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डॉ. रुक्मणी कृष्णमूर्ति भारत में फॉरेंसिक साइंस की एक क्रांतिकारी और प्रेरणादायक शख्सियत हैं। 1949 में नागपुर में जन्मीं, उन्होंने समाज की सोच और बंदिशों को तोड़ते हुए देश की पहली महिला फॉरेंसिक इन्वेस्टिगेटर बनने का इतिहास रचा। अपने करियर में उन्होंने बार-बार साबित किया कि औरतें क्या कुछ हासिल कर सकती हैं। कई सवालों और शक का सामना करने के बावजूद, वे अपने क्षेत्र की सबसे ऊँचाइयों तक पहुँचीं और एक मज़बूत मिसाल बनीं।
"फॉरेंसिक में औरत क्या करेगी?" : डॉ. रुक्मणी कृष्णमूर्ति ने बदल दिया भारत के क्राइम लैब्स का चेहरा
बैकग्राउंड और करियर की शुरुआत
डॉ. कृष्णमूर्ति का जन्म एक सरकारी अफ़सर और गृहिणी के घर छठे बच्चे के रूप में हुआ। उनके माता-पिता हमेशा उन्हें अपने सपनों को पूरा करने और समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित करते थे। एमएससी (एनालिटिकल केमिस्ट्री) पूरी करने के बाद उन्होंने 1974 में डायरेक्टरेट ऑफ फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्रीज़ (DFSL) जॉइन किया।
करियर की शुरुआत में वे लैब में अकेली महिला थीं और उन्हें कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा। पहले ही दिन कुछ सहकर्मियों ने सवाल किया, "एक महिला FSL में क्या करेगी?" लेकिन डॉ. कृष्णमूर्ति ने अपने काम और लगन से सबको जवाब दिया।
2002 में वे DFSL महाराष्ट्र की डायरेक्टर बनीं। इस दौरान उन्होंने कई अहम राष्ट्रीय मामलों जैसे नकली करेंसी की जांच में अधिकारियों का मार्गदर्शन किया।
बड़े मामलों की जांच
डॉ. कृष्णमूर्ति ने कई हाई-प्रोफाइल केस संभाले, जैसे 1970 के दशक में जोशी-अभ्यंकर सीरियल किलिंग्स, 1976 की महाराष्ट्र ट्रेन आग और 1993 के मुंबई ब्लास्ट। मुंबई ब्लास्ट की जांच में उनकी शानदार भूमिका के बाद उन्हें इंटरपोल लियोन में रिपोर्ट पर चर्चा के लिए बुलाया गया, जहाँ अंतरराष्ट्रीय फॉरेंसिक वैज्ञानिकों ने उनकी सराहना की।
महिलाओं के लिए राह बनाई
FSL में उनकी मौजूदगी ने टीम को विविध बनाया। जब वे 2008 में सेवानिवृत्त हुईं, तब स्टाफ में 20% महिलाएँ थीं।
शिक्षा में योगदान
2009 से 2012 तक वे महाराष्ट्र के इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस की टेक्निकल एडवाइज़र रहीं। इस दौरान उन्होंने मुंबई, नागपुर और औरंगाबाद में तीन नए संस्थान स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।
आधुनिक फॉरेंसिक लैब्स
डॉ. कृष्णमूर्ति ने महाराष्ट्र सरकार के लिए छह वर्ल्ड-क्लास फॉरेंसिक लैब्स स्थापित किए। इनमें लाई डिटेक्शन, टेप ऑथेंटिकेशन, साइबर फॉरेंसिक, ब्रेन फिंगरप्रिंटिंग और DNA एनालिसिस जैसी आधुनिक तकनीकें शामिल थीं।
हेलिक एडवाइजरी और नई भूमिका
2011 में डॉ. कृष्णमूर्ति ने Helik Advisory नामक फॉरेंसिक लैब की स्थापना की। आज वे इसकी चेयरपर्सन और CEO हैं। साथ ही, वे नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी की एकेडमिक काउंसिल सदस्य हैं और सेशन कोर्ट, हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों को अहम मामलों में फॉरेंसिक सलाह देती हैं।
लेखन और शोध
डॉ. कृष्णमूर्ति एक सफल लेखिका और शोधकर्ता भी हैं। उन्होंने दो महत्वपूर्ण किताबें लिखी हैं – Introduction to Forensic Science in Crime Investigation और Forensic Biology। इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में 140 से अधिक रिसर्च पेपर प्रकाशित किए हैं।
सम्मान और पुरस्कार
फॉरेंसिक साइंस में उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें आठ राष्ट्रीय पुरस्कार मिले, जिनमें गृह मंत्रालय, भारत सरकार से "बेस्ट डायरेक्टर और लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड" भी शामिल है।
प्रेरणादायक शख्सियत
77 साल की उम्र में भी डॉ. कृष्णमूर्ति समाज की सेवा कर रही हैं और यह दिखाती हैं कि महिलाएँ क्या कुछ कर सकती हैं। उनका जुनून, उपलब्धियाँ और योगदान उन्हें भारत की सबसे सम्मानित सीनियर फॉरेंसिक वैज्ञानिकों में से एक बनाते हैं।