हाल ही में एक गाइनेकोलॉजिस्ट का एक ट्वीट वायरल हुआ था। ट्वीट में डॉक्टर ने कहा कि रोगी के उपचार के लिए वैवाहिक स्थिति जानना "अनिवार्य" है। उसने दावा किया कि "क्या आप शादीशुदा हैं" जो 'वॉक' महिलाओं को परेशान करता है, जरूरी नहीं कि वह सेक्सुअल एक्टिविटी का सबूत हो। वैवाहिक स्थिति किसी भी उपचार से पहले आवश्यक, रोगी का एक और इतिहास है। डॉक्टर ने यह भी कहा कि सभी महिलाएं 'प्रगतिशील' सवालों पसंद नहीं करती हैं, जैसे "क्या आप सेक्सुअली एक्टिव हैं।"
ट्वीट को एक शिक्षित डॉक्टर का 'अशिक्षित ट्वीट' बताते हुए काफी आलोचना हुई। ट्विटर यूज़र्स, खासकर महिलाएं, उनके इस दावे से क्रोधित थीं कि एक मरीज की वैवाहिक स्थिति एक गयनेकोलॉजिस्ट (OB-GYN) के लिए इलाज शुरू करने से पहले जानना महत्वपूर्ण है। कई लोगों ने अपने सेक्सुअल जीवन के आधार पर OB-GYN द्वारा जज किए जाने के अपने अनुभव को याद किया। एक यूजर ने यह भी कहा कि OB-GYN की इस मानसिकता के कारण ही कई लड़कियां इलाज कराने से डरती हैं।
ट्वीट को डॉक्टरों की सहानुभूति की कमी को दर्शाने के लिए भी नोट किया गया। ट्विटर यूजर्स ने दावा किया कि आजकल डॉक्टर मरीज को अपनी समस्या बताने के लिए दो मिनट भी नहीं देते हैं। कुछ तो बिना मरीज को देखे ही दवा लिख देते हैं।
महिलाओं के इलाज में वैवाहिक स्थिति को अनिवार्य बताते हुए पता चलता है कि कैसे OB-GYN विवाह के सामाजिक विचार के सपोर्ट में हैं। गाइनेकोलॉजिस्ट जाने-अनजाने वैवाहिक स्थिति में सेक्सुअल एक्टिविटी के सवालों को छिपाकर महिलाओं को शर्मसार कर देते हैं और उनको जज करते हैं। मान लीजिए कोई महिला शादीशुदा न होने के बावजूद सेक्सुअली एक्टिव है। जब OB-GYN शादी के साथ सेक्स संबंध बनाते हैं तो क्या वह दोषी महसूस नहीं करतीं? क्या उसे अपने 'अनैतिक' काम के लिए माता-पिता और समाज के सामने जज, आलोचना और 'एक्सपोज' होने का डर नहीं होगा? उस डर के बीच क्या महिला बिना झिझक डॉक्टर से अपनी समस्या बता पाएगी?
पहले के केस
गायनेकोलॉजिस्ट के पास जाना हमारे समाज में महिलाओं के लिए एक चुनौती बन गया है, खासकर अविवाहित लोगों के लिए। सेक्सुअल जीवन और वर्जिनिटी का सवाल इलाज के लिए आवश्यक रोगी के इतिहास का हिस्सा नहीं रहता है। बल्कि स्त्री के चरित्र को आंकने का आधार बन जाता है। हाल ही में एक मामला सामने आई थी जिसमें एक गयनेकोलॉजिस्ट ने उसके के माता-पिता को बताया कि वह सेक्सुअली एक्टिव थी। 2018 की एक रिपोर्ट में, एक गयनेकोलॉजिस्ट ने एक महिला को उसके माता-पिता को यह बताने की धमकी दी कि वह सेक्सुअली एक्टिव थी।
इससे संबंधित समस्याएं
कई OB-GYN अविवाहित होने पर एक महिला के बच्चे को अबो्र्ट(गर्भपात) करने से इनकार करते हैं। नतीजतन, असुरक्षित अबॉर्शन की दर हमारे देश में महिलाओं के जीवन को खतरे में डालते हुए एक उच्च शिखर पर है। इसके अलावा, कई महिलाओं को इस बात की जानकारी नहीं होती है कि वे PCOD से पीड़ित हैं क्योंकि उनमें से ज्यादातर गयनेकोलॉजिस्ट के पास जाने से आशंकित थीं। स्वास्थ्य जोखिम से ज्यादा महिलाएं गयनेकोलॉजिस्ट के सवालों और जांच से डरती हैं।
लेकिन क्या यह उचित है? क्या महिलाओं को बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से चिकित्सा सहायता लेने का अधिकार नहीं है? सेक्सुअली एक्टिव होने को मेडिकल के बजाय नैतिक लेंस से क्यों देखा जाता है? क्या डॉक्टरों को समाज के स्टिग्मा और स्टीरियोटाइप को अपने रोगियों के साथ अपने संबंधों को प्रभावित करने देना चाहिए? क्या यह डॉक्टर की भूमिका नहीं है कि वह विज्ञान के अपने विशाल ज्ञान का उपयोग करके लिंग भेदभाव को कम करें?
कंट्रासेप्शन लेने के मामले में भी वैवाहिक स्थिति आवश्यक नहीं है। डॉक्टर ने अपने ट्वीट में कहा कि वह एक मरीज की वैवाहिक स्थिति के आधार पर परमानेंट और टेम्पोरेरी कंट्रासेप्शन की सलाह देती हैं। लेकिन क्या यह इस स्टीरियोटाइप को नहीं दिखाता है कि केवल विवाहित जोड़े ही परमानेंट कंट्रासेप्शन ले सकते हैं? क्या कंट्रासेप्शन का प्रकार वैवाहिक स्थिति के बजाय महिला की पसंद पर निर्भर नहीं होना चाहिए?
अमेरिका में गर्भपात कानूनों का पलटना इस बात का उदाहरण है कि कैसे नैतिक नियम चिकित्सा आवश्यकताओं से पहले होती हैं। भले ही हम भारतीयों के पास एबॉर्शन कानून हैं, लेकिन हमारा भाग्य अमेरिका में महिलाओं से अलग नहीं है।
डॉक्टरों को सामाजिक स्टीरियोटाइप्स को अपनी चिकित्सा पर हावी होने देना बंद करना चाहिए।