Advertisment

Pursuit of Justice: भारतीय घरों में आज भी उम्र देखकर सही और गलत के फैसले क्यों लिए जाते हैं

भारतीय परिवारों में यह बात बहुत ही आम है कि उम्र के हिसाब से सबके साथ व्यवहार किया जाता है। इस वजह से बचपन से ही कम उम्र वालों को मूर्ख समझा जाता है।

author-image
Rajveer Kaur
New Update
decision

File Image

Intellect and Laws Are True Guardians of Justice: भारतीय परिवारों में यह बात बहुत ही आम है कि उम्र के हिसाब से सबके साथ व्यवहार किया जाता है। इस वजह से बचपन से ही कम उम्र वालों को मूर्ख समझा जाता है। इससे बच्चे का कॉन्फिडेंस भी बिल्ड नहीं होता है और बच्चा हमेशा अपने ओपिनियन को बोलने से डरने लग जाता है। उन्हें लगता है कि शायद उनके विचारों को इतनी वैल्यू नहीं मिलेगी या फिर वे सही नहीं हैं। ऐसे व्यवहार में परवरिश होने के बाद जब बच्चा बड़ा होता है तो भी वह अपनी बात कहने में स्ट्रगल करता है क्योंकि बचपन में सिर्फ उसे इसलिए गलत कह दिया गया क्योंकि उसकी उम्र बाकी सबसे कम थी जो कि एक इलॉजिकल बात है। इसलिए आज टॉपिक पर बात करते हैं-

Advertisment

भारतीय घरों में आज भी उम्र देखकर सही और गलत के फैसले क्यों लिए जाते हैं

किसी की बुद्धि का अंदाजा उसकी उम्र से नहीं लगाया जा सकता है। बहुत बार ऐसा तब भी हो जाता है जब आपकी उम्र छोटी होती है। लोग आपको बहुत कम समझने लग जाते हैं या फिर उन्हें लगता है कि आपमें इतनी समझ नहीं है जबकि इसका उम्र से कोई लेना-देना नहीं है। भारतीय घरों में जब भी कोई बातचीत होती है तो छोटे बच्चों की राय नहीं लिए जाती है और ना ही उनके ओपिनियन की वैल्यू की जाती है। ऐसे बच्चों को लगता है उसे कोई प्यार नहीं करता है। वे अपने इमोशंस को दबाने लग जाता है और सोशल गैदरिंग्स को भी अवॉइड करने लग जाता है। जब बच्चा बड़ा होता है और मां-बाप चाहते हैं कि वे अपना ओपिनियन दूसरों के सामने रखे या फिर खुलकर बातचीत करें तो उससे ऐसा हो नहीं पाता है क्योंकि हमने बचपन से ही उसके कॉन्फिडेंस को खत्म कर दिया।

उम्र से कोई व्यक्ति सही या गलत डिफाइन नहीं होता है

Advertisment

इसलिए हमें कभी भी उम्र के हिसाब से किसी के साथ बातचीत नहीं करनी चाहिए या फिर उसकी इंटेलिजेंस का अंदाजा नहीं लगाना चाहिए बल्कि बातचीत करके ही सामने वाले को जज करना चाहिए। बहुत बार ऐसा भी होता है कि घर पर छोटे बच्चे बात सही करते हैं लेकिन उन्हें इतनी वैल्यू नहीं मिलती है तो उनकी बात को माना नहीं जाता है। यह तो वह बात हो जाती है कि बड़े छोटों से अपेक्षा करते हैं कि वे गलती होने पर माफी मांगे या फिर उनकी रिस्पेक्ट करें और जब बात छोटों की आती है तो उन्हें हमेशा ही डोमिनेट किया जाता है या फिर उनका शोषण ही होता है। यह एक बहुत ही गलत बात है। बच्चे वही सीखते हैं जो बड़ों में देखते हैं और आगे वह भी अपनी लाइफ में वैसा ही करते हैं। इसलिए बड़ों को अपने एक्शंस बहुत समझदारी से चुनने चाहिए ताकि छोटे सही वैल्यूज सीख पाए।

Age is Just a Number Age
Advertisment