First Female Truck Mechanic: 55 वर्षीय शांति देवी भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक कैसे बनीं?

55 वर्षीय शांति देवी भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक बनीं, जिन्होंने समाज की रूढ़ियों को तोड़ा। जानिए उनके संघर्ष, जुनून और प्रेरणादायक सफर की कहानी।

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Sakshi Rai
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sha ti devi

Photograph: (sonalshah.in)

How Did 55 Year Old Shanti Devi Become India's First Female Truck Mechanic: आज भी जब मैकेनिक का जिक्र आता है, तो ज्यादातर लोग इसे पुरुषों का पेशा मानते हैं। लेकिन शांति देवी ने इस धारणा को तोड़ते हुए साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत और समर्पण से कोई भी सपना पूरा किया जा सकता है। 55 वर्षीय शांति देवी भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक हैं, जिन्होंने समाज की पारंपरिक सोच को बदलते हुए अपनी अलग पहचान बनाई।

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शांति देवी का यह सफर आसान नहीं था। एक ऐसे पेशे में कदम रखना, जहां महिलाओं की मौजूदगी लगभग न के बराबर थी, उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था। लेकिन उन्होंने अपने साहस और मेहनत के दम पर हर मुश्किल का सामना किया और अपने हुनर से खुद को साबित किया। आज वह न केवल ट्रक मैकेनिक के रूप में काम कर रही हैं, बल्कि कई महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।

 55 वर्षीय शांति देवी भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक कैसे बनीं?

भारत में जब भी किसी ट्रक मैकेनिक की बात होती है, तो दिमाग में एक पुरुष की छवि बनती है-तेल और ग्रीस में सने हाथ, भारी औजार पकड़े हुए और मशीनों के बीच काम करता हुआ। लेकिन शांति देवी ने इस सोच को तोड़कर इतिहास रच दिया। वह भारत की पहली महिला ट्रक मैकेनिक बनीं, जिन्होंने समाज की परंपरागत धारणाओं को चुनौती दी और बीते 20 वर्षों से इस पेशे में काम कर रही हैं।

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संघर्षों से भरी शुरुआत

शांति देवी का सफर आसान नहीं था। उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ था, जहाँ लड़कियों के लिए पारंपरिक घरेलू भूमिकाएँ तय थीं। जब उन्होंने एक ट्रक मैकेनिक बनने का फैसला किया, तो समाज ही नहीं, बल्कि उनके अपने परिवार ने भी इसका विरोध किया। लोगों ने कहा कि यह काम महिलाओं के बस की बात नहीं है। लेकिन शांति देवी का इरादा मजबूत था।

उन्होंने शुरुआत में छोटे-मोटे कामों से खुद को साबित करना शुरू किया-टायर बदलना, इंजन की साफ-सफाई करना और छोटे पार्ट्स की मरम्मत करना। लेकिन ट्रकों के बड़े इंजन और भारी औजारों को संभालना किसी चुनौती से कम नहीं था। उन्होंने धैर्य और मेहनत से हर तकनीक सीखी और धीरे-धीरे एक कुशल मैकेनिक बन गईं।

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परिवार और समाज का नजरिया

शांति देवी की राह में सबसे बड़ी चुनौती समाज की मानसिकता थी। कई बार उन्हें ताने सुनने पड़े, लोग उनके काम को हल्के में लेते थे, और कुछ तो उनका मजाक भी उड़ाते थे। लेकिन उन्होंने हर नकारात्मक टिप्पणी को नजरअंदाज कर अपने हुनर को निखारना जारी रखा।

धीरे-धीरे, जब उन्होंने अपनी काबिलियत साबित कर दी, तो वे ट्रक ड्राइवरों और अन्य मैकेनिकों के बीच सम्मान पाने लगीं। उनके परिवार ने भी यह देख लिया कि उनका काम सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि उनके आत्मनिर्भर बनने का रास्ता है। आज शांति देवी सिर्फ एक ट्रक मैकेनिक नहीं हैं, बल्कि एक मिसाल हैं। उन्होंने दिखा दिया कि कोई भी काम पुरुषों या महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं होता। अगर सच्ची लगन हो, तो हर बाधा को पार किया जा सकता है।

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उनकी यह कहानी उन सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जो किसी भी क्षेत्र में खुद को साबित करना चाहती हैं। शांति देवी ने न सिर्फ अपने परिवार को आर्थिक रूप से संभाला, बल्कि यह भी साबित किया कि सपनों को पूरा करने की कोई उम्र नहीं होती।

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