Does Social Media Normalize Misogynistic Behavior: सोशल मीडिया के इस ज़माने में जहाँ सारे लोग और खबर बस आपके फिंगरटिप्स पर अवेलेबल हैं, वही इसके अपने भी नुक्सान हैं जिससे दुनिया के कईं लोग वाकिफ तो हैं लेकिन इसे मानते नहीं हैं कि समाज के लिए कितना खतरनाक बनते जा रहा है। मिम्स के नाम पर लोग किसी भी टॉपिक पर मज़ाक कर देते हैं और अगर उससे कोई ऑफेंड हो जाये, तो उसे भी टारगेट कर देते हैं। अपने ओपिनियन को एक रिस्पेक्टेड तरीके से रखने का विकल्प सोशल मीडिया में अवेलेबल होने के बावजूद भी लोग इसको गलत तरीकों से और गलत चीज़ों के लिए इस्तेमाल करते हैं। आजकल छोटे से छोटे बच्चों के भी हाथों में फ़ोन और सोशल मीडिया जैसी चीजें आ गयी हैं और वो हो रहे हैं एक्सपोज़ दुनिया के नेगेटिविटी से और लोगों के मिसोजिनिस्टिक बातों और व्यवहारों से जिसका असर उनपर बहुत बुरा पड़ सकता है और बड़े होते हुए में उनकी सोच भी वैसी हो सकती है।
क्या सोशल मीडिया कर रहा है Misogynistic Behavior को नॉर्मलाइज़?
सोशल मीडिया के मिम पेजेज और कईं क्रिएटर्स एंटरटेनमेंट के नाम पर कईं सारे महिलाओं से जुड़े फनी और रोस्टिंग वीडियोस बना देते हैं और ट्रेंड्स चला देते हैं जैसे की जहाँ महिलाओं की इज़्ज़त ना करना या तमीज से बात ना करने को आजकल सिग्मा मेल कहा जाता है। महिलाओं के खिलाफ बहुत हेट स्प्रेड होता है सोशल मीडिया पर। ऐसे मिसोजिनिस्टिक आइडियाज और ट्रेंड्स के लाखों लोग शेयर और सपोर्ट करते हैं जिससे इसे बनाने वाले लोग और भी पुरोत्साहित हो जाते हैं और यह करना नहीं रोकते।
कईं लोग अपना नाम छुपाकर महिलाओं को बुरे और अश्लील मैसेज करते हैं, उनके फोटोज पर कमेंट करते हैं, उनको पब्लिकली टारगेट करते हैं और उनका मज़ाक बनाते है और उनके तरफ हेट फैलाते हैं। ऐसे लोगों के वजह से सोशल मीडिया एक बहुत ही अनसेफ जगह हो गया है जहाँ महिलाएं सेफ नहीं महसूस करती इतने लोग होने के बावजूद भी। महिलों के खिलाफ मिसोजिनिस्टिक सोच को बढ़ावा मिलता है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए की इसे बदलने के लिए भी हम सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसी प्लेटफार्म पर हम मिसोजिनिस्टिक बिहेवियर को कॉल आउट कर सकते हैं और लोगों को इसके बारे में जागरूक बना सकते हैं।