Why Is Categorization Of Jobs On The Basis Of Genders Unconventional: भारत जैसे देश में जहाँ मेल टू फीमेल रेश्यो में काफी फ़र्क़ है, ऐसे में जॉब्स को भी सदियों से चलते आए पैट्रिआर्केल और सोसाइटल नॉर्म्स के हिसाब से महिलाओं और पुरुषों में बाँट दिया गया है। ज़्यादा स्ट्रांग डिशन्स लेने वाले जॉब्स को, बहार जाने वाले जॉब्स को और एक्सट्रीम फाइनेंसियल जॉब्स को मर्दों का बना गया है वहीँ दूसरी तरफ, फैशन, ब्यूटी, मेकअप, एन्तेर्तैन्मेंट को महिलाओं का फोर्टे कहा जाता है। लड़के के पैदा होने पर इंजीनियर और लड़की के डॉक्टर वाली लाइन तो हम कबसे सुनते आये हैं। ये विचार धरा की कोई भी जॉब सिर्फ एक इंसान या एक जेंडर के लिए सूटेबल होता है, ये एक बहुत बड़ा मिथ है जिसे तोड़ने वाले लोग देश में हमेशा से रहते आये हैं।
क्यों जॉब्स को Gender के बेसिस पर कटेगोराइज़ करना गलत है?
पहले के ज़माने में ऐसे कईं सारे जॉब थे जो सिर्फ पुरुष या सिर्फ स्त्री ही कर सकते थे और वो इसलिए क्यूंकि तब कोई दूसरा जेंडर अगर उस काम को करता तो उसे कईं किस्म के ताने और ज़िल्लत सहनी पड़ती होती। बिज़नेस वाले जॉब्स, सेल्स, रियल एस्टेट, कंस्ट्रक्शन, कॉन्ट्रैक्टर, और यहाँ तक की देश की हिफाज़त करने वाले डिफेंस में भी महिलाओं का ना आना एक बहुत बड़ा स्टीरियोटाइप था जिसे तोडा तो गया लेकिन अभी तक लोगों के दिमाग से वो सोच निकालना मुश्किल रह चूका है।
ये सोच की कोई भी काम ऐसा होता है जो कोई एक जेंडर ही करने के लिए शक्षम होता है, बिलकुल ही गलत है। हम नहीं जान सकते हैं की कौनसा इंसान किस काम के लिए कितना टैलेंट होल्ड करता है। देश के मशहूर शेफ पुरुष भी हैं। देश का सबसे बड़ा डिज़ाइनर भी एक पुरुष है। देश की प्रेसिडेंट महिला है, देश की फाइनेंस मिनिस्टर एक महिला है। ऐसे कितने ही बड़े एक्साम्प्लेस हम देखते हैं और छोटे एक्साम्प्लेस हम देख कर भी नज़रअंदाज़ कर देते हैं। इसी बात को साबित करता है की कला किसी के पास भी हो सकती है और यदि उसे शरीरों और गेंडेरों में सिमित किया जाएगा तो देश का विकास भी अपने चरम सीमा तक नहीं पहुंच पायेगा।