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Photograph: (aarp)
Why Are Women More Prone to Depression:हमारे समाज में महिलाओं की ज़िम्मेदारियाँ पुरुषों से कहीं ज़्यादा होती हैं। घर, परिवार, बच्चे, नौकरी—इन सभी की जिम्मेदारी निभाते-निभाते वे खुद को भूलने लगती हैं। धीरे-धीरे यह मानसिक और भावनात्मक तनाव बन जाता है, जो डिप्रेशन का कारण बनता है। लेकिन अक्सर इसे गंभीरता से नहीं लिया जाता। परिवार और समाज इसे "सिर्फ एक मूड स्विंग" मानकर नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जिससे महिलाओं की स्थिति और खराब हो जाती है।
महिलाओं को डिप्रेशन सबसे ज़्यादा क्यों होता है?
महिलाओं का डिप्रेशन सिर्फ एक "मूड स्विंग" नहीं है, यह एक गंभीर समस्या है। परिवार और समाज को इसे समझना होगा और महिलाओं को सपोर्ट देना होगा। महिलाएँ सिर्फ घर चलाने या दूसरों की देखभाल के लिए नहीं बनी हैं, उन्हें भी मानसिक शांति, प्यार, और सपोर्ट की ज़रूरत होती है। जब परिवार और समाज उन्हें समझेगा, तभी वे इस समस्या से बाहर निकल पाएंगी।
1. पारिवारिक और सामाजिक दबाव
महिलाओं पर हमेशा यह दबाव रहता है कि वे सबकुछ सही तरीके से संभालें। चाहे वह शादी के बाद नई ज़िंदगी में खुद को ढालना हो, घर की ज़िम्मेदारियाँ उठानी हों, या बच्चों की देखभाल करनी हो—हर चीज़ में उनसे परफेक्शन की उम्मीद की जाती है। समाज भी उनसे अपेक्षा रखता है कि वे बिना शिकायत सबकुछ सहें। इस लगातार दबाव के कारण वे मानसिक रूप से थक जाती हैं और डिप्रेशन की चपेट में आ जाती हैं।
2. हार्मोनल बदलाव और शारीरिक कारण
महिलाओं के शरीर में हार्मोनल बदलाव पुरुषों की तुलना में अधिक होते हैं। पीरियड्स, प्रेग्नेंसी, मेनोपॉज हर दौर में उनके शरीर में बदलाव होते हैं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालते हैं। प्रेग्नेंसी के बाद कई महिलाओं को पोस्टपार्टम डिप्रेशन हो जाता है, लेकिन इसे आम तौर पर "माँ बनने की थकान" कहकर नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।
3. करियर और घर की दोहरी जिम्मेदारी
आज की महिलाएँ सिर्फ घर तक सीमित नहीं हैं, वे करियर भी बना रही हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि घर की जिम्मेदारी कम हो गई। महिलाएँ ऑफिस और घर दोनों संभालती हैं, जिससे उन पर दोगुना दबाव पड़ता है। कई बार वे अपनी इच्छाओं और सपनों को पीछे छोड़ देती हैं, जिससे वे अंदर ही अंदर घुटने लगती हैं और डिप्रेशन का शिकार हो जाती हैं।
4. इमोशनल सपोर्ट की कमी
पुरुषों की तुलना में महिलाएँ अधिक संवेदनशील होती हैं, वे अपने रिश्तों को लेकर ज़्यादा सोचती हैं। कई बार परिवार, पार्टनर या दोस्तों से उन्हें वो भावनात्मक सहारा नहीं मिलता जिसकी उन्हें ज़रूरत होती है। अकेलेपन और असुरक्षा की भावना उन्हें डिप्रेशन की ओर धकेल देती है।
5. घरेलू हिंसा और समाज की बंदिशें
भारत में कई महिलाएँ आज भी घरेलू हिंसा, भावनात्मक शोषण, और सामाजिक भेदभाव का सामना करती हैं। वे खुलकर अपनी तकलीफें नहीं कह पातीं, क्योंकि समाज उन्हें चुप रहने के लिए मजबूर करता है। उनके पास अपनी भावनाएँ व्यक्त करने का कोई तरीका नहीं होता, जिससे वे मानसिक रूप से टूट जाती हैं और धीरे-धीरे डिप्रेशन में चली जाती हैं।