आज के समय ने जब लड़कियां चांद तक जा रही हैं सब कुछ कर रही हैं फिर भी कहीं न कहीं जब बात बराबरी की आती है तो एक असामान्यता आज भी देखने को मिलती है। परिवार में घरों में अक्सर देखा जाता है कि लड़कियां कितना भी आगे क्यों न बढ़ जाएं प्राथमिकता लड़कों को ही दी जाती है। लड़कियां प्रायोरिटी के मामले में ज्यादातर लड़कों के बाद ही रखी जाती हैं। समय बदल गया लेकिन सोच में बदलाव की आज भी कमी है। हर जगह हर समाज ने परिवार में यह महसूस किया जा सकता है कि जन्म से लेकर हर एक चीज में लकड़ों को प्रायोरिटी माना जाता है। उनके लिए हर एक चीज पहले की जाती है, उनकी बातों को पहले मान्यता दी जाती है लेकिन अधिकतर लड़कियों के साथ ऐसा नही होता है। आइये आज बात करते हैं कि आखिर क्यों लड़के पहली प्रायोरिटी होते हैं लड़कियां नहीं?
क्या ये ठीक है? हमेशा पहली प्राथमिकता लड़के ही क्यों, लड़कियां क्यों नहीं?
अक्सर जब बात होती है किसी काम की तो यह सुनने को मिलता है कि घर का मर्द करेगा। आखिर क्यों महिलाएं या लकड़ियां क्यों नही कर सकती हैं? घर की जिम्मेदारियां लड़कियों और महिलाओं पर लेकिन जब बात आती है किसी अन्य जगह पर उपस्थित होने की या फिर कुछ हासिल करने की तो लड़कों को आगे कर दिया जाता है। पितृसत्तात्मक समाज में हमेशा से ऐसा रहा है कि मर्दों को प्राथमिकता दी गई है। वंश, संपत्ति और परिवार का नाम सब कुछ में पुरुषों को आगे रखा जाता रहा है। क्योंकि पुरुषों को रोटी कमाने वाला और घर को आर्थिक रूप से संभालने वाला माना जाता था। लेकिन आज के समय में जब यह बदल चुका है आज के समय में महिलाएं भी पुरुषों के समान ही घरों से बाहर निकलती हैं पैसा कमाती हैं और परिवार का पालन पोषण भी करती हैं तब भी यह भेदभाव बना हुआ है।
जब बात जन्म की आती है तो कहा जाता है कि लड़का पैदा हो वो घर को संभालेगा, जब बात पढ़ने लिखने की आती है तो कहा जाता है कि लड़के को पढ़ाओ उसको जीवन में कुछ बनना है कुछ करना है लड़कियों को पीछे खड़ा कर दिया जाता है और कहा जाता है कि आखिर करना तो इन्हें घर का काम ही है बच्चे ही पालने हैं। जब बात शादी की आती है तो लड़के को लड़की पसंद हो इस बात पर जोर दिया जाता है और लकड़ियों से यह पूछा तक नहीं जाता कि तुम्हे शादी करनी भी है या नहीं? ऐसे ना जाने कितने उदाहरण हैं जहां पर लड़कियों को लड़कों के बाद रखा जाता है और सोचने की बात यह ही कि यह भेदभाव घर परिवार के लोगों और माता-पिता द्वारा किया जाता है।
इसके पीछे पुराने व्यवहार पुरानी मान्यताएं हैं लेकिन अब समय बदल चुका है और समाज को भी बदलाव की जरूरत है। लड़कियां अब अपने लिए परिवार के लिए सब कुछ करती हैं और आगे बढ़ रही हैं। ऐसे में इस भेदभाव भरे व्यवहार से आगे बढ़ना आवश्यक है और लड़कियों को भी प्राथमिकता मिले इस पर काम करना आवश्यक है। जब तक समाज इस दिशा में काम नही करता है और मर्दों को प्रायोरिटाइज करना नही बंद करेगा तब तक सामान्यता लाना और समावेशी समाज बनाना कठिन रहेगा।