Why Is SC Taking Suo Motu Action On Calcutta HC Order For Teen Girls: सुप्रीम कोर्ट ऑफ़ इंडिया ने कलकत्ता हाई कोर्ट के आदेश पर Suo Moto Action लिया है, जिसमें कहा गया है कि प्रत्येक किशोर लड़की को दो मिनट के आनंद के बजाय अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए। यह आदेश अक्टूबर 2023 में एक टीनएज लड़के को एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोप से बरी करते हुए पारित किया गया था। फैसला कल ज्यूडिशियल बेंच द्वारा सुनाया जाएगा, जिसमें जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस पंकज मिथल शामिल हैं।
टीन गर्ल्स के लिए कलकत्ता HC के आदेश पर SC का Suo Motu Action क्यों?
कलकत्ता हाई कोर्ट का विवादित फैसला
लाइवलॉ की रिपोर्ट के अनुसार, कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की के साथ यौन संबंध बनाने के लिए लड़के को यौन अपराधों से 'प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन ऑफेंस एक्ट' के तहत 20 साल जेल की सजा सुनाई। जस्टिस चित्त रंजन दाश और पार्थ सारथी सेन की बेंच ने किशोर लड़कियों और लड़कों के लिए कुछ सलाह दी।
लड़कियों को जारी की गई सलाह में कहा गया है कि किशोरियों को अपनी अखंडता, गरिमा और आत्म-सम्मान के अधिकार की रक्षा करनी चाहिए। उन्हें "सेल्फ -ट्रांसेडिंग जेंडर बैरियर " के ओवरऑल ग्रोथ के लिए प्रयास करना चाहिए। इसके अलावा, किशोरियों को अपने शरीर और अपनी निजता पर स्वायत्तता (ऑटोनोमी) के अधिकार की रक्षा करने में सक्षम होना चाहिए।
आदेश में यह भी कहा गया, "यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखें क्योंकि समाज की नजर में, जब वह दो मिनट के यौन सुख का आनंद लेने के लिए तैयार हो जाती है तो वह ढीली हो जाती है।"
टीनएज लड़कों को संबोधित करते हुए, आदेश में कहा गया, "एक युवा लड़की या महिला के उपरोक्त कर्तव्यों का सम्मान करना एक किशोर पुरुष का कर्तव्य है और उसे एक महिला, उसके आत्म-मूल्य, उसकी गरिमा, गोपनीयता का सम्मान करने के लिए अपने दिमाग को शिक्षित करना चाहिए।"
कलकत्ता हाई कोर्ट ने आगे किशोर लड़कियों और लड़कों की यौन इच्छाओं की बायोलॉजिकल एक्सप्लेनेशन के बारे में बात की। इसमें कहा गया है कि कामेच्छा किसी भी मानव शरीर के लिए सामान्य है, लेकिन यौन आग्रह नहीं। संबंधित लिंग के सेक्सुअल ग्लैंड तभी एक्टिव होते हैं जब उन्हें बाहर से उत्तेजित किया जाता है।
बेंच ने कहा, "टीनएजर्स में सेक्स सामान्य है, लेकिन यौन इच्छा या ऐसी इच्छा की उत्तेजना व्यक्ति के कुछ कार्यों पर निर्भर करती है, चाहे वह पुरुष हो या महिला। इसलिए, यौन इच्छाएं बिल्कुल भी सामान्य और मानक नहीं हैं।"
बहस और चर्चा
उच्च न्यायालय की राय ने समाज में यौन व्यवहार और लैंगिक मानदंडों पर व्यापक बहस और चर्चा छेड़ दी है। आलोचकों का तर्क है कि यह सलाह हानिकारक स्टीरियोटाइप को कायम रखती है और सामाजिक अपेक्षाओं का बोझ पूरी तरह से महिला किशोरों के कंधों पर डाल देती है। दूसरी ओर, समर्थकों का तर्क है कि निर्णय इंडिविजुअल ऑटोनोमी और सामाजिक मूल्यों के बीच नाजुक संतुलन को संबोधित करना चाहता है।
जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस पंकज मिथल की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए इसका शीर्षक "किशोरों की निजता का अधिकार: इसके कानूनी मामले में" रखा है। जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने मामला उठाया है, वह किशोरों की निजता के अधिकार से संबंधित मुद्दों पर कानूनी मिसाल कायम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस मामले के नतीजे का लीगल लैंडस्केप और युवा व्यक्तियों की ऑटोनोमी के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।