तीसरे बच्चे पर भी मिलेगा मातृत्व अवकाश: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को दिया बड़ा अधिकार

सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व अवकाश को अब एक संवैधानिक अधिकार घोषित किया है, जो तीसरे बच्चे पर भी लागू होगा। जानिए इस ऐतिहासिक फैसले का महिलाओं के अधिकारों और कार्यस्थल की नीतियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा

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Vaishali Garg
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Supreme Court Declares Maternity Leave a Constitutional Right

Photograph: (freepik)

Supreme Court Declares Maternity Leave a Constitutional Rights: जब अधिकार गिने जाने लगें बच्चों की संख्या पर, तब ज़रूरी हो जाता है न्याय का आगे आना। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक ऐसा ऐतिहासिक फैसला सुनाया है जो हर कामकाजी महिला के लिए राहत की सांस जैसा है। अब मातृत्व अवकाश केवल सुविधा नहीं बल्कि महिलाओं का संवैधानिक अधिकार बन चुका है और ये अधिकार सिर्फ पहले या दूसरे बच्चे तक सीमित नहीं रहेगा।

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तीसरे बच्चे पर भी मिलेगा मातृत्व अवकाश: सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं को दिया बड़ा अधिकार

मातृत्व: एक ज़िम्मेदारी, एक अधिकार

हमारी सामाजिक संरचना में महिलाएं आज भी कई भूमिकाएं निभा रही हैं बेटी, पत्नी, मां और एक प्रोफेशनल। ऐसे में जब एक महिला मां बनती है, तो उसकी शारीरिक, मानसिक और सामाजिक ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। मातृत्व अवकाश उसी ज़रूरत को पूरा करता है। लेकिन अब तक कई राज्यों के नियमों में यह अवकाश सिर्फ दो बच्चों तक सीमित था, जिससे तीसरे बच्चे के लिए महिलाएं अधिकार से वंचित रह जाती थीं।

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उमादेवी का मामला बना बदलाव की वजह

तमिलनाडु की एक सरकारी शिक्षिका उमादेवी ने जब अपने तीसरे बच्चे के लिए मातृत्व अवकाश मांगा, तो उन्हें मना कर दिया गया। वजह यह थी कि राज्य की नीति के अनुसार, दो से अधिक जीवित बच्चों पर मातृत्व अवकाश नहीं दिया जाता। इस फैसले के खिलाफ जब उमादेवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं, तो कोर्ट ने सिर्फ एक महिला के नहीं, बल्कि पूरे देश की महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया।

सुप्रीम कोर्ट का दो टूक जवाब: मातृत्व अवकाश है मौलिक अधिकार

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जस्टिस अभय एस. ओका और उज्जल भुइयां की बेंच ने स्पष्ट किया कि मातृत्व अवकाश संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि एक महिला का मातृत्व उसके reproductive rights से जुड़ा है, और इस पर कोई संख्या आधारित शर्त नहीं लगाई जा सकती। यह फैसला सिर्फ कानून नहीं, एक विचारधारा को बदलने की दिशा में कदम है।

कानून से संवेदना तक: महिला गरिमा का सम्मान

इस फैसले ने मातृत्व को महज़ 'नीति' या 'सरकारी नियम' के फ्रेम से निकालकर उसे महिला की गरिमा, उसके आत्मसम्मान, और उसके जीवन के अधिकार से जोड़ दिया है। अदालत ने माना कि कोई भी महिला चाहे वह पहले ही दो बच्चों की मां हो उसके साथ मातृत्व के दौरान सम्मानजनक व्यवहार किया जाना चाहिए।

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अब बदलने होंगे सभी नियोक्ताओं के नियम

यह निर्णय उन सभी सरकारी और निजी संस्थानों के लिए एक स्पष्ट संदेश है अब आपको अपने नियम संविधान के अनुरूप बनाने होंगे। किसी महिला को तीसरे बच्चे के लिए अवकाश से वंचित करना न केवल अन्याय है, बल्कि अब यह संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन माना जाएगा।

एक नारी के निर्णय का सम्मान ही है सच्चा समावेशन

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भारत जैसे देश में जहां महिलाएं आज हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, वहां मातृत्व को उनकी कमजोरी नहीं, शक्ति समझा जाना चाहिए। यह फैसला बताता है कि अब समय आ गया है जब हम महिलाओं के निर्णयों का सम्मान करें चाहे वो मातृत्व अपनाने का हो या करियर को चुनने का।

अधिकारों की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए

महिलाओं के अधिकार बच्चों की संख्या पर निर्भर नहीं करने चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने स्पष्ट कर दिया है कि हर मां, हर महिला, हर कर्मचारी चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि से हो अब न्याय की हकदार है। यह निर्णय एक संकेत है कि देश अब महिलाओं के साथ खड़ा हो रहा है, न कि उनके रास्ते में खड़ा हो रहा है।

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