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हम महिलाओं को उनके रिलेशनशिप स्टेटस पर क्यों जज करते हैं?

रिश्ता, शादी, सिंगल या तलाकशुदा... किसी भी महिला से उसकी पहली मुलाकात में, बातचीत का एक अनिवार्य हिस्सा यही होता है। उसके रिलेशनशिप स्टेटस की जांच-पड़ताल जैसे कि उसकी पहचान का ही एक हिस्सा हो। लेकिन क्या यही सही है?

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Vaishali Garg
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Why daughters have to face more comments than praises?

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Why Do We Judge Women On Their Relationship Status? रिश्ता, शादी, सिंगल या तलाकशुदा... किसी भी महिला से उसकी पहली मुलाकात में, बातचीत का एक अनिवार्य हिस्सा यही होता है। उसके रिलेशनशिप स्टेटस की जांच-पड़ताल जैसे कि उसकी पहचान का ही एक हिस्सा हो। लेकिन क्या यही सही है? क्या किसी महिला की ज़िंदगी की सार्थकता या सफलता का पैमाना सिर्फ उसका रिश्ता है? आइए, इस जटिल सामाजिक मुद्दे की तह तक जाएं और समझें कि आखिर हम महिलाओं को उनके रिलेशनशिप स्टेटस पर क्यों जज करते हैं?

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समाज का घिसा-पिटा नज़रिया

शुरुआत करते हैं ज़मीनी हक़ीक़त से। हमारे समाज में महिला की पहचान, बड़े हद तक, उसके रिश्तों से जुड़ी होती है। शादी से पहले "बेटी", शादी के बाद "पत्नी", बच्चों के बाद "माँ" - ये लेबल उसकी ज़िंदगी को परिभाषित कर देते हैं। ये सोच कि एक "पूरी" ज़िंदगी के लिए रिश्ते ज़रूरी हैं, महिलाओं पर अदृश्य दबाव बनाता है। इस हवा में हर अविवाहित महिला "अधूरी" या "फेल" साबित हो जाती है।

आज़ादी का डर, नियंत्रण की चाहत

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अविवाहित महिलाओं का स्वतंत्र होना, समाज के एक बड़े तबके को असहज करता है। वो पुरुष प्रधान व्यवस्था, जिसमें महिलाओं को निर्णय लेने का कम हक़ होता है, उनपर नियंत्रण रखना चाहती है। रिलेशनशिप स्टेटस को लेकर जज करना इस नियंत्रण को मज़बूत करने का एक ज़रिया बन जाता है। शादी का दबाव डालकर या अविवाहित होने पर ताने मारकर महिलाओं को "सही रास्ते" पर लाने की कोशिश की जाती है।

नज़रिए में बदलाव की लहर

हालांकि, ये तस्वीर पूरी तरह से निराशाजनक नहीं है। शिक्षा, आर्थिक स्वतंत्रता और सोशल मीडिया के ज़रिए ज़रूरी बदलाव की लहर भी उठ रही है। महिलाएं अब खुलकर अपनी आवाज़ उठा रही हैं, सामाजिक बंधनों को तोड़ रही हैं और "सिंगलहुड" को ज़िंदगी का ख़ूबसूरत पहलू मान रही हैं। ये बदलाव धीरे-धीरे ही सही, पर समाज की सोच को बदल रहा है।

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खुद को रि-डिफाइन करें

अगर आप एक अविवाहित महिला हैं और समाज के जजमेंट से जूझ रही हैं, तो ये ज़रूरी नहीं कि आप चुप रहें या दबावों के आगे झुकें। यहां कुछ टिप्स, जो आपको मदद पहुंचाएंगी:

अपनी पहचान खुद बनाएं: आप अपने रिश्तों से ज़्यादा हैं। अपने काम, शौक और ज़िंदगी के मकसदों पर फोकस करें। वही आपकी असली पहचान है।

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सकारात्मक रहें: समाज के नकारात्मक रवैये को अपनी खुशियों को प्रभावित न होने दें। ख़ुद के साथ ख़ुश रहें और अपनी ज़िंदगी को एन्जॉय करे।

पॉज़िटिव रिलेशनशिप बनाएं: अपनी ज़िंदगी में सपोर्टिव दोस्तों और परिवार का एक मज़बूत नेटवर्क बनाएं। ऐसे लोग जो आपको बिना शर्त स्वीकारें और आपकी ज़िंदगी के फैसलों का सम्मान करें।

किसी महिला को उसके रिलेशनशिप स्टेटस के आधार पर जज करना पितृसत्तात्मक सोच का नतीजा है। यह न सिर्फ महिलाओं के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए हानिकारक है। हमें इस सोच को बदलने की ज़रूरत है और महिलाओं को उनकी ज़िंदगी को अपने हिसाब से जीने का अधिकार देना चाहिए। आखिरकार, खुशहाली और सफलता किसी रिश्ते की स्थिति से तय नहीं होती, बल्कि उनके जीवन के हर पहलू में संतुलन और खुशी से तय होती है।

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