Usha Mehta: देश की आजादी में अनगिनत लोगों ने अपना योगदान दिया है और हर किसी की अपनी एक कहानी है जो उस दौर को बया करती है। उन्हीं में से आज हम चर्चा करने वाले है प्रसिद्ध गांधीवादी और सीक्रेट कांग्रेस रेडियो की संचालक उषा मेहता की। इन्हीं की वजह से 1942 का आंदोलन देखते ही देखते जन–क्रांति बन गया था और ऐसा माहौल तैयार हुआ की पांच साल बाद ही अंग्रेज हुकूमत ने अपना बोरिया बिस्तर यहां से समेट लिया। मगर इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता की जाते जाते अंग्रेजों ने हमारे देश में ऐसी आग लगाई जो आज भी भयावह रूप ले लेती है।
Usha Mehta: 'भारत छोड़ो आंदोलन' के दौरान रेडियो प्रसारण का किया नेतृत्व
कौन थीं उषा मेहता
उषा मेहता ने भारत छोड़ो आंदोलन के समय ब्रिटिश के खिलाफ एक सीक्रेट रेडियो यानी कांग्रेस रेडियो की शुरुवात की। उषा मेहता का जन्म 25 मार्च 1920 में हुआ था और सूरत के पास के गांव सरस में रहती थी। 5 साल की उम्र से ही वे महात्मा गांधी जी के अहिंसा के मार्ग को फॉलो करती थी और 8 साल की उम्र में सन 1928 में उन्होंने साइमन आयोग के खिलाफ विद्रोह में हिस्सा लिया था।
कैसे आया इसका आइडिया
अगस्त 1942, की शाम कांग्रेस के कुछ युवा समर्थकों ने बॉम्बे में बैठक की लोगों का विचार था कि भारत छोड़ो आंदोलन की ये आग हल्की न पड़ने पाएं इसके लिए कुछ कदम तो उठने जरूरी थे। लेकिन इन लोगों का मानना था कि अखबार निकाल कर वो अपनी बात लोगों तक नहीं पहुंचा पाएंगे क्योंकि ब्रिटिश सरकार के राज में अखबार की पहुंच सीमित होगी। इसी बैठक में रेडियो की समझ रखने वाली उषा मेहता जैसी युवती भी मौजूद थी। इसी सब के दौरान उन्हें रेडियो के जरिए क्रांति की अलख जगाए रखने का आइडिया आया।
कौन-कौन था साथ
उषा मेहता को समझ थी की रेडियो तकनीकी तौर पर कैसे शुरू किया जा सकता है। इस खुविया रेडियो सर्विस को शुरू करने वाली उषा मेहता के साथ शामिल थे बाबूभाई ठक्कर, विट्ठलदास झवेरी और नरीमन अबराबाद प्रिंटर। प्रिंटर इंग्लैंड से रेडियो की टेक्नोलॉजी के बारे में सीखकर आए थे। उषा मेहता इसकी अनाउंसर बनाई गई और पुराने ट्रांसमीटर को जोड़ तोड़कर इस्तमाल किया गया और इस तरह अंग्रेजो के खिलाफ सीक्रेट रेडियो यानी कांग्रेस रेडियो की शुरुवात हुई।
जेल में काटी सजा
इस खुफिया रेडियो सर्विस में उषा मेहता ने 7 से 8 रेडियो स्टेशन बदले पर 12 नवंबर 1942, को उषा मेहता को एक रेडियो कार्यक्रम करते वक्त गिरफ्तार कर लिया गया। जिसमे उन्हें 4 साल की जेल हुई इस दौरान उनसे साथियों का नाम भी पूछा और बताने के बदले विदेश में पढ़ने का प्रस्ताव दिया मगर उन्होंने किसी तरह की कोई जानकारी नहीं दी। सन 1946 में जेल से रिहा कर दिया गया।
रिहाई के बाद
जेल से बाहर आने के बाद उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और पीएचडी पूरी की। भारत की आजादी के लिए उनका संघर्ष आखरी सांस तक चलता रहा। जब देश आजाद हुआ 15 अगस्त 1947 को तो वह महिला उत्थान और समाज का भला करने में लग गई। भारत सरकार द्वारा 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया और 11 अगस्त 2000 को उषा मेहता इस दुनिया को अलविदा कह गईं।