We Talk Menopause: महिलाओं की समस्याएं अब टैबू नहीं रहनी चाहिए

"मेनोपॉज को सहना हमें असाधारण नहीं बनाता। न ही यह हमें किसी तरह से कमतर बनाता है," Gytree और शीदपीपल की संस्थापक शैली चोपड़ा कहती हैं और मैं उनसे सहमत हूँ। हमें जो चाहिए वह यह है कि हमें देखा जाए, सुना जाए और समझा जाए।

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Gytree Meno Club
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The 'Ladies Problem' Should Not Be A Taboo Anymore: अगर आप 50 साल से ज़्यादा उम्र की महिला हैं, या कुछ मामलों में इससे कम भी, तो हो सकता है आपने एक प्राकृतिक शारीरिक प्रक्रिया का अनुभव किया हो जिसे मेनोपॉज़ कहा जाता है। यह हर महिला के जीवन का एक सामान्य हिस्सा है। हैरानी की बात है कि दुनिया की आधी से ज़्यादा महिलाएं इसे अनुभव करती हैं, फिर भी मेनोपॉज़ को आज भी एक वर्जित विषय माना जाता है। लेकिन ऐसा क्यों है? हम एक इतनी सामान्य और मानवीय प्रक्रिया पर खुलकर बात करने से क्यों हिचकिचाते हैं?

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'महिलाओं की समस्या' अब टैबू नहीं रहनी चाहिए

डॉ. हीथर करी, जो वुमन हेल्थ की स्पेशलिस्ट हैं, कहती हैं, "मेनोपॉज़ कोई डिज़ीज़ नहीं है जिसे ट्रीट किया जाए, ये तो लाइफ का एक नॉर्मल फेज़ है।" लेकिन जब मेनोपॉज़ शुरू होता है, तो इसके सिम्पटम्स और सोसाइटी का बिहेवियर हमें बहुत अलग महसूस कराता है। मेरे लिए ये चेंज 40 की एज में इंसोम्निया यानी नींद न आने से शुरू हुआ। फिर मूड स्विंग, वेट गेन और इरिटेशन जैसे साइन आए। जब मैंने देखा कि मेरी कंडीशन को लोग सीरियसली नहीं ले रहे, तब समझ आया कि मेनोपॉज़ को लेकर बहुत सारी मिसअंडरस्टैंडिंग्स हैं।

ये सिर्फ मेरी स्टोरी नहीं है। वर्ल्ड की करोड़ों महिलाएं इस फेज़ से गुजर रही हैं या आगे चलकर गुजरेंगी। लेकिन सैड ट्रुथ ये है कि मेनोपॉज़ पर बात बहुत कम होती है। इसे अक्सर इग्नोर कर दिया जाता है और सिर्फ धीमी-धीमी फुसफुसाहटों तक सीमित कर दिया जाता है। जबकि ये एक ऐसा टॉपिक है जिस पर ओपन होकर बात करना ज़रूरी है।

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मेनोपॉज को लेकर रहस्य

मेनोपॉज़ के इर्द-गिर्द एक हद तक रहस्य है। हमारे मॉडर्न, सूचना-संचालित समाज में भी, गलत जानकारी और कन्फ्यूजन फैली हुई है। इसके कई कारण हैं। यह एक कॉम्प्लेक्स मामला है, जो सोशल और कल्चरल टैबूज़ से भरा हुआ है, और यह गलतफहमियों और मिसइंटरप्रिटेशन का एक परफेक्ट स्टॉर्म बना देता है। और गहराई से देखें तो यह एक और बड़ी और सिस्टमेटिक प्रॉब्लम की तरफ इशारा करता है: हम सिर्फ रिप्रोडक्शन और फर्टिलिटी के नजरिए से ही महिलाओं के शरीर पर बात करना कंफर्टेबल समझते हैं।

