How Arranged Marriage Potentially Harm Women? अरेंज मैरिज का चलन आज भी है। यह एक ऐसा तरीका है जिससे महिलाओं की प्रताड़ना की जा रही है। आपने अपनी माता जी से जरुर सुना होगा कि हमने शादी के बाद आपके पिता का चेहरा देखा था। इससे पहले तो हम एक दूसरे को जानते तक नहीं थे। उनकी तरफ से यह बात बहुत ही गर्व से कही जाती है क्योंकि उनका मानना है कि हम तो शादी से पहले एक दूसरे को जानते भी नहीं थे तब भी हमारा रिश्ता इतना लंबा चल गया। असलियत में देखा जाए तो रिश्ता लंबे चलने का कारण कंप्रोमाइज है जो हर समय हमारी माँ करती आ रही है। आज हम जानेंगे कि कैसे अरेंज मैरिज से महिलाओं की प्रताड़ना हो रही है।
Arrange Marriage में कैसे महिलाओं के साथ प्रताड़ना होती है?
महिला की चॉइस खत्म
अरेंज मैरिज में महिला की कोई चॉइस नहीं होती है। माता-पिता लड़की की शादी किसी अनजान व्यक्ति से करवा देते हैं। अपने होने वाले पार्टनर के बारे में महिला ना जानती होती है और ना ही उनके साथ कंफर्टेबल होती है। मां-बाप को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनके लिए समाज ज्यादा मायने रखता है। उन्हें लगता है कि सही उम्र पर अपनी जात के लड़के से शादी होना ज्यादा महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही लोगों को खुश करना उससे भी ज्यादा जरूरी है। लड़की की खुशी सबसे बाद में आती है।
अकेले लड़की करती है एडजस्ट
अरेंज मैरिज में जब लड़की की शादी होती है तब उसे अपने पति के बारे में नाममात्र जानकारी होती है। इसके बाद नए परिवार में, नए कल्चर और बिलीफ के साथ एडजस्ट होना अपने आप में ही बड़ा चैलेंज है। ऐसे में एक महिला को ही कंप्रोमाइज करने पड़ते हैं और खुद में बदलाव लाने पड़ते हैं। यह बहुत ही चैलेंजिंग हो जाता है। छोटी से बड़ी चीज आपके लिए बदल जाती है और आपको उनके मुताबिक रहना पड़ता है।
फैसले लेने का अधिकार छीन लिया जाता है
अरेंज मैरिज से लड़की का खुद से अधिकार ही छीन लिया जाता है। ऐसा नहीं है कि अरेंज मैरिज में लड़का या ससुराल अच्छा नहीं मिलता है लेकिन लड़की का खुद के लिए कोई फैसला ही नहीं होता है। वह अपने लिए ना पार्टनर चुन सकती है और ना ही उससे पूछा जाता है कि उसे अभी शादी करनी है या नहीं। इससे महिला की स्वायत्तता उसी समय ही खत्म हो जाती है। आगे जाकर भी उसे अपने ससुराल के हिसाब से रहना पड़ता है।
अपेक्षाओं का बोझ
अरेंज मैरिज में महिलाओं को अपेक्षा का सामना करना पड़ता है। सबसे पहले अपेक्षाएं पति की होती हैं। उसके बाद ससुराल वाले भी बहुत सारी उम्मीदें लगाए बैठे होते हैं। इससे महिला परफेक्ट बनने की कोशिश करती है। उसके ऊपर बहुत सारा बोझ हो जाता है जिससे मेंटल हेल्थ इफेक्ट होती है। उसे लगता है कि अगर मैं इन उम्मीदों को पूरा नहीं कर पाई तो शायद मैं एक अच्छी बहू या पत्नी नहीं बन पाऊंगी। इसके साथ ही मायके वालों की भी अपेक्षाएं बेटी से होती है कि वह अपने घर में अच्छी तरीके से एडजस्ट करें।