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Real Feminism: पुरषों को नारीवाद की सही परिभाषा जानने की जरूरत क्यों है?

नारीवाद की जब बात आती है तब सबसे ज्यादा गलतफहमी पुरुषों को ही इसके बारे में होती है। उन्हें लगता है कि यह एक प्रोपेगेंडा है जो महिलाओं के द्वारा पुरुषों के खिलाफ फैलाया जा रहा है लेकिन यह सच्चाई नहीं है।

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Rajveer Kaur
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Feminism

(Image Credit: Freepik)

The Real Definition Of Feminism: जब नारीवाद की बात आती है तब बहुत सारे लोग का यही मानना होता है कि यह महिलाओं के लिए है। इसमें सिर्फ उनके हकों की बात होती है. यह पुरुषों को नीचा दिखाने के लिए है और सारी पावर महिलाएं अपने हाथ में लेना चाहती हैं ताकि वह पुरुषों को डोमिनेंट कर सके। आमतौर पर लोग फेमिनिज्म के बारे में यही बातें बताते हैं। बहुत सारी महिलाएं ऐसी भी हैं जो कई बार नारीवाद का गलत मतलब समझ लेती हैं क्योंकि हमारे समाज में बहुत गलत जानकारी फैलाई जाती है। चलिए आज जानते हैं कि क्यों पुरुषों को नारीवाद के बारे में जानने की जरूरत है।

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पुरषों को नारीवाद की सही परिभाषा जानने की जरूरत क्यों?

नारीवाद की जब बात आती है तब सबसे ज्यादा गलतफहमी पुरुषों को ही इसके बारे में होती है। उन्हें लगता है कि यह एक प्रोपेगेंडा है जो महिलाओं के द्वारा पुरुषों के खिलाफ फैलाया जा रहा है लेकिन यह सच्चाई नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण यह भी हो सकता है कि नारीवाद शब्द में नारी आ जाने के कारण लोग इसे अक्सर महिलाओं के साथ जोड़ देते हैं लेकिन यह दोनों के अधिकारों की बात करता है। पुरुषों के पास पहले से ही बहुत सारे अधिकार मौजूद हैं और उनका पालन भी हो रहा है लेकिन महिलाएं अभी आम अधिकारों से भी वंचित है। हम सबको लगता है कि समाज में पुरुष और महिलाएं बराबर हैं। हम महिलाओं को ऑफिस जाते हुए, वेस्टर्न कपड़ों पहने हुए, लोगों के सामने अपना ओपिनियन रखते हुए और कॉन्फिडेंस के साथ देखते हैं लेकिन इन सबके पीछे उस महिला की एक बहुत बड़ी जंग है। एक जंग वह खुद से और दूसरी वह समाज एवं परिवार से लड़ती है। अगर हम इन महिलाओं का आंकड़ा देखें तो यह बहुत कम है। आज भी बहुत सारी महिलाएं घरों पर है जो सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ पाती क्योंकि उनके ऊपर घर के काम का बोझ है। 

मान लीजिए अगर एक महिला वर्किंग (Working Women) है तब भी घर जाकर उसे काम करना ही पड़ेगा लेकिन पुरुष के साथ ऐसा नहीं होगा। अगर एक पुरुष शादी नहीं करना चाहता तो वो उसकी चॉइस है लेकिन अगर महिला नहीं करना चाहती तो उसके चरित्र पर उंगलियां उठाई जाती हैं। अगर एक पुरुष के एक से ज्यादा सेक्सुअल पार्टनर हैं तो वो प्लेबॉय है लेकिन वहीं एक महिला के एक से ज्यादा सेक्सुअल पार्टनर हो जाए तो वो स्लट बन जाती है तो हम बराबरी की बात कैसे करते हैं?

पितृसत्ता का सिर्फ रूप बदला है लेकिन वो खत्म नहीं हुई है। हमने समय के साथ इसे भी इसका ढांचा बदल दिया है। आप यह नहीं कह सकते कि यह समाज पुरुष प्रधान (Male Dominated) नहीं है। आज भी यहां पुरुषों की ही चलती है। यह बात पुरुष बड़े गर्व से बोलते हैं कि हम अपनी पत्नी को यह इजाजत देते हैं कि वह बाहर जाकर जॉब कर सके लेकिन उन्हें यह हक किसने दिया कि वह एक महिला को इस बात की इजाजत दे सकें।  

पुरुषों को समझने की जरूरत है कि नारीवाद उन दोनों के लिए हैं। पुरुषों के साथ भी गलत होता है। उन्हें रोने नहीं दिया जाता और उन्हें आंसू छुपाने पड़ते हैं। घर का आर्थिक बोझ सिर्फ पुरुषों के ऊपर आता है। अगर पुरुष भी नारीवाद का साथ देंगे तो समाज में उनके साथ जो अन्याय हो रहा है वो खत्म हो सकता है। उन्हें भी एक 'सिग्मा मेल' बनने की ट्रेनिंग दी जाती है तो उससे भी बच सकते हैं। इसलिए नारीवाद महिलाओं के लिए नहीं ब्लकि पुरुष के लिए भी जरूरी बन जाता है।

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