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विधवा महिला मतलब अपशगुन, समाज की इतनी घटिया मानसिकता क्यों?

समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव और रूढ़िवादी मानसिकता सदियों से चली आ रही है। विधवा महिलाओं को लेकर समाज में जो धारणाएं हैं, वे विशेष रूप से अमानवीय और असंवेदनशील हैं।

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Srishti Jha
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Why Does Society Still Judge Widows

Why does society have such a negative mindset, considering widows as a bad omen? समाज में महिलाओं के प्रति भेदभाव और रूढ़िवादी मानसिकता सदियों से चली आ रही है। विधवा महिलाओं को लेकर समाज में जो धारणाएं हैं, वे विशेष रूप से अमानवीय और असंवेदनशील हैं। उन्हें अपशगुन मानने की सोच यह दर्शाती है कि समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी महिलाओं को उनके व्यक्तिगत अस्तित्व से अधिक उनके वैवाहिक संबंधों और पुरुषों से जुड़े होने पर मापता है। ऐसे में विधवा महिलाओं के प्रति घटिया मानसिकता और उन्हें अपशगुन मानने का प्रचलन क्यों है, यह समझना जरूरी है।

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विधवा महिला मतलब अपशगुन, समाज की इतनी घटिया मानसिकता क्यों?

1. पितृसत्तात्मक समाज की सोच

हमारा समाज पितृसत्तात्मक है, जहां पुरुषों को सर्वोच्चता दी जाती है। ऐसी व्यवस्था में एक महिला का अस्तित्व उसके पति के साथ ही जुड़ा होता है। जब एक महिला विधवा हो जाती है, तो समाज उसे इस दृष्टि से देखता है कि उसने अपने 'पुरुष' को खो दिया और अब वह अपने अस्तित्व में 'अधूरी' है। इस घटिया सोच की जड़ें पितृसत्ता में हैं, जहां महिलाओं को पुरुषों के बिना महत्वहीन समझा जाता है।

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2. धार्मिक और सांस्कृतिक धारणाएं

धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताएं भी विधवा महिलाओं के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण का कारण हैं। कुछ समाजों में माना जाता है कि अगर किसी महिला के पति की मृत्यु हो जाती है, तो वह किसी न किसी तरह इसके लिए जिम्मेदार है। यह सोच न केवल महिलाओं को दोषी ठहराती है, बल्कि उन्हें समाज में 'अपशगुन' के रूप में देखे जाने का आधार भी बनाती है। 

3. पुनर्विवाह और सामाजिक स्वतंत्रता का अभाव

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विधवा महिलाओं को समाज अक्सर दोयम दर्जे का मानता है और उनके पुनर्विवाह या सामान्य जीवन जीने के अधिकार को नजरअंदाज कर देता है। समाज की यह घटिया मानसिकता है कि विधवा महिला का जीवन समाप्त हो चुका है और उसे अब केवल त्याग और तपस्या के जीवन में ही रहना चाहिए। यह सोच महिलाओं की स्वतंत्रता और उनके अधिकारों पर गहरा आघात करती है।

4. सौभाग्य और अपशगुन की अवधारणा

भारतीय समाज में ‘सौभाग्य’ को एक बड़ी बात माना जाता है और इसमें पति का जीवित रहना मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। जब किसी महिला का पति नहीं रहता, तो उसे 'अपशगुन' मान लिया जाता है और समाज उसे हर शुभ अवसर से दूर रखने का प्रयास करता है। ऐसे अवसरों पर विधवा महिलाओं को अपमानित किया जाता है और उन्हें दोषपूर्ण नजर से देखा जाता है।

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5. शिक्षा और जागरूकता की कमी

विधवा महिलाओं के प्रति समाज की घटिया मानसिकता का एक बड़ा कारण शिक्षा और जागरूकता की कमी भी है। महिलाओं के अधिकारों, स्वतंत्रता और उनके महत्व को समझने की जागरूकता अभी भी बहुत सीमित है। समाज में जो रूढ़िवादी धारणाएं पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही हैं, वे बिना किसी तार्किकता के जारी हैं, क्योंकि अधिकांश लोग इसके पीछे के भेदभाव और अन्याय को समझ नहीं पाते हैं।

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