Rajasthan: ख़ुद के दु:खों को न भूलकर भी मानव सेवा में आगे आने से बढ़कर और क्या बात होगी। इसकी मिसाल की पहचान बना राजस्थान। मिसाल राजस्थान के कोटा की विवेकानंद नगर की है। यहां एक महिला ने अपने पति की मृत्यु के उपरांत तुरंत नेत्रदान कराया। महिला का नाम पद्मा पारीक है। बात इतनी-सी नहीं है। ख़ुद नेत्रों से रहित पद्मा पारीक समझती हैं कि आंखों की रौशनी का होना कितना ज़रूरी है। यही कारण है उन्होंने इतना बड़ा स्टैंड लिया।
ख़ुद पर गौरव तब आता है जब काम बड़ा करो। पद्मा पारीक ने अपने पति चतुर्भुज पारीक के निधन पर यह ठान लिया कि वह उनकी आंखें दान कर किसी न किसी ज़रूरतमंद की मदद के प्रति भागीदार ज़रूर बनेंगी। ऐसे में उन्होंने देर नहीं की। ख़ुद अपने बच्चों प्रवीण और रंजना से यह बात साझा की। बच्चों ने अपनी मम्मी की बात की सराहना करते हुए तुरंत मेडिकल कॉलेज को सूचना दी। मेडिकल कॉलेज ने टीम भेजकर नेत्र संकलन में योगदान दिया।
मेडिकल कॉलेज के नेत्रदान सलाहकार भूपेंद्र सिंह हाडा, टेक्नीशियन हेमंत यादव और नेत्र रोग विभाग के डॉ. अंकित शाह ने नेत्र संकलित कर पद्मा पारीक के इस क़दम को सराहा। नेत्रदान सलाहकार भूपेंद्र सिंह ने बताया कि हर साल हजारों लोग अंधेपन से पीड़ित होते हैं, जबकि नेत्रदान करने वालों की संख्या बहुत कम है। उनकी माने तो भले ही आंखों में लेंस या चश्मा लगा रहा हो या आंखों का ऑपरेशन ही क्यों ना हुआ हो, किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के 6 से 8 घंटों के भीतर नेत्रदान किया जा सकता है। नेत्रदान से जुड़ी प्रक्रिया 10 से 15 मिनट में पूरी हो जाती है।
जीवनदान है नेत्रदान
बता दें, नेत्रदान का कार्य मानव सेवा से जुड़ा होता है। नेत्रदान कराने के बाद उस नेत्र का प्रयोग उन लोगों के लिए किया जाता है जो आंखों की दृष्टि खो चुके होते हैं। इसको सर्जरी के द्वारा पूरा किया जाता है। नेत्र मिलने के बाद व्यक्ति के आंखों की रोशनी लौट आती है जिससे वह रोजमर्रा का काम आसानी से कर लेता है। आंखों की रौशनी देना किसी को एक नया जीवन देने के समान है।
नेत्रदान में नहीं निकाली जाती पूरी आंख
आईमंत्रा की माने तो ज़्यादातर कॉर्निया को लिया जाता है। बाक़ी नेत्रदान के रूप में कॉर्निया, पलकें, अश्रु नलिका (टीयर डक्ट) और एमनियोटिक मेंबरेन जैसे आंखों से जुड़े भाग भी दान में दिए जा सकते हैं। ग़ौरतलब हो नेत्रदान के दौरान पूरी आंख नहीं निकाली जाती है।