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Stories of Strength: 1857 की क्रांति हो या आज़ादी की लड़ाई, भारत की महिलाओं ने हर मोर्चे पर साहस और पराक्रम का परिचय दिया। जब हम महिला योद्धाओं की बात करते हैं तो सबसे पहले झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम ज़हन में आता है लेकिन क्या आप जानते हैं कि सिर्फ़ लक्ष्मीबाई ही नहीं बल्कि कई और वीरांगनाओं ने भी अंग्रेज़ों के खिलाफ मोर्चा संभाला था? इन महिलाओं ने समाज की बेड़ियों को तोड़ा और अपने शौर्य से इतिहास रचा। आइए जानते हैं उन वीरांगनाओं की कहानियाँ, जिनके बिना आज़ादी की लड़ाई अधूरी रह जाती।
Stories of Strength: सिर्फ़ लक्ष्मीबाई ही नहीं, भारत की ये योद्धा महिलाएँ भी अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ी थीं
1. बेगम हजरत महल: अवध की शेरनी
अवध की बेगम हजरत महल ने 1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। जब अंग्रेज़ों ने अवध पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने अपने बेटे बिरजिस क़द्र को नवाब घोषित कर ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ बिगुल फूंका। उन्होंने लखनऊ को अंग्रेज़ों से मुक्त कराने के लिए बहादुरी से संघर्ष किया और महिलाओं को भी इस संग्राम का हिस्सा बनाया। उनकी सेना ने कई बार ब्रिटिश फौज को मात दी लेकिन अंततः उन्हें नेपाल में शरण लेनी पड़ी।
2. ऊदा देवी: वीरांगना जिन्होंने 32 ब्रिटिश सैनिकों को अकेले मार गिराया
ऊदा देवी दलित समाज से थीं और उन्होंने बेगम हजरत महल के नेतृत्व में अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वे एक कुशल शूटर थीं और 1857 के संग्राम में अपनी वीरता का परिचय दिया। उन्होंने लखनऊ में एक पेड़ पर चढ़कर छिपते हुए 32 ब्रिटिश सैनिकों को मार गिराया था। जब अंग्रेज़ों को यह एहसास हुआ कि इतने सैनिकों को मारने वाला कोई मर्द नहीं बल्कि एक महिला थी तो वे दंग रह गए।
3. झलकारी बाई: झाँसी की लक्ष्मीबाई की हमशक्ल और विश्वासपात्र योद्धा
झलकारी बाई को झाँसी की लक्ष्मीबाई की परछाई कहा जाता है। वे रानी लक्ष्मीबाई की सेना में एक अहम भूमिका निभाती थीं और जब झाँसी पर अंग्रेज़ों का हमला हुआ तो उन्होंने खुद को रानी बताकर ब्रिटिश सैनिकों को गुमराह कर दिया। उनकी इस बहादुरी ने झाँसी की असली रानी को युद्ध की तैयारी करने के लिए अधिक समय दिया। झलकारी बाई ने खुद को कुर्बान कर दिया लेकिन अंग्रेज़ों को अपनी बुद्धिमत्ता और साहस से चकमा दिया।
4. मातंगिनी हाजरा: गांधीवादी आंदोलन की वीरांगना
मातंगिनी हाजरा 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन की एक महत्वपूर्ण क्रांतिकारी थीं। उन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और आंदोलन का नेतृत्व किया। जब ब्रिटिश सैनिकों ने गोलियाँ चलाईं तब भी वे पीछे नहीं हटीं और “वंदे मातरम्” का नारा लगाते हुए शहीद हो गईं। उनकी शहादत ने बंगाल में आज़ादी की आग को और तीव्र कर दिया।
5. रानी अवंतीबाई: रामगढ़ की रानी जिन्होंने अंग्रेज़ों से आखिरी सांस तक लड़ा
रानी अवंतीबाई रामगढ़ राज्य की शासक थीं और 1857 के विद्रोह में उन्होंने अपने क्षेत्र को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए जंग छेड़ी। जब अंग्रेज़ों ने उनके राज्य को कब्ज़ाने की कोशिश की तो उन्होंने अपनी सेना के साथ जोरदार प्रतिरोध किया लेकिन जब उन्होंने देखा कि अंग्रेज़ों से घिर चुकी हैं और हार निश्चित है तो उन्होंने दुश्मनों के हाथों पड़ने की बजाय खुद को बलिदान कर दिया ।
6. किट्टूर रानी चेन्नम्मा: ब्रिटिश शासन के खिलाफ पहला सशस्त्र विद्रोह
कर्नाटक की वीरांगना किट्टूर रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेज़ों के डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स नीति का विरोध किया और अपने राज्य को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए सशस्त्र संघर्ष किया। वे पहली भारतीय महिला थीं जिन्होंने ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ युद्ध छेड़ा हालांकि उन्हें अंत में कैद कर लिया गया लेकिन उनकी बहादुरी ने कई क्रांतिकारियों को प्रेरित किया।
7. रानी गौंडली: आदिवासी योद्धा जिन्होंने जंगलों में अंग्रेज़ों को धूल चटाई
रानी गौंडली छत्तीसगढ़ की एक आदिवासी महिला योद्धा थीं जिन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध लड़ा। वे अपनी जनजातीय सेना के साथ जंगलों में छिपकर अंग्रेज़ों पर हमला करती थीं और उनके ठिकानों को तबाह कर देती थीं । उनकी रणनीति और जज़्बा अंग्रेज़ों के लिए बड़ी चुनौती बन गया था।
ये लड़ाइयां सिर्फ़ तलवार की नहीं हिम्मत और हौसले की थी
भारत की इन वीरांगनाओं ने यह साबित कर दिया कि देशभक्ति और संघर्ष के लिए सिर्फ़ पुरुष नहीं बल्कि महिलाएँ भी बढ़-चढ़कर आगे आ सकती हैं। इन्होंने न केवल समाज की रूढ़ियों को तोड़ा बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपनी अमिट छाप छोड़ी।
आज, हमें इन महान महिलाओं की कहानियों को केवल किताबों तक सीमित नहीं रखना चाहिए बल्कि अपनी नई पीढ़ी को इनके बारे में बताना चाहिए ताकि वे भी इस जज़्बे और संघर्ष से प्रेरणा ले सकें। आप इनमें से किस वीरांगना की कहानी से सबसे ज्यादा प्रेरित हुए? हमें जरूर बताएं!