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लड़कों के आंसुओं पर समाज क्यों करता है Judgement?

इश्यूज: लड़कों के रोने पर इतनी जजमेंट इसलिए होती है क्योंकि समाज ने लंबे समय से यह धारणा बना रखी है कि लड़के मजबूत, कठोर और भावनात्मक रूप से स्थिर होते हैं। इसे कमजोरी या मर्दानगी की कमी के रूप में देखा जाता है जब लड़के अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हैं।

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Trishala Singh
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Boys don't cry

(Credits: Pinterest)

Why Does Society Criticize Boys for Crying: लड़कों के रोने पर समाज में इतनी ज्यादा जजमेंट क्यों होती है, यह एक गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दा है। इस प्रकार की सोच और मानसिकता हमारे समाज में गहराई से जमी हुई है और इसके पीछे कई कारण और धारणा शामिल हैं। आइए, इस विषय को विस्तार से समझते हैं।

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लड़कों के आंसुओं पर समाज क्यों करता है Judgement?

1. पारंपरिक लिंग भूमिकाएं (Traditional Gender Roles)

हमारे समाज में पारंपरिक लिंग भूमिकाएं गहरी जमी हुई हैं। लड़कों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि वे मजबूत, साहसी और भावनात्मक रूप से मजबूत हों। उन्हें कमजोर दिखने या रोने की अनुमति नहीं दी जाती क्योंकि यह 'मर्दानगी' के खिलाफ माना जाता है। इस प्रकार की धारणाएं लड़कों पर दबाव डालती हैं और उन्हें अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर करती हैं।

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2. समाज की अपेक्षाएं (Society's Expectations)

समाज हमेशा लड़कों से यह अपेक्षा रखता है कि वे कठिन परिस्थितियों में भी मजबूत बने रहें। यदि कोई लड़का रोता है, तो उसे समाज द्वारा कमजोर और असमर्थ माना जाता है। यह अपेक्षाएं उन्हें अपनी सच्ची भावनाओं को छुपाने के लिए मजबूर करती हैं, जिससे वे अंदर ही अंदर घुटन महसूस करते हैं।

3. सांस्कृतिक मान्यताएं (Cultural Beliefs) 

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कई सांस्कृतिक मान्यताएं भी लड़कों के रोने पर नकारात्मक दृष्टिकोण को बढ़ावा देती हैं। कई समुदायों और परिवारों में लड़कों को यह सिखाया जाता है कि रोना लड़कियों का काम है और लड़कों को हमेशा मजबूत और भावनाहीन होना चाहिए। यह सोच उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने से रोकती है और वे मानसिक और भावनात्मक रूप से संघर्ष करने लगते हैं।

4. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव (Effects on Mental Health)

लड़कों के रोने पर इतनी जजमेंट होने के कारण उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। वे अपनी भावनाओं को दबाने और उन्हें व्यक्त न करने के कारण अंदर ही अंदर परेशान रहते हैं। यह स्थिति उन्हें अवसाद, तनाव और अन्य मानसिक समस्याओं की ओर धकेल सकती है। अगर समाज उन्हें रोने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की अनुमति देता, तो उनके मानसिक स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है।

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5. बदलाव की आवश्यकता (Need for a Change)

समाज को यह समझने की आवश्यकता है कि रोना एक सामान्य और प्राकृतिक प्रक्रिया है, चाहे वह लड़का हो या लड़की। हर व्यक्ति को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का अधिकार है और इसमें किसी भी प्रकार की जजमेंट नहीं होनी चाहिए। हमें अपने बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि भावनाओं को व्यक्त करना कमजोरी नहीं है, बल्कि यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।

6. शिक्षा और जागरूकता (Education and Awareness)

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इस मानसिकता को बदलने के लिए शिक्षा और जागरूकता महत्वपूर्ण हैं। हमें अपने बच्चों को शुरुआत से ही यह सिखाना चाहिए कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करना सामान्य है। स्कूलों और घरों में इस बारे में चर्चा होनी चाहिए और बच्चों को यह समझाने की कोशिश करनी चाहिए कि रोना कमजोरी का संकेत नहीं है।

लड़कों के रोने पर समाज में इतनी जजमेंट होना एक गंभीर समस्या है जिसे हमें समझना और बदलना होगा। पारंपरिक लिंग भूमिकाओं, समाज की अपेक्षाओं और सांस्कृतिक मान्यताओं ने लड़कों को अपनी भावनाओं को दबाने के लिए मजबूर कर दिया है। यह मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। हमें समाज में बदलाव लाने के लिए शिक्षा और जागरूकता बढ़ानी होगी ताकि हर व्यक्ति अपनी भावनाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त कर सके। केवल तब ही हम एक स्वस्थ और संतुलित समाज की ओर बढ़ सकते हैं, जहां सभी को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का समान अधिकार हो।

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