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पेरी-मेनोपॉज़ और मेनोपॉज़ सिर्फ एक जैविक बदलाव नहीं हैं बल्कि एक महिला के भावनात्मक और सामाजिक जीवन को भी पूरी तरह बदल देते हैं। थकान, ब्रेन फ़ॉग, हॉट फ़्लशेज़, अचानक बढ़ता या बदलता वज़न, ये सब सिर्फ छोटी-छोटी परेशानियाँ नहीं हैं। ये रोज़मर्रा की वे चुनौतियाँ हैं जो आत्मविश्वास, रिश्तों और काम तीनों को हिला सकती हैं।
Wake Up Call: सर्वे में 71% महिलाएं बोलीं कि मेनोपॉज़ में हमें सपोर्ट नहीं मिलता
तो फिर असल ज़िंदगी में सपोर्ट अब भी पीछे क्यों है?
Gytree, जो महिलाओं के लिए एक डिजिटल हेल्थ प्लेटफ़ॉर्म और वेलनेस ब्रांड है, के हालिया सर्वे में पाया गया कि 71% भारतीय महिलाएं अपनी मेनोपॉज़ जर्नी में खुद को पूरी तरह सपोर्टेड महसूस नहीं करतीं।
मध्य आयु की भारतीय महिलाएं बताती हैं कि मानसिक स्वास्थ्य या बदलते शरीर की वजह से उन्हें परिवार, दोस्तों या सहकर्मियों से जज किया जाना पड़ता है।
यह 71% सिर्फ एक आँकड़ा नहीं बल्कि एक चेतावनी है।एक बड़ा स्वास्थ्य बदलाव, लेकिन स्वागत में स्टिग्मा जब महिलाएं 40 की उम्र पार करती हैं, तो थकान (पेरी)मेनोपॉज़ का सबसे आम और सबसे परेशान करने वाला लक्षण बनकर उभरती है लेकिन फिर भी इसे अक्सर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
Gytree के Survey on Menopause के अनुसार, 60% से अधिक महिलाओं ने इस जीवन-चरण के दौरान लगातार रहने वाली थकान की शिकायत की।
यह थकान सिर्फ थक जाने या सुस्ती जैसी नहीं होती। यह एक ऐसी लगातार रहने वाली थकावट है जो शरीर और दिमाग दोनों को ख़ाली कर देती है। इसके साथ नींद का टूटना, पोषण की कमी और मूड स्विंग्स भी आम होते हैं।
एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर गिरने पर शरीर की ऊर्जा बनाने की क्षमता बदल जाती है जिससे मेटाबॉलिज़्म धीमा होना, सूजन बढ़ना और रोज़मर्रा के तनावों से रिकवरी कम होना जैसी समस्याएँ पैदा होती हैं और फिर भी, महिलाओं से उम्मीद की जाती है कि वे इस “फेज़” से बस यूँ ही गुज़र जाएँ। लेकिन इसका असली असर उत्पादकता, रिश्तों और जीवन की गुणवत्ता आदि पर पड़ता है।
फिर भी, इस बदलाव के दौरान महिलाओं को सहारा देने वाली सपोर्ट सिस्टम बहुत कमजोर हैं। इन लक्षणों को अक्सर “ज्यादा गंभीर नहीं” मानकर न ऑफिस में कोई सुविधा दी जाती है और न ही घर पर उतनी समझ या सहानुभूति मिलती है।
Gytree के सर्वे में सामने आया कि 85% महिलाएं मानती हैं कि कार्यस्थलों पर मेनोपॉज़ को लेकर बातचीत की कमी है, जिसका सीधा असर उनकी प्रोडक्टिविटी और वेल-बीइंग पर पड़ता है।
अब समय है मेनोपॉज़ सपोर्ट को गंभीरता से लेने का
पेरीमेनोपॉज़ और मेनोपॉज़ से गुज़र रहीं महिलाएं एक ही समय में कई जिम्मेदारियाँ संभालती हैं जैसे करियर, परिवार और अपनी सेहत लेकिन इसी दौरान उनका शरीर एक ऊर्जा संकट से जूझ रहा होता है। यही वजह है कि सपोर्ट की ज़रूरत पहले से कहीं ज़्यादा है।
71% महिलाओं ने बताया कि इस सफर में उन्हें सपोर्ट नहीं मिलता, इसलिए अब घरों, कार्यस्थलों और हेल्थकेयर - हर जगह ज़्यादा जागरूकता और मिलकर सपोर्ट देने का समय है।
Gytree ने मेनोपॉज़ से जुड़ी थकान को संभालने के लिए कुछ ज़रूरी कदम बताए हैं
1. कार्यस्थल और सामाजिक सपोर्ट
मेनोपॉज़-फ्रेंडली नीतियों की ज़रूरत है जैसे फ्लेक्सिबल काम के घंटे, वेलनेस संसाधनों की सुविधा और जागरूकता कार्यक्रम।
2. प्रोटीन और न्यूट्रिएंट सपोर्ट
एस्ट्रोजन कम होने से मसल्स और हड्डियों पर असर पड़ता है, इसलिए रोज़ाना पर्याप्त प्रोटीन बहुत ज़रूरी है। प्लांट-बेस्ड प्रोटीन, अश्वगंधा और शतावरी जैसे एडाप्टोज़न्स के साथ, तनाव हार्मोन को संतुलित करने में मदद कर सकता है।
3. बेहतर नींद की गुणवत्ता
मशरूम, अंडे और ओट्स जैसे मेलाटोनिन-समृद्ध खाद्य पदार्थ लेने से, साथ में डीप ब्रीदिंग और मेडिटेशन जैसे रिलैक्सेशन तरीकों से नींद बेहतर हो सकती है।
4. डाइट से हार्मोनल संतुलन
बी-विटामिन, मैग्नीशियम और ओमेगा-3 से भरपूर खाद्य पदार्थ हार्मोनल बदलाव को संभालने और ऊर्जा बढ़ाने में मदद करते हैं। आख़िरकार, महिलाओं को (पेरी)मेनोपॉज़ के दौरान सपोर्ट देना सिर्फ एक हेल्थ मुद्दा नहीं है; यह एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है जिसमें हमें स्टिग्मा प्रैक्टिकल कम करना है और पहले से सोचकर सही सपोर्ट देना है।
Gytree का सर्वे एक चेतावनी है, और उसके समाधान भी साफ़ दिखते हैं। जागरूकता, समझदारी और लगातार, व्यवहारिक सपोर्ट सब मिलकर ही महिलाओं की सेहत और सामाजिक बराबरी सुनिश्चित कर सकते हैं।
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