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बच्चों की परवरिश लिंग के आधार पर ना करें
ऐसी लड़कियों को घर के कामकाज करना या खाना बनाना ये सब नहीं सिखाया जाता। फिर यह सोचने वाली बात है कि क्या इस तरह की परवरिश बच्चों के लिए सही है? उनकी भावी या आने वाली जिंदगी पर इसका किस तरीके से असर पड़ेगा? किसी भी बच्चे की परवरिश चाहे वह लड़का हो या लड़की, लिंग के आधार पर नहीं होनी चाहिए। हर बच्चे को पढ़ने का, अपने काम स्वयं करने का, आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने का, अपना करियर खुद चुनने का, अपने फैसले खुद लेना, इन सब का पूरा अधिकार है।
घर के सभी कार्य करने आने चाहिए
लिंग के आधार पर इन अधिकारों या निर्णय लेने की क्षमता को उनसे न छीने। अपने बच्चों की परवरिश दूसरों द्वारा किए गए काम को निचले स्तर का दिखाकर बिल्कुल ना करें। हमें सिखाया जाता है कि घर के कामकाज करना या खाना बनाना यह सब या तो औरतों के कार्य या निचले स्तर के कार्य है। सच्चाई तो यह है कि ये सारे कार्य तो बेसिक लाइफ स्किल में आते हैं, चाहे वह राजा बेटा हो या पापा की परी, सभी को करना आना चाहिए। ताकि बच्चे छोटे-छोटे कामों के लिए किसी और पर आश्रित ना रहें और घर में किसी भी काम की पूरी जिम्मेदारी या बोझ एक इंसान के ऊपर न आ सके।
इस तरह की परवरिश बच्चों के लिए हानिकारक
अपने बच्चों को लाड-प्यार से बड़ा करना एक बात है परंतु उनकी हर जिद पूरी करना, उन्हें 'ना' न सुनने की आदत डालना, उनके हर ख्वाहिश को पूरा करना बिना किसी सवाल के, उनके लिए हानिकारक साबित हो सकता है। बेटा और बेटी की परवरिश को एक समान करने के लिए बेटियों को और जिद्दी बनाना यह सही तरीका नहीं है। चाहे बेटा हो या बेटी उसे दूसरों के साथ एडजस्ट करना, दूसरों की आइडेंटिटी, उनकी चॉइसेज, उनके निर्णयों की कद्र करना सिखाएं।
बेटा और बेटी एक समान है यह हम सभी मानते हैं। परंतु इसका यह मतलब नहीं कि उन्हें हम प्रिविलेज बनाएं। इसका सही अर्थ यह है कि हम उन्हें इतना काबिल बनाएं कि वे अपने फैसले स्वयं ले सके, सारा कार्य खुद कर सके, आर्थिक रूप से स्वतंत्र हो अपने पैरों पर खड़े हो सकें, दूसरों के साथ एडजस्ट कर सके और दूसरों का उतना ही सम्मान करें, जितने सम्मान की वे दूसरों से अपेक्षा रखते हैं।