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Women And Society: महिलाओं के हंसने-बोलने को समाज किस प्रकार नियंत्रित करता है?

समाज में महिलाओं के हंसने और बोलने की स्वतंत्रता पर कई प्रकार के सामाजिक और सांस्कृतिक नियंत्रण लगाए जाते हैं। ये नियंत्रण महिलाओं के व्यक्तित्व और उनकी आत्म-अभिव्यक्ति पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

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Srishti Jha
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Women

Image credit: freepik

How does society control women's laughing and speaking?

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समाज में महिलाओं के हंसने और बोलने की स्वतंत्रता पर कई प्रकार के सामाजिक और सांस्कृतिक नियंत्रण लगाए जाते हैं। ये नियंत्रण महिलाओं के व्यक्तित्व और उनकी आत्म-अभिव्यक्ति पर गहरा प्रभाव डालते हैं। जोर से हंसने अथवा ज्यादा बोलने को समाज संस्कारहीनता की श्रेणी में रखता है। 

महिलाओं के हंसने-बोलने को समाज किस प्रकार नियंत्रित करता है?

परिवार और परवरिश

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परिवार को व्यक्ति का पहला पाठशाला कहते है, जहां उसे सामाजिक मानदंडों और परंपराओं का पालन करना सिखाया जाता है। कई परिवारों में लड़कियों को कम बोलने, ज्यादा न हंसने और सभ्य रहने की सीख दी जाती है। उनका व्यवहार नियंत्रित करने के लिए परिवार के सदस्य उन पर कड़ी निगरानी रखते हैं और अक्सर उन्हें शांत और संजीदा रहने की सलाह दी जाती है, क्योंकि यह अच्छे घर की लड़की होने का टैग होता हैं। 

सामाजिक मानदंड 

समाज यह अपेक्षा करता है कि महिलाएँ सार्वजनिक रूप से कम और धीरे बोलें, और उनका हंसना भी नियंत्रित हो। इन मानदंडों को बनाए रखने के लिए उन्हें 'संस्कारी' और 'मर्यादित' व्यवहार करने की सलाह दी जाती है। परिणामस्वरूप, महिलाओं को यह सिखाया जाता है कि तेज या खुलकर हंसना या बोलना अनुचित है। इन मानदंडों का पालन न करने पर महिलाओं को समाज की निंदा का सामना करना पड़ता है। ऐसे में महिलाएं अक्सर अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर होती हैं।

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दैनिक जीवन पर असर 

महिलाओं को इन नियमों का ध्यान हर जगह रखना पड़ता है। उनके पुरुष मित्र और रिश्तेदार भी उनसे यह अपेक्षा रखते हैं कि उन्हें उनसे सौम्य स्वभाव में ही बात करनी चाहिए। और अगर महिला अपने बोलने के तरीके में बदलाव करती है तो पुरुषों का तथाकथित "मेल इगो" हर्ट हो जाता है। ग्रामीण इलाकों में घर की बहुओं को आज भी खुल कर हसने की अनुमति समाज नहीं देता है।कार्यस्थलों पर भी महिलाओं के हंसने-बोलने को लेकर कई प्रकार के अनकहे नियम होते हैं, जिनका पालन न करने पर उन्हें करियर में बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार के नियम महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं और उनकी आवाज़ को दबाने का काम करते हैं।

सिनेमा और टेलिविजन का प्रभाव

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पुराने फिल्मों में महिलाओं की छवि को अक्सर ऐसे प्रस्तुत किया गया है जिससे समाज में यह धारणा बनती है कि महिलाएं केवल सौम्य और गंभीर हो सकती हैं। टेलिविजन शो और सिनेमा के अनुसार अगर आप एक "परफेक्ट वूमेन" बनना चाहती हैं, तो आपको इन नियमों कापालन करना होगा, क्योंकि लोग ऐसी महिलाओं को ही पसंद करते है। फिल्मों, टीवी शो, और विज्ञापनों में महिलाओं के हंसने-बोलने को लेकर बनाए गए स्टीरियोटाइप्स समाज पर गहरा प्रभाव डालते हैं। मीडिया के माध्यम से स्थापित ये छवियाँ समाज में महिलाओं के हंसने-बोलने की स्वतंत्रता को सीमित करती हैं।

बदलाव की ओर समाज 

आधुनिक समाज में महिलाओं की हंसने-बोलने की स्वतंत्रता को लेकर कुछ सकारात्मक परिवर्तन भी हुए हैं। फेमिनिज्म और महिलाओं के अधिकारों के आंदोलनों ने महिलाओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में आवाज उठाई है। इन आंदोलनों का प्रभाव है कि आज की महिलाएं अधिक आत्मविश्वास के साथ अपनी भावनाएं और विचार व्यक्त कर पा रही हैं। महिलाओं के हंसने-बोलने की स्वतंत्रता पर समाज द्वारा लगाए गए विभिन्न प्रकार के नियंत्रणों का उनके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इन नियंत्रणों को पहचानना और उन्हें समाप्त करने के लिए प्रयास करना आवश्यक है ताकि महिलाएं भी स्वतंत्रता पूर्वक अपनी भावनाएं और विचार व्यक्त कर सकें। 

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