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Photograph: (Freepik)
Is Our Mindset About Periods Still 100 Years Old? आज हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, जहां विज्ञान और तकनीक ने अभूतपूर्व प्रगति कर ली है। लेकिन जब बात महिलाओं के मासिक धर्म की आती है, तो हमारी सोच में ज्यादा बदलाव नजर नहीं आता। आज भी कई परिवारों में पीरियड्स को एक 'गंदगी' की तरह देखा जाता है, लड़कियों को मंदिर में जाने से रोका जाता है, और उन्हें अलग कमरे में रहने के लिए कहा जाता है। यह सोच लगभग वैसी ही है, जैसी सौ साल पहले थी।
क्या पीरियड्स को लेकर हमारी सोच आज भी 100 साल पुरानी है?
स्कूलों और परिवारों में खुली चर्चा का अभाव
बच्चियों को अक्सर पीरियड्स के बारे में घर में सही जानकारी नहीं दी जाती। स्कूलों में भी इसे सामान्य विषय की तरह नहीं पढ़ाया जाता, जिससे जागरूकता की कमी बनी रहती है। कई लड़कियां पहली बार पीरियड्स आने पर डर जाती हैं, क्योंकि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी ही नहीं होती। इस मानसिकता को बदलने की जरूरत है ताकि मासिक धर्म को एक स्वाभाविक जैविक प्रक्रिया के रूप में स्वीकार किया जा सके।
अब भी शर्म और छुपाव की मानसिकता क्यों?
पीरियड्स को लेकर शर्म का भाव हमारे समाज में गहराई से बैठा हुआ है। सैनिटरी पैड खरीदते समय आज भी दुकानदार उसे काले पॉलीथिन में लपेटकर देते हैं, जैसे कि यह कोई छिपाने वाली चीज हो। कई महिलाएं आज भी ऑफिस या सार्वजनिक जगहों पर पैड बदलने में असहज महसूस करती हैं। क्या यह बताने की जरूरत नहीं है कि पीरियड्स एक सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य का अहम हिस्सा है?
स्वास्थ्य और स्वच्छता पर प्रभाव
गांवों और छोटे शहरों में आज भी कई लड़कियां पैड की जगह पुराने कपड़े या राख जैसी अस्वच्छ चीजों का इस्तेमाल करती हैं। इसकी वजह जागरूकता की कमी और महंगे पैड का खर्च भी है। खराब मासिक धर्म स्वच्छता कई बीमारियों को जन्म देती है, जिनमें इंफेक्शन और गर्भाशय संबंधी समस्याएं प्रमुख हैं। अगर समाज में खुले तौर पर इस विषय पर बातचीत होने लगे, तो शायद महिलाएं सही उत्पाद और स्वच्छता के महत्व को बेहतर तरीके से समझ सकें।
बदलाव की शुरुआत कहां से हो?
पीरियड्स को लेकर सौ साल पुरानी सोच बदलनी जरूरी है, और इसकी शुरुआत परिवार से होनी चाहिए। माता-पिता को अपनी बेटियों से इस विषय पर खुलकर बात करनी चाहिए, स्कूलों में इसे शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बनाना चाहिए, और पुरुषों को भी इस विषय पर जागरूक किया जाना चाहिए ताकि वे भी महिलाओं की इस जरूरत को समझ सकें।
क्या वाकई हमारी सोच बदली है? या फिर हम केवल आधुनिकता का दिखावा कर रहे हैं? यह सवाल हर किसी को खुद से पूछना चाहिए। जब तक पीरियड्स को लेकर झिझक खत्म नहीं होगी, तब तक हम मानसिक रूप से आज भी सौ साल पीछे ही रहेंगे।