Why Are Women Taught To Aspire Within Limits: अधिकतर लड़कियों को बचपन से ही सपने देखना माना होता है और उनमे भी जो कुछ खुश किस्मती से खुदके लिए एक अम्बिशयस फ्यूचर देखने को आगे बढ़ना चाहती होती है, उसे लिमिट में देखने को कहा जाता है, ऐसा क्यों? दुनिया, समाज, टेक्नोलॉजी इतना सब आगे बढ़ चूका है सिवाए कुछ लोगों के सोच की जिन्हें आज भी महिलाओं के समाज के लड़कों के कदम से कदम मिला कर चलने में खतरा महसूस होने लगता है। ऐसे पैट्रिआर्किअल बर्डन सदियों से परिवार से परिवार नीचे आता जा रहा है और कईं सारे मासूम सपने इनके निचे कुचल दिए गए हैं।
"सपने देखो पर हद में" क्यों कहा जाता है ऐसा लड़कियों से?
बेटियों को सपने देखने से रोकने वाले समाज में दो ही किस्म के लोग होते हैं, एक जो धन से गरीब होते हैं, और एक जो दिमाग और अपने सोच से। पहले किस्म के लोग अपने बेटियों के लिए शायद चाह कर भी कुछ मदद नहीं कर पाते लेकिन दूसरे किस्म वाले, चाह कर भी अपनी बेटियों, बहुओं, बहनो या फिर किसी भी महिला को तरक्की करते हुए नहीं देख सकते। यह दूसरे किस्म के लोग ही समाज के दीमक होते हैं।
लड़कियों को सपने हद में अक्सर वो लोग भी देखने को कहते हैं, जो उनके सपनो के लिए फिनान्सिअली सक्षम नहीं होते। मैंने सुना है अपने मिडिल क्लास परिवार में रह कर कईं बार अपने पापा से, की "पैर उतने ही फैलाओ जितनी तुम्हारे पास चद्दर हो।" पर क्या यह इधर भी लागू होता है? मैंने हमेशा इस सोच से अलग सोचा है। जबतक पैर नहीं फैलाएंगे तबतक चद्दर कितनी लम्बी है पता कैसे चलेगा और अगर चद्दर छोटी पर गयी, तो बड़े चद्दर के लिए संघर्ष किये बिना कहाँ कुछ हासिल होगा।
यह बात सोचने के लिए मेरे पास सुविधाएं है, पर किसी किसी के पास नहीं होती और वो बस अपनी यह किस्मत स्वीकार कर लेते हैं की शायद सपने देखने का हक़ और उन्हें पूरा करने का इजाज़त उन्हें नहीं मिलेगी। ऐसे ही सोच के लिए आवाज़ उठाना ज़रूरी है। महिलाएं एक दूसरे की मदद करने को उठे, ये ज़रूरी है। मुश्किल में पड़े महिलाओं को ऐसे परिस्तिथि से निकाले, वो ज़रूरी है। देश की महिलायें पुरे पोटेंशियल में सपने देखे और उन्हें पूरा करे, यह सबसे ज़्यादा ज़रूरी है।