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Single Mothers को समाज क्यों नहीं समझता अच्छी मां?

मातृत्व: समाज में सिंगल मदर्स को अक्सर अच्छी मां के रूप में नहीं देखा जाता, जो कि एक गलत धारणा है। सिंगल मदर्स अपने बच्चों को उतना ही प्यार और देखभाल दे सकती हैं जितना कि दो माता-पिता वाले परिवारों में होता है।

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Trishala Singh
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Single Mothers

(Credits: Pinterest)

Why Are Single Mothers Not Considered Good Mothers by Society: सिंगल मदर को अक्सर समाज में अच्छी माँ के रूप में नहीं माना जाता है और इसके पीछे कई सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं। ये धारणाएँ समाज में गहरे जड़ें जमाए हुए पारंपरिक मानदंडों और रूढ़ियों का परिणाम हैं। आइए, इन कारणों पर विस्तार से चर्चा करें।

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Single Mothers को समाज क्यों नहीं समझता अच्छी मां?

1. पारंपरिक मान्यताएँ और रूढ़ियाँ

भारतीय समाज पारंपरिक रूप से एक पितृसत्तात्मक संरचना में बंधा हुआ है, जहाँ परिवार को एक इकाई के रूप में एक माँ और एक पिता दोनों की उपस्थिति में देखा जाता है। इस ढांचे में, यह माना जाता है कि बच्चों के समुचित विकास के लिए दोनों माता-पिता का होना आवश्यक है। जब एक माँ अकेले अपने बच्चों की परवरिश करती है, तो समाज इसे उस पारंपरिक ढांचे से बाहर मानता है और इसलिए संदेह और आलोचना का सामना करना पड़ता है।

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2. आर्थिक चुनौतियाँ

अधिकांश सिंगल मदर आर्थिक रूप से चुनौतीपूर्ण स्थितियों का सामना करती हैं। एक माता-पिता के रूप में, उन पर परिवार की आर्थिक जिम्मेदारियों का बोझ होता है। आर्थिक तंगी के कारण वे बच्चों को वह सुविधाएं नहीं दे पातीं जो दो माता-पिता वाले परिवार में संभव होती हैं। समाज अक्सर इस आर्थिक कठिनाई को इस रूप में देखता है कि सिंगल मदर अपने बच्चों की अच्छी तरह से देखभाल नहीं कर पा रही हैं।

3. सामाजिक समर्थन की कमी

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सिंगल मदर को अक्सर समाज में समर्थन और सहायता की कमी का सामना करना पड़ता है। भारतीय समाज में, महिलाओं को अक्सर पारिवारिक और सामाजिक समर्थन की आवश्यकता होती है और जब वे अकेले होती हैं, तो यह समर्थन कम हो जाता है। सामाजिक समर्थन की कमी के कारण, वे तनाव और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का सामना कर सकती हैं, जो उनकी मां बनने की क्षमता को प्रभावित कर सकती हैं।

4. समाज की नजरें

समाज में सिंगल मदर के प्रति नजरिया आमतौर पर नकारात्मक होता है। लोग अक्सर यह मानते हैं कि यदि एक महिला अकेली है, तो इसमें उसकी ही गलती है या उसमें कोई कमी है। यह नजरिया उन पर सामाजिक दबाव डालता है और उन्हें हीन भावना का शिकार बना सकता है। यह भी देखा गया है कि सिंगल मदर के बच्चों को भी समाज में नकारात्मक नजर से देखा जाता है, जिससे बच्चों पर भी मानसिक दबाव पड़ता है।

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5. सांस्कृतिक धारणाएँ

भारतीय संस्कृति में विवाह और परिवार को अत्यधिक महत्व दिया जाता है। जब एक महिला बिना विवाह के या तलाक के बाद बच्चों की परवरिश करती है, तो इसे अस्वीकार्य माना जाता है। यह सांस्कृतिक धारणाएँ सिंगल मदर को समाज में अलग-थलग महसूस कराती हैं और उन्हें अच्छी माँ के रूप में नहीं स्वीकारा जाता।

6. शिक्षा और जागरूकता की कमी

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शिक्षा और जागरूकता की कमी भी सिंगल मदर के प्रति नकारात्मक धारणाओं का एक प्रमुख कारण है। समाज में अभी भी कई लोग हैं जो यह समझ नहीं पाते कि एक महिला अकेले भी अच्छी माँ बन सकती है। अगर समाज में शिक्षा और जागरूकता बढ़े, तो सिंगल मदर के प्रति नजरिया बदल सकता है और उन्हें अधिक स्वीकार्यता मिल सकती है।

7. बदलते समय और नजरिए

हालांकि, समय बदल रहा है और नई पीढ़ी की सोच में परिवर्तन आ रहा है। अब लोग यह समझने लगे हैं कि सिंगल मदर भी अपने बच्चों को एक अच्छी परवरिश दे सकती हैं। इसके अलावा, कई सिंगल मदर ने अपने जीवन में सफलता प्राप्त कर समाज में एक उदाहरण प्रस्तुत किया है। इन उदाहरणों ने समाज की सोच को थोड़ा-बहुत बदला है और यह संदेश दिया है कि सिंगल मदर भी समाज की मुख्यधारा में शामिल हो सकती हैं।

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समाज में सिंगल मदर के प्रति नकारात्मक धारणाएँ कई सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक कारणों का परिणाम हैं। पारंपरिक मान्यताएँ, आर्थिक चुनौतियाँ, सामाजिक समर्थन की कमी, समाज की नजरें, सांस्कृतिक धारणाएँ, और शिक्षा और जागरूकता की कमी इसके प्रमुख कारण हैं। हालांकि, बदलते समय और नजरिए के साथ, यह धारणाएँ धीरे-धीरे बदल रही हैं और समाज सिंगल मदर को भी अच्छी माँ के रूप में स्वीकार करने लगा है। सिंगल मदर को अच्छी माँ के रूप में मान्यता देने के लिए समाज में शिक्षा और जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि वे अपने बच्चों को एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण प्रदान कर सकें।

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