Gita Gopinath: क्या IMF की शीर्ष अर्थशास्त्री बनना भारतीय महिलाओं के लिए नई राह है?

क्या गीता गोपीनाथ का IMF की मुख्य अर्थशास्त्री बनना भारतीय महिलाओं के लिए एक नई दिशा का संकेत है? इस ऐतिहासिक उपलब्धि के पीछे की प्रेरक कहानी।

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Sakshi Rai
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Photograph: (NDTV)

Is becoming the Chief Economist of the IMF a new path for Indian women: जब किसी भारतीय महिला को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बड़ी ज़िम्मेदारी मिलती है, तो वो सिर्फ एक व्यक्तिगत सफलता नहीं होती वो पूरे देश की बेटियों के लिए एक नई उम्मीद होती है। गीता गोपीनाथ की नियुक्ति इंटरनेशनल मॉनेटरी फंड (IMF) की मुख्य अर्थशास्त्री के रूप में एक ऐसा ही ऐतिहासिक क्षण है। वे न केवल इस पद पर पहुंचने वाली पहली महिला बनीं, बल्कि इस मुकाम तक पहुंचने वाली दूसरी भारतीय भी हैं। उनका यह सफर हर उस लड़की के लिए प्रेरणा है, जो बड़े सपने देखती है और उन्हें साकार करने की हिम्मत रखती है।

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क्या IMF की शीर्ष अर्थशास्त्री बनना भारतीय महिलाओं के लिए नई राह है?

हमारे देश में जब कोई लड़की पढ़ाई में तेज होती है, तो परिवार को उस पर गर्व तो होता है, लेकिन जब वह बड़े सपने देखने लगती है, तब कई सवाल भी खड़े हो जाते हैं। क्या विदेश जाकर पढ़ाई करना ठीक रहेगा?, क्या इतनी बड़ी संस्था में वो अकेली कैसे काम करेगी?, घर-परिवार का क्या होगा? ऐसे सवाल हर मध्यम वर्गीय परिवार में उठते हैं। खासकर तब, जब लड़की किसी ऐसे क्षेत्र में जाना चाहती है जो अब तक पुरुषों से भरा रहा है, जैसे कि अर्थशास्त्र का अंतरराष्ट्रीय मंच।

गीता गोपीनाथ का IMF की मुख्य अर्थशास्त्री बनना सिर्फ एक पद हासिल करना नहीं था। यह उस सोच को तोड़ने का एक उदाहरण है, जिसमें अब तक माना जाता था कि लड़कियां केवल कुछ ही सीमित क्षेत्रों में अच्छा कर सकती हैं। उनके इस मुकाम तक पहुंचने के पीछे सालों की मेहनत, पढ़ाई, संघर्ष और आत्मविश्वास छिपा है और शायद कई ऐसे पल भी, जब उनके अपने घरवालों ने भी डर महसूस किया होगा।

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हर लड़की के सपनों की शुरुआत घर से होती है। वहीं से उसे या तो हौसला मिलता है या रुकावटें। जब गीता जैसे लोग सामने आते हैं, तो वो घरवालों को सोचने पर मजबूर करते हैं अगर वो कर सकती है, तो हमारी बेटी क्यों नहीं? यही सोच धीरे-धीरे बदलाव लाती है।

गीता गोपीनाथ का IMF जैसी संस्था में इतना बड़ा पद संभालना, बाकी लड़कियों और उनके परिवारों को ये यकीन दिलाता है कि अब महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं। ये बदलाव रातों-रात नहीं आया, लेकिन अब जब ये हो रहा है, तो ये दिखाता है कि रास्ता भले ही मुश्किल हो, पर नामुमकिन नहीं।

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