Shocking Reality: 1 in 5 Girls in India Still Forced into Child Marriage:भारत में बाल विवाह की दर में पिछले कुछ दशकों में काफी कमी आई है, लेकिन एक चौंकाने वाली हकीकत यह है कि अब भी एक-चौथाई से ज्यादा लड़कियां 18 साल से पहले शादी कर रही हैं। इस पर हाल ही में सामने आई जानकारी आपको झकझोर कर रख देगी।
भारत में बाल विवाह पर नया डेटा हैरान कर देने वाला है
बाल विवाह में कमी, फिर भी समस्या बरकरार
2006 में बाल विवाह रोकथाम अधिनियम (Prevention of Child Marriage Act) के लागू होने के बाद भारत में बाल विवाह की दर 47.4% से घटकर 23.3% (2019-21) हो गई है। केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री, अनुप्रण देवी के अनुसार, पिछले एक साल में लगभग 2 लाख बाल विवाह रोके गए हैं। हालांकि, इसके बावजूद भारत में अब भी पांच में से एक लड़की 18 साल की उम्र से पहले विवाह कर रही है। यह आंकड़ा भारत की सामाजिक चुनौतियों को दर्शाता है, जो अभी भी बाल विवाह की कुप्रथा से जूझ रही है।
बाल विवाह मुक्त भारत अभियान
हाल ही में सरकार ने बाल विवाह मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की है। इस अभियान का मुख्य उद्देश्य उन सात राज्यों पर ध्यान केंद्रित करना है, जिनमें बाल विवाह की दर अधिक है, जैसे कि पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, राजस्थान, त्रिपुरा, असम और आंध्र प्रदेश। इसके अलावा लगभग 300 जिलों पर भी फोकस किया जाएगा, जहाँ राष्ट्रीय औसत से अधिक बाल विवाह होते हैं। यह अभियान 2030 तक भारत को बाल विवाह मुक्त बनाने का लक्ष्य रखता है, और इसके तहत राज्यों और संघ शासित प्रदेशों से 2029 तक बाल विवाह की दर 5% से नीचे लाने के लिए विशेष कार्य योजनाएं तैयार करने का आग्रह किया गया है।
हर मिनट तीन लड़कियां बाल विवाह का शिकार होती हैं
"चाइल्ड फ्री मैरेज नेटवर्क" नामक एक गैर-लाभकारी संगठन ने एक अध्ययन किया है, जिसमें यह पता चला कि हर मिनट तीन लड़कियां बाल विवाह का शिकार हो रही हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया कि असल आंकड़े उन आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं जो रिपोर्ट किए गए हैं। भारतीय जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, भारत में हर साल 16 लाख बाल विवाह होते हैं।
क्या अब भी वही सोच है?
भारत में बाल विवाह की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, और इसे परिवार की समृद्धि का प्रतीक, बच्चों की सुरक्षा और सामाजिक कलंक से बचने का उपाय माना जाता है। इसे एक पवित्र और दिव्य कार्य के रूप में देखा जाता है। यह मानसिकता आज भी कई जगहों पर बनी हुई है, जो इस कुप्रथा को बढ़ावा देती है।
150 साल बाद भी स्थिति में कितना सुधार हुआ है?
1886 में रुक्माबाई, जो भारत की पहले महिला चिकित्सकों में से एक थीं, ने कहा था, “बाल विवाह की यह दुष्ट प्रथा ने मेरी जिंदगी की खुशियों को नष्ट कर दिया है। यह मुझे उन चीजों से दूर कर देती है, जिन्हें मैं सबसे ज्यादा महत्व देती हूं – अध्ययन और मानसिक विकास।” अब, 150 साल बाद, सवाल यह है कि हमने इस कुप्रथा को खत्म करने में कितना सुधार किया है?
यह आंकड़े और विचार हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि बाल विवाह जैसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए हमें और क्या कदम उठाने होंगे। सरकार की योजनाओं और सामाजिक जागरूकता को मिलाकर ही हम एक सशक्त और समृद्ध समाज की ओर बढ़ सकते हैं।