Society Problem: समाज में खूबसूरती का पैमाना सिर्फ गोरा रंग ही क्यों?

समाज में सुंदरता का मतलब सिर्फ गोरा रंग ही क्यों माना जाता है? जानिए कैसे पारिवारिक विचारों से लेकर सामाजिक मान्यताएँ तक यह धारणा गहराई से जुड़ी हुई है।

author-image
Sakshi Rai
New Update
Is Cooking a Must for Marriage (4)

Photograph: (indianexpress)

Why Is Fair Skin the Only Standard of Beauty in Society: हमारे समाज में खूबसूरती को लेकर एक अजीब धारणा बनी हुई है - अगर कोई लड़की गोरी है, तो उसे सुंदर मान लिया जाता है, और अगर उसकी त्वचा थोड़ी साँवली या गेहूँआ है, तो उसकी खूबसूरती पर सवाल उठने लगते हैं। यह सोच न केवल महिलाओं के आत्मविश्वास को प्रभावित करती है, बल्कि उनके जीवन के कई फैसलों पर भी असर डालती है।

Advertisment

समाज में खूबसूरती का पैमाना सिर्फ गोरा रंग ही क्यों?

हर घर में यह समस्या कहीं न कहीं देखने को मिलती है-कोई माँ अपनी बेटी के रंग को लेकर परेशान रहती है, कोई लड़की खुद को लेकर असहज महसूस करती है, तो कोई रिश्तों में ठुकराए जाने के डर से खुद को कम आंकने लगती है। लेकिन धीरे-धीरे जब परिवार अपनी बेटियों को समझाने लगते हैं कि खूबसूरती सिर्फ गोरे रंग से नहीं, बल्कि आत्मविश्वास, व्यक्तित्व और काबिलियत से होती है, तो चीजें बदलने लगती हैं। जब माता-पिता और समाज यह मानने लगेंगे कि हर त्वचा का रंग खूबसूरत होता है, तभी इस सोच को बदला जा सकता है।

रंग कभी भी किसी की काबिलियत, सफलता या खूबसूरती का पैमाना नहीं हो सकता। असली सुंदरता आत्मविश्वास, अच्छे विचारों और व्यक्तित्व से आती है। जब समाज इस सच्चाई को स्वीकार करेगा और हर रंग को समान नजर से देखेगा, तभी गोरेपन की यह धारणा टूटेगी और खूबसूरती का असली मतलब समझा जाएगा।

Advertisment

बचपन से ही भेदभाव की शुरुआत

यह समस्या किसी एक परिवार या जगह की नहीं है, बल्कि हमारे समाज की गहरी सोच में बसी हुई है। कई घरों में छोटी बच्चियों को बचपन से ही यह सुनने को मिलता है – "धूप में मत खेलो, रंग काला हो जाएगा" जब मेहमान आते हैं और गोरी बच्ची को "कितनी सुंदर है" कहकर सराहते हैं, और साँवली लड़की को सिर्फ उसके हुनर या स्वभाव की तारीफ पर सीमित कर देते हैं, तो यह फर्क महसूस होता है। बचपन में बोली गई ये बातें उनके दिमाग में बैठ जाती हैं और धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास कमजोर करने लगती हैं।

रिश्तों और शादी में गोरेपन का महत्व

Advertisment

लड़की के बड़े होते ही शादी के रिश्तों में भी यही सोच नजर आती है। कई परिवारों में पहली शर्त ही होती है – "लड़की गोरी होनी चाहिए" भले ही लड़की पढ़ाई-लिखाई में अच्छी हो, अच्छे संस्कार हों, लेकिन अगर उसकी त्वचा का रंग थोड़ा भी गहरा है, तो उसे कमतर आँका जाता है। समाज में कई लड़कियों को सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया जाता है क्योंकि वे सांवली हैं, भले ही वे बाकी हर चीज में बेहतरीन हों। यह सिर्फ उनके लिए नहीं, बल्कि उनके परिवार के लिए भी चिंता का कारण बन जाता है।

ब्यूटी प्रोडक्ट्स और मीडिया की भूमिका

टीवी, विज्ञापन और सोशल मीडिया ने भी इस धारणा को और मजबूत किया है। हर जगह गोरेपन को ही खूबसूरती का प्रतीक दिखाया जाता है। बड़े-बड़े ब्रांड्स गोरा बनाने वाली क्रीम का प्रचार करते हैं, जिससे यह संदेश जाता है कि अगर आपका रंग गोरा नहीं है, तो आपको खुद को बदलने की जरूरत है। फिल्मों में भी हीरोइन को आमतौर पर गोरे लुक में दिखाया जाता है, जिससे यह धारणा और गहरी होती जाती है।

Advertisment

आत्मविश्वास पर असर

इस सोच का सबसे बड़ा असर लड़कियों के आत्मविश्वास पर पड़ता है। जब वे बार-बार सुनती हैं कि सुंदरता का मतलब केवल गोरी त्वचा है, तो वे खुद को कमतर महसूस करने लगती हैं। कई बार वे अपने रंग को लेकर असुरक्षित हो जाती हैं और खुद को छिपाने लगती हैं। वे चाहकर भी खुलकर नहीं जी पातीं क्योंकि समाज उन्हें बार-बार उनके रंग की याद दिलाता रहता है।

Society Issues Challenges Faced by Women Problems Faced By women Society Criticize