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Stories Of Strength: भारत की वो महिला क्रांतिकारी जिनका नाम शायद ही कोई जानता हो?

भारत की स्वतंत्रता संग्राम में कई वीरांगनाओं ने योगदान दिया लेकिन कुछ नाम इतिहास में खो गए। जानिए उन महिला क्रांतिकारियों की अनसुनी कहानियाँ जिन्होंने अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया लेकिन कभी चर्चा में नहीं आईं।

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Vedika Mishra
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Women freedom fighters of India

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Stories Of Strength: जब भी भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बात होती है तो कुछ गिने-चुने नाम ही सामने आते हैं: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, सरोजिनी नायडू या भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस जैसे पुरुष क्रांतिकारी लेकिन भारत के स्वतंत्रता संग्राम में ऐसी कई महिला योद्धाएं भी थीं जिनका नाम इतिहास की किताबों में कहीं खो गया। उनका संघर्ष उतना ही वीर था जितना कि पुरुष क्रांतिकारियों का। उन्होंने न केवल अंग्रेजों से लोहा लिया बल्कि समाज की रूढ़ियों को भी चुनौती दी। आइए, जानते हैं उन बहादुर महिलाओं के बारे में जिनका नाम शायद आपने कभी नहीं सुना होगा।

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Stories Of Strength: भारत की वो महिला क्रांतिकारी जिनका नाम शायद ही कोई जानता हो?

1. दुर्गा भाभी (दुर्गावती देवी) : भगत सिंह की सहयोगी और क्रांति की चिंगारी

दुर्गा भाभी का नाम स्वतंत्रता संग्राम के सबसे महत्वपूर्ण पलों से जुड़ा हुआ है। 1928 में जब भगत सिंह ने सांडर्स की हत्या कर दी थी तो उन्हें और राजगुरु को लाहौर से निकलने के लिए किसी की जरूरत थी। उस समय दुर्गा भाभी ने अपनी जान जोखिम में डालकर भगत सिंह को अपने "पति" के रूप में पेश किया और खुद उनकी "पत्नी" बनीं। इस बहादुरी के कारण भगत सिंह सुरक्षित बचकर निकल सके लेकिन दुर्गा भाभी केवल एक सहायक नहीं थीं उन्होंने खुद भी अंग्रेजों पर हमला किया। 1929 में, उन्होंने मुंबई में ब्रिटिश ऑफिसर को गोली मारी जो स्वतंत्रता सेनानियों को पकड़ने की योजना बना रहा था। वह चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह और बाकी क्रांतिकारियों के साथ सक्रिय रूप से काम कर रही थीं।

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2. भीकाजी कामा :पहली भारतीय महिला जिसने विदेशी धरती पर तिरंगा फहराया

भीकाजी कामा को भारत की आज़ादी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लड़ने वाली पहली महिला कहा जाता है। 1907 में, जब वह जर्मनी में थीं तब उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का झंडा फहराया जो आगे चलकर हमारे राष्ट्रीय ध्वज का आधार बना।

भीकाजी कामा ने यूरोप में भारतीय क्रांतिकारियों के लिए फंड जुटाया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई पत्र-पत्रिकाएं निकालीं। उनके योगदान को ब्रिटिश सरकार ने इतना खतरनाक माना कि उन्हें भारत लौटने तक की अनुमति नहीं दी गई।

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3. रानी गाइदिन्ल्यू :16 साल की नागा स्वतंत्रता सेनानी

जब भारत के उत्तर-पूर्वी हिस्से में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन चल रहा था तब रानी गाइदिन्ल्यू केवल 13 साल की थीं। मणिपुर और नागालैंड में अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ने वाली सबसे युवा क्रांतिकारियों में से एक थीं। 16 साल की उम्र में ही उन्हें ब्रिटिश सरकार ने गिरफ्तार कर लिया और उम्रकैद की सजा दी लेकिन जेल में रहते हुए भी उन्होंने विद्रोह जारी रखा। नेहरू ने उन्हें "रानी" की उपाधि दी और बाद में उन्हें रिहा किया गया।

4. कनकलता बरुआ: असम की 17 वर्षीय क्रांतिकारी

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1942 के "भारत छोड़ो आंदोलन" में असम की एक 17 साल की लड़की कनकलता बरुआ, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ उठ खड़ी हुईं। जब अंग्रेजों ने तिरंगा फहराने से रोका तो वह बिना डरे झंडा लेकर आगे बढ़ीं। अंग्रेजों ने उन पर गोली चला दी लेकिन वह गिरने के बावजूद झंडा नहीं गिरने दिया। कनकलता की शहादत ने पूरे असम में आज़ादी की लड़ाई को और तेज़ कर दिया।

5. मातंगिनी हाजरा: 73 साल की "गांधी बुढ़ी"

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पश्चिम बंगाल की मातंगिनी हाजरा 73 साल की थीं लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा लेने से इनकार नहीं किया। जब वह विरोध मार्च का नेतृत्व कर रही थीं तभी ब्रिटिश सैनिकों ने उन पर गोली चला दी।पहली गोली कंधे पर लगी, दूसरी गोली सिर पर लेकिन उन्होंने झंडा नहीं छोड़ा। वह अंत तक "वंदे मातरम" और "भारत माता की जय" के नारे लगाती रहीं।

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6. उषा मेहता:"सीक्रेट कांग्रेस रेडियो" की जननी

जब अंग्रेजों ने भारत छोड़ो आंदोलन को दबाने के लिए प्रेस और संचार के सभी साधनों पर प्रतिबंध लगा दिया तब उषा मेहता ने गुप्त रेडियो स्टेशन शुरू किया। 1942 में, उन्होंने "सीक्रेट कांग्रेस रेडियो" शुरू किया जो अंग्रेजों के खिलाफ सूचना फैलाने का सबसे बड़ा माध्यम बना।ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया लेकिन उनकी क्रांति ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में नई ऊर्जा भर दी।

इतिहास में नाम खो जाने का कारण?

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इतिहास पुरुषों के नामों से भरा पड़ा है लेकिन इन वीरांगनाओं का नाम शायद ही किसी किताब में प्रमुखता से लिखा गया। इसका कारण केवल ब्रिटिश सरकार नहीं थी बल्कि एक सोच भी थी जिसने महिलाओं के बलिदानों को हमेशा पीछे कर दिया।

लेकिन ये कहानियां आज भी ज़िंदा हैं...

भारत की इन बहादुर महिलाओं ने हमें सिखाया कि आज़ादी किसी एक वर्ग, जाति या लिंग की विरासत नहीं है। इन महिलाओं ने न केवल भारत को आज़ाद कराने में योगदान दिया बल्कि उन्होंने यह भी साबित किया कि साहस और बलिदान का कोई जेंडर नहीं होता।

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आज जब हम आज़ादी का जश्न मनाते हैं तो यह ज़रूरी है कि इन गुमनाम योद्धाओं को याद किया जाए जिनके बिना शायद हमारा इतिहास अधूरा होता।

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