Patriarchal Mindset: हमारा समाज एक पितृसत्तात्मक समाज है। यहां महिलाओं पर भी पुरुषों की सोच का प्रभाव आसानी से देखने को मिल जाता है। हम लड़कियों पर किस सोच का अधिक प्रभाव और दबाव देखा जा सकता है। हमें बचपन से ही हमारी नानी दादी और मां के द्वारा कैसी शिक्षाएं दी जाती है जिनसे हमारी आत्मविश्वास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हम धीरे-धीरे समाज की रूढ़िवादी सोच में ही ढलने लगते हैं।
हमारी माताएं बना देती है हमें रूढ़िवादी सोच का हिस्सा
जब लड़कियों की परवरिश की बात आती है तो उस पर अक्सर दादी, नानी, माताएं ही अधिक ध्यान देते हैं। इन पर ही जिम्मेदारी होती है कि वह हमें वो सारी चीजें सिखाएं जिनके मुताबिक लड़कियों को समाज में व्यवहार करना चाहिए। लेकिन मेरी सोच में इस बात के लिए इन्हें पूरी तरीके से जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि आपकी माता, आपकी नानी और दादी की परवरिश भी उसी पितृसत्तात्मक रूढ़िवादी सोच के साथ हुई है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ढलती आ रही है। वह इन रूढ़ीवादी बातों को ही जीने का एक जरिया मान चुके हैं। उनके लिए यही एक सही जीने का तरीका है। इसलिए वह इन्हें अपनी आने वाली पीढ़ी को सिखाती है। लेकिन अगर हम इस रूढ़िवादी सोच के सर्कल को नहीं तोड़ेंगे तो यह और भी कई सदियों तक चलता रहेगा और इस प्रकार ही लड़कियों के आत्मविश्वास पर नकारात्मक प्रभाव डालता रहेगा।
शादी ही नहीं है जीवन का लक्ष्य
हमारे समाज में लड़कियों को बचपन से ही शादी के लिए तैयार किया जाता है। उन्हें इस बात की सीख अपनी मां, दादी, नानी, चाची से ही मिलती है। घर में लड़की पैदा होने पर भारतीय माताओं की पहली परेशानी यही होती है कि इसकी शादी किसी अच्छे लड़के से करनी होगी। फिर इस अच्छे लड़के के लिए अपनी लड़की को किस प्रकार तैयार करना है इस बात का प्रोसेस शुरू हो जाता है। वे लड़कियों को दूसरों की सेवा करना सिखाते हैं, उन्हें घर का काम करना सिखाते हैं, हर एक चीज में कुशल बनाते हैं ताकि सामने वाला लड़का उनकी लड़की में किसी भी प्रकार की कमी ना निकाल पाएं। यही कारण है कि अधिकतर लड़कियों को बचपन से यही समझ आता है कि उनके लिए शादी ही उनके जीवन का अंतिम लक्ष्य है और उन्हें कभी आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने की शिक्षा नहीं दी जाती है। उन्हें बताया जाता है कि घर में आर्थिक चीजों की पूर्ति करने का काम उनके पति यानी के घर के पुरुष का होता है।
लड़की का गोरा रंग नहीं तो शादी नहीं
लड़कियों को लेकर उनकी माताएं, बहने, चाची, दादी सब उनके रंग को लेकर काफी चिंतित रहते हैं। अगर लड़कियों का रंग साफ नहीं है तो यह उनके लिए एक परेशानी के रूप में देखा जाता है। क्योंकि हमारे समाज में अधिक गोरी लड़कियों को ही पसंद किया जाता हैं। अगर रंग सांवला है तो शादी में काफी बाधाएं आ सकती है। इसलिए जिन लड़कियों का रंग सांवला होता है उन्होंने अक्सर अपनी माताओं, बहनों, चाची से रंग गोरा करने के अलग-अलग नुस्खे सीखे ही होंगे। रंग को गोरा करने के चक्कर में हम लड़कियों को यह नहीं सिखा पाते हैं कि उन्हें अपने आप को लेकर आत्मविश्वास रखने की अधिक जरूरत है।
इन सीख को हमारी पीढ़ी को ही तोड़ना होगा। क्योंकि अगर यह रूढ़िवादी सोच का सर्कल इसी प्रकार चलता रहा तो हम कभी भी पितृसत्तात्मक समाज से बाहर नहीं निकल पाएंगे।