आँखों से बलात्कार: महिलाओं के खिलाफ़ बढ़ते अत्याचारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाओ

आँखों से बलात्कार यानी महिलाओं को घूरना, अश्लील इशारे करना और पीछा करना एक गंभीर समस्या है। यह समाज में किस तरह सामान्य हो चुका है और इसका महिलाओं पर क्या प्रभाव पड़ता है, जानें इस लेख में।

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Priyanka
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Rape Victim

Eye Rape A Disturbing Reality Women Face Every Day: महिलाएँ प्रतिदिन आंखों से बलात्कार का शिकार होती हैं। यह इतनी आम बात बन गई है कि लोग इस पर चर्चा तक नहीं करते। परन्तु यह कितना घातक है, यह केवल एक महिला ही बता सकती है। विद्यालय, दफ्तर और रोज़मर्रा के काम के लिए बाहर निकलने वाली महिलाएँ रोजाना इस समस्या का सामना करती हैं।

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आँखों से बलात्कार: महिलाओं की अनदेखी पीड़ा

समाज में कई लोग मानते हैं कि किसी महिला को देख लेने या घूरने से कुछ नहीं बिगड़ता। इसी मानसिकता के चलते सड़क पर चलते समय महिलाओं को घूरा जाता है। बात केवल घूरने तक ही सीमित नहीं रहती—यह अश्लील इशारों, अभद्र टिप्पणियों और पीछा करने तक बढ़ जाती है। इन घटनाओं का महिलाओं के काम, पढ़ाई और मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है।

यह इतनी आम बात क्यों है?

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पितृसत्तात्मक समाज में आज भी महिलाओं को पुरुषों से कमतर समझा जाता है। इसी सोच के चलते कुछ पुरुष खुद को महिलाओं को परेशान करने का हकदार मानते हैं। शिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण कई लोग सहमति और सम्मान का महत्व नहीं समझते। जब लड़कों को बचपन से महिलाओं का सम्मान करना नहीं सिखाया जाता, तो वे बड़े होकर घृणित व्यवहार करने लगते हैं।

सड़क पर चलती महिला: डर और बेबसी की कहानियाँ

खुशी की आपबीती

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खुशी अपनी पढ़ाई और नौकरी के लिए भोपाल में रहती है। एक दिन जब वह अपने विश्वविद्यालय जा रही थी, तब एक आदमी उसका पीछा करने लगा। कुछ ही देर में उसने खुशी को अश्लील इशारे करने शुरू कर दिए और भद्दी टिप्पणियाँ कीं। इस घटना ने उसे अंदर तक डरा दिया।

प्रियंका का अनुभव

दिल्ली की प्रियंका एक रात दफ्तर से घर जाने के लिए बस लेती है। बस में एक पुरुष उसके पास बैठ जाता है। कुछ ही देर में प्रियंका देखती है कि वह व्यक्ति हस्तमैथुन कर रहा है। डर के बावजूद, प्रियंका चुप नहीं रहीं। उन्होंने बस रुकवाकर उस आदमी पर चिल्लाना शुरू कर दिया और बस में मौजूद अन्य लोगों को बताया। अफसोस की बात यह रही कि कोई भी उसकी मदद को आगे नहीं आया, और वह व्यक्ति भाग निकला।

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खुशी और प्रियंका की कहानियाँ इस समाज में महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और उनके सामने आने वाली चुनौतियों पर सवाल खड़े करती हैं।

देश में हर साल 30,000 से अधिक बलात्कार के मामले

जब भी बलात्कार और यौन उत्पीड़न की खबरें सामने आती हैं, तो 2012 का निर्भया मामला याद आ जाता है। 22 वर्षीय निर्भया के साथ क्रूरतापूर्वक बलात्कार किया गया था, जिससे उनकी मृत्यु हो गई थी। इस घटना के बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, लेकिन इसके बावजूद यौन अपराधों की घटनाएँ कम नहीं हुईं।

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2024 में कोलकाता की एक पोस्ट-ग्रेजुएट महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ बर्बरता की गई, जिसने फिर से इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2012 के बाद से हर साल लगभग 30,000 बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं। 2016 में यह संख्या 39,000 तक पहुँच गई थी। 2022 की रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या लगभग 31,500 थी। हालांकि, यह वास्तविक संख्या से कहीं कम हो सकती है, क्योंकि सामाजिक कलंक और पुलिस व न्याय व्यवस्था में विश्वास की कमी के कारण कई महिलाएँ रिपोर्ट दर्ज नहीं करातीं।

महिला कोई वस्तु नहीं है

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पितृसत्ता महिलाओं को वस्तु की तरह देखती है। इस सोच के अनुसार, शादी से पहले महिला पर पिता और भाई का अधिकार होता है और शादी के बाद पति की आज्ञा मानना उसका धर्म होता है। यह मानसिकता महिलाओं की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान को चोट पहुँचाती है।

समाज को यह समझना होगा कि महिलाएँ किसी की गुलाम नहीं हैं। वे भी समान अधिकार रखती हैं और उन्हें भी अपने फैसले खुद लेने का पूरा हक है। जब तक समाज पितृसत्ता और रूढ़िवादी सोच से मुक्त नहीं होगा, तब तक महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं आएगा।

अब चुप रहने का समय नहीं: आवाज़ उठाओ!

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अगर आज तुमने कुछ नहीं किया, तो कल यही घटनाएँ और ज़्यादा तकलीफ देंगी। महिलाएँ अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए सदियों से लड़ती आई हैं और यह लड़ाई जारी रहेगी—एकजुट होकर, एक साथ!

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