क्या घर पर माँ की मदद करने से उनका मानसिक बोझ कम हो जाता है?

हमारे समाज में मां होने की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा हैं। जब आप एक मां के लेवल पर आ जाते हैं तो आपसे अपेक्षाएं बहुत बढ़ जाती हैं। आपका अपना वजूद खत्म होने लग जाता है।

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Rajveer Kaur
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Mother

True Support Means Sharing The Mental Load: हमारे समाज में मां होने की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा हैं। जब आप एक मां के लेवल पर आ जाते हैं तो आपसे अपेक्षाएं बहुत बढ़ जाती हैं। आपका अपना वजूद खत्म होने लग जाता है। जब आपसे कोई भी कमी रह जाती है या फिर आप से कुछ गलत हो जाता है तो आपको बहुत कुछ सुनना पड़ता है। ऐसे में अगर कोई मां बच्चे से पहले खुद को प्रायोरिटी दे देती है तो उसे सेल्फिश भी बोला जाता है। ऐसे में जब मां के बोझ की बात की जाती है तो जिम्मेदारियां को बांटने का सुझाव दिया जाता है। क्या सच में इससे महिलाओं का बोझ कम हो जाता है?

क्या घर पर माँ की मदद करने से उनका मानसिक बोझ कम हो जाता है?

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जब हम किसी की हेल्प करते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी जिम्मेदारी खत्म हो गई है। अभी भी जिम्मेदारी उनके कंधों पर ही है लेकिन आप बस उनके कुछ कामों में मदद कर देते हैं जिससे काम थोड़ा आसान हो जाता है लेकिन मदद कर देने से प्रॉब्लम खत्म नहीं हो जाती है। अब हम इसे एक उदाहरण के रूप में समझते हैं। एक वर्किंग वुमन अगर ऑफिस के साथ-साथ घर भी संभाल रही है और इस बीच दो-चार कामों में अगर उसका हस्बैंड या फिर सास-ससुर मदद कर देते हैं तो इससे महिला की जिम्मेदारी कम नहीं हुई। यह नहीं है कि उसे ऑफिस के साथ-साथ अब घर का काम नहीं देखना है।

अभी भी घर के काम की जिम्मेदारी उसकी है लेकिन बीच-बीच में उसे अपने परिवार का सपोर्ट मिल जाता है। वहीं पर अगर जब उस महिला का पति घर के एक समय के काम की जिम्मेदारी खुद उठा ले तो इससे महिला का बहुत ज्यादा मेंटल और फिजिकल बोझ बहुत कम हो जाएगा। इसके बारे में हम बात कर रहे हैं।

ऐसे में एक समय पर महिला को बिल्कुल ही उससे राहत मिल जाएगी। उसे बिलकुल सोचा नहीं पड़ेगा कि इस समय उसे क्या खाना बनाना है या फिर क्या-क्या काम पेंडिंग हैं। पहले से यह सब काम उसके पति के होंगे और जब उसकी समय आएगा तो उसे सिर्फ उस समय के ऊपर ध्यान देना है। वहीं पर जब महिला पूरे घर को भी संभाल रही है और इस बीच ऑफिस भी जा रही है तो अगर कुछ कामों में कोई उसकी हेल्प कर देता है तो इससे उसका मेंटल बोझ कम नहीं होता है या फिर उसकी जिम्मेदारियां कम नहीं हो जाती हैं। इससे सिर्फ उसे थोड़ी मदद मिलती है और सब कुछ उसे ही सोचना है कि कैसे कब और किसकी मदद से क्या करना है।

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ऐसे में सबसे जरूरी यह है कि हम उनकी मदद करने के साथ-साथ उनका मेंटल बोझ भी कम करें जिसके लिए हमें उसकी जिम्मेदारियां को कम करना होगा। हमें सारा बोझ उनके ऊपर नहीं डालना है या फिर उनसे ज्यादा अपेक्षाएं नहीं रखनी हैं। हमें कुछ चीजों के लिए खुद भी जिम्मेदार होना पड़ेगा क्योंकि जरूरी नहीं है कि सब काम महिला ने ही करना है। अभी सोशल कंडीशनिंग और जेंडर रोल को खत्म करना होगा ताकि महिलाओं के लिए आसान माहौल पैदा हो सके।

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