The inspirational story of Sushma Tiwari: शीदपीपल के एक इंटरव्यू में, डॉ. सुषमा तिवारी ने सामाजिक प्रतिरोध के बावजूद फिजिक्स सीखने की अपनी महत्वाकांक्षा, आईआईटी कानपुर में अकेली महिला छात्र के रूप में अपने अनुभवों को याद किया। डॉ. सुषमा तिवारी, 83 वर्षीय, एक थ्योरिटिकल फिजिसिस्ट, माँ, और राष्ट्रभक्त, ने अपने करियर के दौरान इतिहास रचा। जब वह 21 वर्ष की थी, तो 1962 में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, कानपुर में प्रवेश करने वाली पहली महिला छात्र थी।
डॉ. सुषमा तिवारी, पहली महिला विद्यार्थी और शिक्षक!
सुषमा जी ने थ्योरेटिकल फिजिक्स में पीएचडी हासिल की और "सॉलिड स्टेट फिजिक्स और बैंड स्ट्रक्चर कैलकुलेशन" में विशेषज्ञ बनी। उन्होंने कई किताबें भी लिखी हैं और फिजिकल रिव्यू और फिजिका स्टेटस सॉलिडी, जैसे प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में अपनी रिसर्च प्रकाशित करी हैं। उन्हें स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से पोस्ट-डॉक्टरल फेलोशिप का ऑफर तक आया था, लेकिन उन्होंने इसे इनकार कर दिया।
जब उससे IIT कानपुर में आवेदन करने के कारण पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मेरे जीवन में जितने भी क्लासें रही हों, MSc BSc में, वह सभी मैं अकेली रही हूँ क्योंकि मैंने गणित लिया था और मेरे साथ की लड़कियाँ बायोलॉजी ले रही थीं ताकि वे MBBS के लिए जा सकें, लेकिन मैंने कभी वह नहीं चाहा, और इसलिए मैने मैथ्स और फिजिक्स चुना। वह सिर्फ IIT कानपुर में ही नहीं बल्कि, कानपुर के DAV कॉलेज में भी मैथ्स पड़ने वाली पहली महिला छात्रा थीं।
वीएसएसडी बॉयज कॉलेज (VSSD Boys College) में पहली महिला शिक्षक
डॉ. सुषमा तिवारी अपना समय टीचिंग और रिसर्च को समर्पित करना चाहती थी। वह वीएसएसडी कॉलेज में पहली महिला शिक्षक थी, लेकिन चयन समिति अध्यक्ष ने पूछा, "तुम इतनी कमजोर और पतली चिकनी लड़की हो, तुम छात्रों को कैसे नियंत्रित करोगी?" डॉ. तिवारी ने कहा, "ठीक है, आप मेरे साथ एक और व्यक्ति ले रहे हो, क्या आप गारंटी ले सकते हो कि वह मुझसे बेहतर तरीके से कक्षा को नियंत्रित कर सकेगा?"
डॉ. सुषमा तिवारी से जब पूछा गया कि, उनके माता पिता ने आईआईटी कानपुर में चयन होने पर कैसी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने बताया कि, जब वे 9 साल की थीं तब उनके पिता जी गुजर गए और मां ने हमेशा पढ़ाई को अधिक महत्व दिया है। सुषमा जी के पास केवल उनके लक्ष्य और महत्वाकांक्षाएँ ही थीं, जिनकी ओर उन्हें देखना था। उन्होंने कहां, "मैंने कभी भी इसके अलावा कुछ नहीं देखा, केवल इतना देखा कि एक लड़की होने के बावजूद मैं यह क्यों नहीं कर सकती? अगर लड़के कर सकते हैं तो मैं भी यह कर सकती हूँ।"
डॉ. सुष्मा तिवारी की जर्नी न सिर्फ हमें इंस्पायर करती है, बल्कि यह संदेश भी देती है कि महिलाओं को अपने शिक्षा, करियर, परिवार, और व्यक्तिगत जीवन के बारे में निर्णय लेना चाहिए।