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Madras Divorce Case: अदालत ने निजी निकाय का खुला प्रमाणपत्र बताया अवैध

न्यूज़ : मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में खुला प्रमाणपत्र को लेकर एक फ़ैसला जारी किया है। मामले में याचिकाकर्ता ने निजी संस्थानों द्वारा जारी खुला प्रमाणपत्रों के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी।

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Prabha Joshi
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मद्रास हाई कोर्ट

मद्रास हाई कोर्ट ने निजी संकायों के खुला प्रमाणपत्र पर दिया फ़ैसला

Madras Divorce Case: मद्रास हाई कोर्ट ने शरीयत काउंसिल के ख़िलाफ़ एक फ़ैसला देते हुए कहा है कि मुस्लिम महिलाएं शरीयत काउंसिल का इस्तेमाल कर खुला के लिए आगे नहीं बढ़ सकतीं। कोर्ट ने कहा है कि शरीयत काउंसिल जैसे निजी निकायों का कोई अधिकार नहीं है कि वो शादी ख़त्म करने को लेकर कोई फ़ैसला करें। ये मामले कोर्ट के हैं, कोर्ट ही इन पर फ़ैसला करेगा। बता दें इस्लाम में खुला तलाक़ के समान है। खुला प्रक्रिया के तहत एक महिला अपने पति या शौहर से तलाक़ ले सकती है। इस स्थिति खुला के एवज में महिला को पति को कुछ संपत्ति वापस करनी पड़ती है।

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क्या है मामला

मद्रास कोर्ट के सामने एक मामला सामने आया जिसमें एक याचिकाकर्ता की और उसकी पत्नी की साल 2013 में शादी हुई। 2015 में उनका एक बच्चा हुआ। उस महिला ने साल 2016 में घर छोड़ दिया और खुला जारी किया। ये खुला का प्रमाणपत्र एक निजी शरीयत काउंसिल से जारी हुआ था। ऐसे में महिला के पति ने मद्रास कोर्ट में एक याचिका या रिट जारी कि जिसमें निजी संस्थान द्वारा जारी किए गए खुला प्रमाणपत्र पर रोक लगाना था। न्यायमूर्ति सी. सरवनन ने मामले में फ़ैसला देते हुए शरीयत काउंसिल 'तमिलनाडु तौहीद जमात' की तरफ़ से 2017 में जारी प्रमाणपत्र को रद्द कर दिया। मद्रास हाई कोर्ट ने कहा, "वे न्यायालय नहीं हैं और न ही विवादों के निपटारे के लिए मध्यस्थ हैं"।

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क्या रहा फ़ैसला

फ़ैसले की माने तो मद्रास उच्च न्यायालय ने बदीर सैयद बनाम केंद्र सरकार, 2017 मामले को अंतरिम रूप से स्थगित कर दिया है। इस फ़ैसले में प्रतिवादियों (काजियों) जैसी निजी संस्थानों का इस्तेमाल कर 'खुला' के जरिए विवाह ख़त्म करने को लेकर सत्यापित करने वाले प्रमाणपत्र जारी करने पर रोक लगा दी है। अदालत ने फैसला देते हुए कहा है कि एक मुस्लिम महिला के पास ये पूरा अधिकार है कि वो खुला के जरिए शादी समाप्त करने की बात रखे, पर इस अधिकार का इस्तेमाल महिला 'मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट, 1937' के तहत किसी फ़ैमिली कोर्ट के जरिए कर सकती है न कि किसी निजी संस्थान द्वारा। जमात के कुछ सदस्यों की एक स्वघोषित संस्था को इस तरह के मामलों के निपटान पर कोई अधिकार नहीं है। 

शादी से जुड़े इस मामले में याचिकाकर्ता ने विश्व मदन लोचन बनाम भारत संघ और अन्य (2014) पर हुए फ़ैसले का हवाला दिया। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मुग़ल या ब्रिटिश शासन के दौरान 'फ़तवा' की जो भी स्थिति हो, लेकिन स्वतंत्र भारत में इसके लिए कोई जगह नहीं है। 

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