Surekha Yadav: भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर जिसने स्टेरियोटाइप्स को तोड़ा

जानिए भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव की कहानी, जिन्होंने साहस और संकल्प के साथ समाज के पुराने स्टेरियोटाइप्स को तोड़ा और इतिहास रचा।

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Sakshi Rai
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Photograph: (TheBetterIndia)

India first female train driver who broke stereotypes: जब कोई अपने सपनों पर भरोसा करता है और लोगों की पुरानी सोच से डरने के बजाय आगे बढ़ता है, तो वही कुछ नया कर दिखाता है। सुरेखा यादव भी उन्हीं में से एक हैं। एक साधारण किसान परिवार में जन्मी सुरेखा ने अपनी मेहनत, लगन और साहस से वो मुकाम हासिल किया, जो आज लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुका है। भारतीय रेल की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर बनकर सुरेखा ने यह साबित कर दिया कि कोई भी क्षेत्र केवल पुरुषों तक सीमित नहीं है। उनकी यात्रा संघर्ष, समर्पण और सफलता की अद्भुत कहानी है, जो हर सपने देखने वाले के लिए एक प्रेरणा है।

भारत की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर जिसने स्टेरियोटाइप्स को तोड़ा

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जब भी कोई लड़की किसी अलग या कठिन क्षेत्र में आगे बढ़ने की सोचती है, तो सबसे पहले उसे अपने घर से ही सवालों का सामना करना पड़ता है। परिवार वालों को चिंता होती है क्या यह सही फैसला है?, क्या यह सुरक्षित है?, क्या समाज इसे स्वीकार करेगा? ऐसे में परिवार को सबसे पहले समस्या दिखती है, समाधान बाद में नजर आता है।

सुरेखा यादव भी इसी रास्ते से गुज़रीं। एक साधारण किसान परिवार में जन्मी सुरेखा का जीवन भी आम लड़कियों जैसा था। पढ़ाई के बाद, जब नौकरी का समय आया, तो उन्होंने भारतीय रेलवे में असिस्टेंट ड्राइवर की परीक्षा के लिए आवेदन कर दिया। उन्हें भी नहीं पता था कि वह एक ऐसा कदम उठा रही हैं, जो इतिहास बना देगा।

जब सुरेखा परीक्षा देने गईं, तो वहां उन्होंने देखा कि पूरे हॉल में सिर्फ वही एक लड़की थीं। बाकी सभी उम्मीदवार लड़के थे। उस पल कोई भी घबरा सकता था, पीछे हट सकता था, लेकिन सुरेखा ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने सोचा कि अगर किसी को पहला कदम उठाना है, तो क्यों न वही बनें?

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आज जब हम सुरेखा की कहानी सुनते हैं, तो लगता है कि यह आसान रहा होगा, लेकिन उस समय एक लड़की का ट्रेन ड्राइवर बनना बहुत बड़ा चैलेंज था। समाज में यह माना जाता था कि ट्रेन चलाना "मर्दों" का काम है। सुरेखा ने इस सोच को गलत साबित किया। उन्होंने साबित किया कि काम करने की काबिलियत का कोई जेंडर नहीं होता। मेहनत, फोकस और हिम्मत ही असली पहचान बनाते हैं।

हर परिवार, हर समाज को किसी नए रास्ते पर चलते समय डर जरूर लगता है। लेकिन जब कोई अपने हौसले से आगे बढ़ता है, तो वही रास्ता आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए आसान बन जाता है। सुरेखा यादव ने यही किया। उन्होंने सिर्फ एक ट्रेन नहीं चलाई, बल्कि लाखों लड़कियों के सपनों को भी रास्ता दिखाया।

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