सहानुभूति और समझ की पुकार

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हमें मेनोपॉज़ के प्रति अपना एटीट्यूड बदलने की ज़रूरत है। अब समय आ गया है कि हम चुप्पी तोड़ें और उस स्टिग्मा को हटाएं जो महिलाओं को चुपचाप सफर करने पर मजबूर करता है, जिससे वे अकेली और कभी-कभी हताश महसूस करती हैं। यह सिर्फ मेडिकल ट्रीटमेंट से जुड़ा मुद्दा नहीं है – इसके लिए इम्पैथी, अंडरस्टैंडिंग और सबसे ज़रूरी, ओपन कन्वर्सेशन की ज़रूरत है। मेनोपॉज़ को वह सीरियसनेस देना जिसकी यह हकदार है, दुनियाभर की अनगिनत महिलाओं के हेल्थ और वेलबीइंग में बड़ा बदलाव ला सकता है।

जागरूकता

हमें मेनोपॉज़ के समय प्रोटीन की ज़रूरत और शरीर में एनर्जी बनाए रखने के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए। मेनोपॉज़ एक आम शारीरिक बदलाव है जो महिलाओं के पीरियड्स के बंद होने का संकेत होता है। इस समय शरीर में हार्मोन बदलते हैं, खासकर एस्ट्रोजन कम हो जाता है। इससे हॉट फ्लैश, रात में पसीना, मूड में बदलाव और हड्डियों की कमजोरी जैसी तकलीफें हो सकती हैं। ऐसे समय में सही खाना और खासकर प्रोटीन लेना बहुत ज़रूरी है ताकि शरीर को ताकत मिल सके और महिलाएं थकान से लड़ सकें।

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अंतिम शब्द

"मेनोपॉज़ को सहना हमें खास नहीं बनाता, और न ही इससे हमारी अहमियत कम होती है," शैली चोपड़ा, Gytree और SheThePeople की संस्थापक। मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं। हमें ज़रूरत है कि हमें देखा जाए, सुना जाए और समझा जाए। समाज को अब एक नया नज़रिया अपनाना चाहिए, जहाँ महिलाओं के प्राकृतिक बदलावों को भी वही सम्मान और स्वीकार्यता मिले.जैसा उनके बाकी योगदानों को मिलता है।

अब बात करनी होगी

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अब समय है कि हम मेनोपॉज़ को लेकर चुप्पी तोड़ें। इससे जुड़ी शर्म और झिझक को दूर करें और खुलकर बातचीत की शुरुआत करें। जब हम ऐसा करेंगे, तभी महिलाओं के जीवन चक्र को सही तरीके से समझा और सराहा जा सकेगा। और यही बदलाव आने वाली पीढ़ियों के लिए ज़रूरी है।

मेरा अनुभव

जब मैं डॉक्टरों के पास गई, तो मुझे कभी ऐसा नहीं लगा कि उन्होंने मुझे एक इंसान की तरह सुना। हर बार लगा जैसे मैं एक रूटीन केस हूं, जैसे हर महिला को वही सलाह दी जाती है बिना उसकी बात सुने।

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राहत कहाँ से मिली?

कई कोशिशों के बाद मुझे एक ऐसा क्लिनिक मिला, जहाँ अलग-अलग विशेषज्ञ डॉक्टर मिलकर काम करते हैं।.वहाँ आधुनिक और पारंपरिक इलाज को मिलाकर बात की जाती है। साथ ही, फेसबुक पर एक इंग्लिश महिलाओं का ग्रुप भी मेरे लिए सपोर्ट बन गया। इन्हीं दोनों ने मेरी सबसे ज़्यादा मदद की।

आइए, अब हम मेनोपॉज़ को लेकर.छिपाने के बजाय खुलकर समझने की दिशा में आगे बढ़ें। जितना ज़्यादा हम जानेंगे, उतनी बेहतर मदद हम महिलाओं को दे पाएंगे। अब समय है कि हम मेनोपॉज़ पर बातचीत शुरू करें।

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यह अनुभव और विचार रुपिंदर द्वारा साझा किए गए हैं।