Can Indian Women Choose Their Partner? भारतीय समाज में शादी एक ऐसी रसम है जिसमें लड़का और लड़की के अलावा बहुत सारे लोग शामिल होते हैं और अपनी राय देते हैं। मुख्य रूप से लड़कियों को शादी के लिए लड़का चुनने का अधिकार नहीं दिया जाता है। परिवार के लोग लड़की के लिए खुद पार्टनर ढूंढना पसंद करते हैं। अगर कोई लड़की अपने लिए खुद पार्टनर ढूंढ लेती है तो समाज को इस बात में आपत्ति हो जाती है। ऐसा समझा जाता है कि इस लड़की ने परिवार की इज्जत को मिट्टी में मिला दिया है। इसके साथ ही अगर लड़की अपनी कम्युनिटी से अलग लड़के को पसंद कर लेती है तो कई बार उसकी ऑनर किलिंग भी हो जाती है। चलिए जानते हैं कि आज के समय में भी लड़कियां अपनी पसंद के लड़के से शादी क्यों नहीं कर सकती?
क्यों आज भी भारतीय समाज में अपनी पसंद के लड़के से शादी करना मुश्किल है?
अरेंज मैरिज का प्रचलन
भारतीय समाज में अरेंज मैरिज का प्रचलन सदियों से चला आ रहा है जिसमें परिवार के लोग अपनी बेटी के लिए पार्टनर ढूंढने में बहुत अहम भूमिका निभाते हैं। हमारे समाज में लोग शादियों में लाखों रुपए खर्च कर देते हैं लेकिन बात जब लड़कियों की पढ़ाई और करियर की आती है तो पीछे हट जाते हैं। बहुत कम ऐसा होता है कि लड़कियों से पूछा जाता है कि उन्हें लड़का पसंद है या नहीं। लेकिन अब माहौल बहुत बदल रहा है। लड़का और लड़की को शादी से पहले बातचीत करने का और समझने का मौका मिलता है लेकिन पहले के समय में ऐसा होना बहुत ज्यादा कठिन था।
बहुत सारे लोग आज भी लड़की को पार्टनर खुद इसलिए नहीं ढूंढने देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि समाज में उनकी कोई इज्जत नहीं रहेगी। लोग उन्हें जज करेंगे या फिर उनकी बेटी की चरित्र पर सवाल उठाए जाएंगे। जो लड़कियां बोल्ड होती हैं या फिर अपने फैसले खुद लेती हैं तो उन्हें समाज में स्वीकार नहीं किया जाता है। उनके लिए समाज में अपने सोशल स्टेटस को मेंटेन करना बहुत जरूरी हो जाता है क्योंकि जो परिवार अरेंज मैरिज करते हैं, उन्हें बहुत ज्यादा शोभा मिलती है।
कास्ट और कम्युनिटी
इसके अलावा शादी में कास्ट और कम्युनिटी को भी बहुत ज्यादा महत्ता दी जाती है। अगर लड़की अपने लिए किसी अलग कास्ट या कम्युनिटी में से पार्टनर चुन लेती है तो भी बवाल हो जाता है और ऐसी शादियां नहीं होने दी जाती। ऐसे बहुत कम परिवार है जो ऐसे रिश्ते को स्वीकार करते हैं। हमारा समाज अभी भी पुरुष प्रधान है जिस वजह से महिलाओं के हाथ में पावर नहीं होती है और उन्हें अपने लिए फैसला लेने का अधिकार नहीं होता है। अगर हम ऐसे माहौल को बदलना चाहते हैं तो हमें अपनी सोच को बदलना होगा और महिलाओं के लिए ऐसा माहौल बनाना होगा जहां पर उन्हें अपने फैसलों के लिए दूसरों पर निर्भर ना होना पड़े या फिर परमिशन न लेनी पड़े।