हमारे आसपास लोग इक्वलिटी की बात करते हैं। लड़का और लड़की के भेद को खत्म करने की बातें की जाती है। कहते हैं लड़को और लड़की को समानता के हक दिए जाते हैं, लेकिन क्या वाकई में यह सच है? क्या आज समाज में लड़के और लड़कियों को एक नजर से देखा जाता है? महिलाओं की एंपावरमेंट बढ़ाने के लिए कई सारे प्रयास किए जाते हैं। अगर यह प्रयास वास्तव में किए जा रहे हैं तो नजर क्यों नहीं आते? असल में हमें लड़के और लड़की के बीच का भेद दिखाई देता है लेकिन इसके बारे में कोई बात नहीं करता। यह गैप निर्भर करता है की हम अपनी सोसाइटी में लड़कों को किस तरह ट्रीट करते हैं। उन्हें किस तरह फ्यूचर के लिए तैयार करते हैं। इक्वलिटी की बात करते हुए हम एब भूल जाते हैं की एक लड़की और लड़की को अलग-अलग तरह के संस्कार दिए जाते हैं।
लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो
हमारे समाज में यदि कोई लड़की रोती है तो वह आम सी बात है। क्यों क्योंकि वह इसी विचार धारना से ग्रो की गयी है! इसी जगह कोई लड़का रोता है तो उसे बचपन से ही कहा जाता है की लड़कियों की तरह नहीं रोते है और जो सोसाइटी में डिफरेंस है लड़का और लड़की को लेकर वो यही से शुरू होता हैै।
आखिर रोने पर भी कोई लेबल क्यों ?
लड़की है तो रोना आम सी बात है और लड़का है तो वह नहीं रो सकता। सोसाइटी में इस बिहेवियर की वजह से लड़कियों को कमजोर साबित किया जाता है वही लड़कों को स्ट्रांग रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
रोना एक इमोशन है
किसी भी इंसान के रोने पर लेवल नहीं लगाया जा सकता। चाहे वह लड़का हो या लड़की हो। कोई भी रोना इमोशंस को साझा करता है। हर व्यक्ति के अलग-अलग इमोशन होते हैं, उसी तरह लड़कों के भी इमोशंस होते हैं यदि वह किसी बात से परेशान हैं और उनकी इच्छा होती है रोने की तब यह आम बात है। इस पर उनको यह कहना कि लड़कियों की तरह नहीं रोना चाहिए एक लेबल सेट करने जैसा है।
अपने बेटों को बचपन में लड़कियों की तरह नहीं रोते की जगह सिखाएं की दिल खोल कर रोना चाहिए जिससे तुम्हारे सारे दुख दर्द बाहर आ जाते हैं। लड़को से इमोशनलेस होने का बिहेवियर खत्म करना चाहिए। जिस तरह वह अपने इमोशंस को साझा करना चाहते हैं उन्हें करने दे।