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Photograph: (SheThePeople Copyright)
हम उन्हें हॉट फ्लैश, वजन में अचानक बदलाव और चिड़चिड़ापन महसूस करते हुए देखते हैं, और कई बार उन्हें जज भी कर लेते हैं। लेकिन पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज के दौरान महिलाएँ जिन अंदरूनी संघर्षों से गुजरती हैं, उन्हें अक्सर हम नज़रअंदाज़ कर देते हैं।
मेनोपॉज भले ही एक जैविक बदलाव हो, लेकिन इसका असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। थकान, मूड स्विंग्स, दिमागी धुंध (ब्रेन फॉग) और याददाश्त की समस्या जैसी कई छुपी हुई चुनौतियों का सामना इस उम्र की महिलाएँ करती हैं।
Gytree Survey: मेनोपॉज के दौरान 76% महिलाओं को मूड स्विंग्स की समस्या
गाइट्री, जो महिलाओं के लिए एक डिजिटल हेल्थ प्लेटफॉर्म और वेलनेस ब्रांड है, के हालिया सर्वे के अनुसार76% भारतीय महिलाओं को मूड में उतार-चढ़ाव का अनुभव होता है, जबकि करीब 50% महिलाओं ने ब्रेन फॉग और भूलने की समस्या होने की बात कही है।
ये आंकड़े उन परेशानियों को दिखाते हैं, जिन्हें कई महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं। मेनोपॉज भावनात्मक स्वास्थ्य और दिमागी कार्यक्षमता पर गहरा असर डालता है, लेकिन ये समस्याएं अक्सर आसपास के लोगों को दिखाई नहीं देतीं।
एक बातचीत, जिसके लिए समाज अभी तैयार नहीं
गाइट्री सर्वे में सामने आया कि थकान, चिंता, चिड़चिड़ापन और नींद की परेशानी मेनोपॉज के दौरान भारतीय महिलाओं में आम लक्षण हैं।
जब महिलाएं अपने 40 के दशक में प्रवेश करती हैं, तो एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन हार्मोन में बदलाव दिमाग के मूड को नियंत्रित करने वाले रसायनों को प्रभावित करता है। इसका नतीजा यह होता है कि कई महिलाएं मूड स्विंग्स और तनाव के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता महसूस करती हैं।
सबसे चिंता की बात यह है कि 71% महिलाओं को अपने मेनोपॉज के सफर में पूरा सहयोग नहीं मिलता, जिससे ये चुनौतियां और बढ़ जाती हैं।
गुरुग्राम की एक बैंकर हरलीन पन्नू कहती हैं, “मेरे परिवार को समझ नहीं आता कि मैं इतनी मूडी क्यों हो गई हूं। कई बार मुझे बहुत अकेला महसूस होता है, जैसे कोई नहीं समझता कि मैं किस दौर से गुजर रही हूं।”
यह कहानी भारत की अनगिनत महिलाओं की है, जहाँ सहानुभूति की कमी और स्वास्थ्य को लेकर सीमित जागरूकता के कारण महिलाएँ मेनोपॉज के मानसिक असर से अक्सर अकेले ही जूझती हैं।
गाइट्री सर्वे में 52% महिलाओं ने कहा कि उन्हें मेनोपॉज के लिए मदद की ज़रूरत है, लेकिन ज़्यादातर महिलाओं को यह नहीं पता कि मदद कैसे और कहाँ से ली जाए। कई महिलाएँ तो अपने लक्षणों को “ज़्यादा गंभीर नहीं” मानकर डॉक्टरों से बात करने से भी हिचकिचाती हैं।
थकान: सिर्फ शारीरिक नहीं
पेरिमेनोपॉज और मेनोपॉज के दौरान भारतीय महिलाएँ लगातार थकान महसूस करती हैं। यह सामान्य थकान नहीं होती, बल्कि शरीर और दिमाग दोनों को प्रभावित करती है।
हार्मोनल बदलाव, मेटाबॉलिज़्म में परिवर्तन और पोषण की कमी इस गहरी थकान के कारण बनते हैं, जिससे रोज़मर्रा की ज़िम्मेदारियाँ भी भारी लगने लगती हैं।
गाइट्री सर्वे के अनुसार, करीब 60% महिलाओं को नींद से जुड़ी समस्याएँ होती हैं, जो इस थकान को और बढ़ा देती हैं और कम ऊर्जा व घटती उत्पादकता का एक चक्र बना देती हैं।
काम और निजी जीवन पर असर
मेनोपॉज से जुड़ी थकान का असर पेशेवर और निजी जीवन दोनों पर पड़ता है। 85% से अधिक महिलाओं का मानना है कि कार्यस्थलों पर मेनोपॉज को लेकर बातचीत बहुत कम होती है।
मैसूरु की एक कॉर्पोरेट कर्मचारी कावेरी एन बताती हैं, “मुझे ध्यान लगाने में दिक्कत होती थी और दोपहर तक मैं पूरी तरह थक जाती थी। किसी ने कुछ कहा नहीं, लेकिन मुझे लगता था कि मेरे सहकर्मी मुझे जज कर रहे हैं और समझ नहीं पा रहे हैं।”
हालाँकि 40 साल से ऊपर की महिलाएँ अपने अनुभव और कौशल के कारण कार्यस्थलों के लिए एक बड़ी ताकत हो सकती हैं, फिर भी उन्हें भेदभाव और समझ की कमी का सामना करना पड़ता है।
हम क्या कर सकते हैं?
भारत में मेनोपॉज से जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए जागरूकता और ठोस कदम दोनों ज़रूरी हैं। पहला कदम है - घर, स्वास्थ्य संस्थानों और कार्यस्थलों पर मेनोपॉज को लेकर बातचीत को सामान्य बनाना।
बेहतर नींद, मेनोपॉज के शारीरिक और मानसिक असर को संभालने में अहम भूमिका निभाती है। मेलाटोनिन से भरपूर आहार, कैफीन कम करना और रिलैक्सेशन तकनीकों को अपनाना नींद की गुणवत्ता सुधार सकता है।
पोषण सिर्फ शरीर के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी उतना ही ज़रूरी है। पर्याप्त प्रोटीन के साथ अश्वगंधा और शतावरी जैसे एडैप्टोजेन्स मांसपेशियों को सहारा देते हैं और तनाव हार्मोन को संतुलित करने में मदद करते हैं।
बी-विटामिन, मैग्नीशियम और ओमेगा-3 से भरपूर साबुत आहार हार्मोनल बदलावों को संभालने और ऊर्जा बढ़ाने में सहायक होते हैं।
गाइट्री सर्वे क्या बताता है?
मेनोपॉज कोई छुपाने की चीज़ नहीं, बल्कि जीवन का एक स्वाभाविक चरण है। खुली बातचीत और सही संसाधनों तक पहुँच, कलंक को कम, सहानुभूति को बढ़ा और महिलाओं को बिना डर के मदद लेने के लिए सशक्त बना सकती है।
गाइट्री का सर्वे इस बात पर ज़ोर देता है कि बेहतर जागरूकता, सुलभ मेडिकल गाइडेंस और ठोस समाधान की सख्त ज़रूरत है, ताकि महिलाएँ इस दौर को मजबूती और आत्मविश्वास के साथ पार कर सकें।
अब समय है महिलाओं की बात सुनने, समझने और उनका साथ देने का क्योंकि उनका स्वास्थ्य, सम्मान और भलाई इससे कम की हक़दार नहीं है।पूरा सर्वे रिपोर्ट यहाँ पढ़ें।
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