलाओं को वहां दाखिला नहीं दिया जाता था। इसलिए उन्होंने मद्रास यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की, जहां बाद में उन्हें "सर्टिफिकेट ऑफ ऑनर" से सम्मानित किया गया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद अबाला की शादी जगदीश चंद्र बोस से हुई, जो आगे चलकर रेडियो साइंस के जनक बने। उनके काम के सिलसिले में अबाला कई देशों में उनके साथ गईं। इस दौरान उन्हें समझ आया कि दुनिया की महिलाएं चाहे कहीं की भी हों, उनकी समस्याएं और संघर्ष काफी हद तक एक जैसे ही हैं।
"लेडी बोस" से बनी पहचान
अबाला बोस एक अग्रणी भारतीय नारीवादी थीं। उन्होंने अंग्रेज़ी पत्रिका 'Modern Review' में लिखा और तर्क दिया कि महिलाओं को बेहतर शिक्षा मिलनी चाहिए। 1916 में जब जगदीश चंद्र बोस को नाइटहुड की उपाधि मिली, तब अबाला बोस को भी "लेडी बोस" कहा जाने लगा।
भारत में विधवाओं की स्थिति सुधारने की दिशा में उनका योगदान
यूरोप से लौटने के बाद अबाला बोस ने ठान लिया कि वे महिलाओं की शिक्षा के लिए हरसंभव कोशिश करेंगी। उन्होंने भारत में मोंटेसरी शिक्षा प्रणाली को लोकप्रिय बनाया और 1919 में ब्राह्मो गर्ल्स स्कूल की शुरुआत की। यह साफ दिखता है कि अबाला अपने पिता के रास्ते पर चल रही थीं।
विधवाओं के लिए फंड जुटाना
अबाला बोस ने उस समय के समाज के प्रमुख लोगों के साथ मिलकर "नारी शिक्षा समिति" की स्थापना की। इस संस्था का मकसद महिलाओं की शिक्षा और विधवाओं के कल्याण के लिए फंड जुटाना था। अपने जीवनकाल में अबाला बोस ने ब्रिटिश बंगाल प्रांत में लगभग "88 प्राइमरी स्कूल" और "14 वयस्क शिक्षा केंद्र" शुरू किए।
जब वे महिला शिक्षा संस्थान नहीं खोल रही होती थीं, तब वे गरीब और परिवार से निकाली गई विधवाओं के लिए पुनर्वास और कौशल प्रशिक्षण केंद्र स्थापित कर रही होती थीं। अबाला बोस चाहती थीं कि विधवाओं को जीवन में एक नया मौका मिले। उन्होंने "विद्यासागर बाणी भवन", "महिला शिल्पा" और "बाणी भवन ट्रेनिंग स्कूल" जैसे संस्थान शुरू किए। 1952 में अपनी मृत्यु से पहले उन्होंने "सिस्टर निवेदिता वुमेन्स एजुकेशन फंड" और "साधना आश्रम" की स्थापना के लिए बड़ी धनराशि दान की थी।