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देर रात में महिलाओं के लिए कर्फ्यू लेकिन लड़के आराम से घूम सकते हैं, ऐसा क्यों?

एक महिला बचपन से ही रोक-टोक की जिंदगी जीना शुरु कर देती है। उसे बहुत छोटी उम्र में ही बता दिया जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं। जब कोई महिला उन कामों को करना चाहती है जिनकी उन्हें मनाही हैं, तब वह महिला किसी को अच्छी नहीं लगती।

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Rajveer Kaur
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night travel (Freepik)

Curfew For Women Late At Night But Boys Can Come Freely (Image Credit: Freepik)

Late Night Curfew For Women But Boys Can Come Freely: एक महिला बचपन से ही रोक-टोक की जिंदगी जीना शुरु कर देती है। उसे बहुत छोटी उम्र में ही बता दिया जाता है कि क्या करना है और क्या नहीं। जब कोई महिला उन कामों को करना चाहती है जिनकी उन्हें मनाही हैं, तब वह महिला किसी को अच्छी नहीं लगती। समाज के द्वारा उसे कैद करने की और रोकने की कोशिश की जाती है। ऐसी ही एक स्थिति का ज्यादातर महिलाओं को सामना करना पड़ता है वो है कि रात के समय महिलाओं को घर आने का एक समय दिया जाता है और उस समय से उन्हें घर आना पड़ता है। इस व्यवहार का कारण महिलाओं की सेफ्टी को बताया जाता है जिस कारन उन्हें रात होने से पहले घर आने के लिए कहा जाता है। लेकिन लड़कों के लिए ऐसा कोई समय नहीं होता। क्यों यह दोगलापन है, आज इसके बारे में बात करेंगे। 

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देर रात में महिलाओं के लिए कर्फ्यू लेकिन लड़के आराम से घूम सकते हैं, ऐसा क्यों?

महिलाओं का नाईट ट्रेवल बहुत कम 

भारत में बहुत कम  महिलाएं हैं जो रात को घर से बाहर निकलती है, जॉब करती है, ट्रैवल करती है या एक जगह से दूसरी जगह जाती है। एक समस्या यह भी है कि बहुत से घरों में उन्हें इजाजत नहीं मिलती और जो महिलाएं इंडिपेंडेंट हैं, समाज या फिर आसपास का माहौल ऐसा होता है कि वह निकल ही नहीं पाती। ऐसे बहुत सारे पीजी और रूम भी हैं जो महिलाओं को वापिस आने की डेडलाइन देते हैं। अगर कोई महिला रात को घर पर आती है तो उसके कैरेक्टर पर भी सवाल उठाए जाते हैं। मां-बाप की बच्चियों को रात को बाहर इसलिए घूमने नहीं जाने देते एक तो सुरक्षा का मुद्दा है लेकिन असली कारण यह है उन्हें समाज का डर है कि लोग क्या कहेंगे। 

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समाज और परिवार का दोगलापन

इसमें समाज और परिवार का 'दोगलापन' दिखता है। मर्दों के साथ भी रात को घटनाएं हो सकती है लेकिन उन्हें कभी रोका नहीं जाता। ऐसा इसलिए है वो मर्द है, ज्यादा शक्तिशाली है और ऊपर से उनके ऊपर घर का इज्जत का बोझ भी नहीं है। इस मर्द प्रधान समाज में उन्हें कोई रोक नहीं सकता। उनसे तो यह भी नहीं पूछा जाता कहां जा रहे हो। हर सवाल महिलाओं से किया जाता है। घर से निकलने से पहले उन्हें कई सवालों से गुजरना पड़ता है जैसे कैसे कपड़े पहन कर बाहर जा रही हो? तुम्हारा बदन पूरा ढका होना चाहिए। अगर मर्द 'शॉर्ट्स' पहन कर जा रहा है तो वह 'ओके' है। उसमें कोई बुराई नहीं है। अगर वही महिला ने छोटे कपड़े पहन हुए है तो उसे परीक्षा देनी पड़ेगी। लोगों के सवालों का जवाब देना पड़ेगा। कहा जाएगा ऐसे कपड़े पहनने की क्या जरूरत है? रात में अगर कपड़े छोटे पहन कर लड़की बाहर थी और दुर्भाग्यवश उसका रेप हो गया उसका दोष महिला के ऊपर थोपा जाएगा। 

नजरिया बदलने की जरुरत 

हमें यह 'दोगलापन' छोड़ना होगा और अपनी सोच बदलनी होगी। महिलाओं को सिर्फ इसलिए रात के समय बाहर नहीं जाने से रोकना चाहिए कि सेफ्टी कंसर्न है या फिर लोग क्या कहेंगे? यह महिला की खुद की चॉइस है। हमें रोकना उन लोगों को चाहिए जो महिलाओं के साथ ऐसे कर्म करते हैं। समाज में शर्म उनको आनी चाहिए। उस महिला को नहीं जिसके साथ यह गलत हुआ है। उसमें उसका कोई दोष नहीं है। 

महिलाओं के लिए कर्फ्यू
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