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Indian Youth: क्या भारतीय युवा दो ज़िंदगियाँ जी रहे हैं

ज़्यादातर भारतीय माँ बाप, गलत तरीकों से जैसे कि मैनीपुलेशन, इमोशनल ब्लैकमेल या सीधे डरा धमका के अपने बच्चों पर अपने सपने, बिलीफ्स और डिसीजन को थोप देते हैं और उसी प्रेशर से तंग आकर बच्चे भी कुछ गलत डिसीजन ले लेते हैं।

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Ayushi Jha
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Genz

(Image source: Freepik)

Indian Adults Are Living Dual Lives But At Some Cost: जब भी हम इंडियन पेरेंट्स की उनके बच्चों के साथ बॉन्ड की बात करते हैं, तो अक्सर ताने, गुस्सा और झगड़े कहीं न कहीं हमारे दिमाग के पीछे, उसके साथ ही आ ही जाते हैं। इसका यह मतलब नहीं है कि वो अपने बच्चों से प्यार नहीं करते लेकिन उनकी सोच और चीज़ों को करने का करवाने का तरीका हमारे जनरेशन से बहुत अलग हो जाता है जो हमारे बीच अक्सर फर्क ला देता है। ज़्यादातर भारतीय माँ बाप, गलत तरीकों से जैसे कि मैनीपुलेशन, इमोशनल ब्लैकमेल या सीधे डरा-धमका के अपने बच्चों पर अपने सपने, बिलीफ्स और डिसीजन को थोप देते हैं और उसी प्रेशर से तंग आकर बच्चे भी कुछ गलत डिसीजन ले लेते हैं। यह कम्युनिकेशन ब्रिज का सही होना बहुत ज़रूरी होता है क्यूंकि ऐसे व्यवहार से बच्चें अपने माँ बाप के साथ अपने आप से सच्चे नहीं रहते।

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Indian Youth: क्या भारतीय युवा दो ज़िंदगियाँ जी रहे हैं

कई बच्चे अपने माँ बाप के तानों और बातों से परेशान होकर उनके सामने एक दूसरा रूप ले लेती हैं जो कि घर पर उन्हें शान्ति से जीवन जीने देने में मदद करे। हम सोचेंगे की क्या यह ज़रूरी है? लेकिन इसी बात पर अधिकतर युवा, एग्री कर जाएंगे। 

यह दो ज़िंदगियाँ जीने में बच्चे अपना असली पहचान को अपने माँ बाप के सामने की पहचान से बिलकुल अलग कर देते हैं जिससे उन्हें अलग होने पर अपने पेरेंट्स के गुस्से को ना झेलना पड़े क्योंकि बार-बार उनमें वो बहेस करने की एनर्जी नहीं बचती है। ऐसे में बच्चे अपने बारे में बहुत ज़रूरी बातें अपने परिवार से छुपा लेते हैं सिर्फ उनके डर से। यह डर उनके जीवन के लिए घातक भी हो जाता है। 

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अपनी पहचान को इतना अलग बना कर रखने से और बार-बार सिचुएशन और कम्पनी के हिसाब से बदलने से, इन युवाओं और बच्चों का मन थक जाता है। यह थकावट उनके मेन्टल हेल्थ पर भी असर कर देती है और साथ ही साथ उनके सेल्फ कॉन्फिडेंस पर भी एक बहुत बड़ा टोल लेती है, उन्हें कमज़ोर और वल्नरेबल बनाते हुए। 

अपने माता-पिता, जिन्होंने आपको जन्म दिया है, अगर उनके सामने भी किसी को अपनी पहचान बार-बार बदलनी पर रही है, तो कहीं न कहीं हम एक समाज की तरह फ़ैल हो चुके हैं।

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