/hindi/media/media_files/DTbpoUx9IJI7QYRaRQqV.png)
Glamour or Exploitation? The Reality Behind Media’s Portrayal of Women: ‘हाइपरसेक्सुअलाइजेशन’ का मतलब है जब किसी महिला को सिर्फ उसकी यौन छवि के ज़रिए दिखाया जाता है, और उसके गुण, सोच या हुनर को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। आजकल फिल्मों, विज्ञापनों, सोशल मीडिया और म्यूज़िक वीडियो में जिस तरह से महिलाओं को पेश किया जा रहा है, क्या वो सिर्फ दिखावे और ग्लैमर तक सीमित है, या फिर ये उन्हें एक वस्तु की तरह देखने की चिंताजनक सोच को बढ़ावा दे रहा है?
Hypersexualization of Women: ग्लैमर या शोषण? जानें मीडिया में महिला छवि का सच
Hypersexualization है क्या?
हाइपरसेक्सुअलाइज़ेशन का अर्थ है बार-बार महिलाओं को ऐसे किरदारों या दृश्यों में दिखाना जहाँ उनका शरीर, पहनावा या हाव-भाव ही मुख्य आकर्षण बन जाए। अक्सर उन्हें टाइट कपड़ों, भड़काऊ मेकअप और अश्लील मुद्राओं में पेश किया जाता है। यह ट्रेंड अब इतनी बार दोहराया गया है कि यह सामान्य सा लगने लगा है, खासतौर पर युवाओं के लिए, जिन पर इसका सबसे ज़्यादा असर पड़ता है।
Media की भूमिका
फिल्मों और टीवी शोज़ में महिलाओं को अक्सर सिर्फ ग्लैमर का हिस्सा बनाकर दिखाया जाता है, जहाँ उनके किरदार की कोई खास भूमिका नहीं होती। विज्ञापनों में भी महिला शरीर को सामान बेचने के जरिये की तरह इस्तेमाल किया जाता है। सोशल मीडिया पर 'सेल्फी कल्चर' और 'इंफ्लुएंसर ट्रेंड्स' ने उन्हें आकर्षक दिखने की एक निरंतर दौड़ में धकेल दिया है।
पहचान सिर्फ लुक्स और शरीर तक सीमित
हाइपरसेक्सुअलाइज़ेशन का सबसे बड़ा असर यह है कि महिलाओं की पहचान सिर्फ उनके लुक्स और शरीर तक सीमित हो जाती है। इससे युवाओं में अवास्तविक सौंदर्य मानक, आत्मविश्वास की कमी और हीन भावना जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं। धीरे-धीरे यह सोच भी पनपती है कि महिला की अहमियत उसकी आकर्षकता में है, न कि उसकी प्रतिभा या व्यक्तित्व में।
महिलाओं की पसंद या मानसिक दबाव?
अक्सर कहा जाता है कि महिलाएं अपनी पसंद से ग्लैमरस कपड़े पहनती हैं या खुद को आकर्षक तरीके से दिखाती हैं। ये बात कुछ हद तक सही हो सकती है, लेकिन समाज और मीडिया ने उनकी पसंद को बहुत हद तक तय किया है। जब हर तरफ यही दिखाया जाए कि सफलता के लिए खूबसूरत दिखना ज़रूरी है, तो ये सोच एक तरह का मानसिक दबाव बन जाती है।
मीडिया की ज़िम्मेदारी
इस प्रवृत्ति को रोकने के लिए सबसे जरूरी है कि मीडिया अपनी जिम्मेदारी समझे। ब्रांड्स, फिल्ममेकर और कंटेंट क्रिएटर्स को महिलाओं को सिर्फ शरीर के तौर पर नहीं, बल्कि उनके विचारों और काबिलियत के साथ दिखाना चाहिए। साथ ही दर्शकों को भी जागरूक होकर ऐसे कंटेंट को बढ़ावा देना चाहिए जो महिलाओं की सम्मानजनक छवि पेश करे।