शिवाजी महाराज के शासन में चंद्रकोर बिंदी बनी थी स्वराज की निशानी

छत्रपति शिवाजी महाराज के समय में चंद्रकोर बिंदी मराठा पहचान, स्वराज और गर्व का प्रतीक थी। इसे पुरुष और महिलाएं दोनों ही अपने माथे पर लगाते थे।

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Rajveer Kaur
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The Significance Of Chandrakor Bindi Maharashtra

भारत की पारंपरिक सजावटों में चंद्रकोर बिंदी का खास महत्व है। मराठी महिलाओं द्वारा लगाई जाने वाली यह अर्धचंद्र आकार की बिंदी सिर्फ सजावट का हिस्सा नहीं, बल्कि मराठा गर्व, हिम्मत और पहचान का एक मजबूत प्रतीक है।

शिवाजी महाराज के शासन में चंद्रकोर बिंदी बनी थी स्वराज की निशानी

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छत्रपति शिवाजी महाराज के शासनकाल में चंद्रकोर बिंदी मराठा पहचान, स्वराज और गर्व का प्रतीक थी। इसे पुरुष और महिलाएं दोनों अपने माथे पर लगाते थे। यह उन लोगों की पहचान थी जो मजबूत मूल्यों में विश्वास रखते थे, स्वराज के लिए अडिग खड़े रहते थे, न्याय के लिए लड़ते थे और धर्म के सिद्धांतों के अनुसार जीवन जीते थे।

उस दौर की महिलाएं सिर्फ योद्धाओं की माँ, बेटी, पत्नी या बहन नहीं थीं। वो मराठा घरों की समान आधारशिला थीं और स्वराज की मुखर समर्थक भी। उन्होंने राजनीतिक और आर्थिक मामलों में सक्रिय भागीदारी निभाई और मुश्किल समय में अपने परिवारों को पूरे संकल्प के साथ संभाला। उन्होंने चंद्रकोर बिंदी को गर्व के साथ पहना, जो यह संदेश देती थी—"मैं जागरूक हूँ, मैं इस मिट्टी से जुड़ी हूँ, मैं हर परिस्थिति में डटी रहती हूँ।"

आध्यात्मिक मह्त्व 

यह बिंदी सिर्फ एक लाल अर्धचंद्र आकार का निशान नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा आध्यात्मिक महत्व छिपा है। पुराने समय में पुरुष और महिलाएं इसे तांबे के छोटे से उपकरण की मदद से कुमकुम में डुबाकर लगाते थे। यह बिंदी दोनों भौंहों के बीच अज्ञा चक्र पर लगाई जाती थी। अज्ञा चक्र को ध्यान, जागरूकता और सोचने-समझने की शक्ति से जोड़ा जाता है। यही चक्र हमें एकाग्र रहने, स्थिर रहने और ज़मीन से जुड़ा रहने की ताकत देता है।

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अर्धचंद्र खुद भीतर की बुद्धि और समझ का प्रतीक माना जाता है। बिंदी का यह चंद्र आकार चाँद और उसकी कलाओं से जुड़ा है, जो जीवन के चक्र और बदलते मन को दर्शाता है। यह आशा, नए आरंभ और बदलाव का प्रतीक भी है। माना जाता है कि यह शिव तत्व यानी भगवान शिव के स्वरूप को भी दर्शाता है।

चंद्रकोर बिंदी की विरासत को आगे बढ़ाना

आज भी महाराष्ट्र की महिलाएं गर्व से अपने माथे पर चंद्रकोर बिंदी लगाती हैं। गुढी पड़वा, गणेश चतुर्थी, कोजागिरी पूर्णिमा, अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी जैसे त्योहारों पर वे पारंपरिक परिधान जैसे पैठणी साड़ी या लुगड़ा पहनकर अपनी परंपराओं को सम्मान के साथ निभाती हैं।

मराठी गाना ‘शकी शकी’ सोशल मीडिया पर छाया हुआ है, और इसके साथ ही लोगों की रुचि पारंपरिक महाराष्ट्रीयन संस्कृति में भी काफी बढ़ गई है। अब लोग पैठणी साड़ी पहनना और माथे पर चंद्रकोर बिंदी सजाना बहुत पसंद कर रहे हैं।

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पहले चंद्रकोर बिंदी को विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक status के प्रतीक के रूप में पहनती थीं। लेकिन अब यह परंपरा उस सीमा से आगे बढ़ चुकी है। आज यह बिंदी लोग अपने वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना गर्व से पहनते हैं। इसका आध्यात्मिक महत्व, खासकर भगवान शिव के प्रति भक्ति का प्रतीक होने के कारण, इसे और भी लोकप्रिय बना रहा है।