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Periods को लेकर पुरुषों का संवेदनशील होना क्यों है जरूरी?

ओपिनियन: इसमें सबसे बड़ी पहल पुरुषों को करनी चाहिए। उन्हें खुलकर इस बारे में बातें करनी होगी। जब वह पीरियड्स को लेकर संवेदनशील होंगे तो खुद महिलाएं भी इसे लेकर सहज हो पाएंगी और अपनी बात को बेझिझक सामने रख पाएंगी।

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Ruma Singh
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पीरियड्स को लेकर पुरुषों का संवेदनशील होना क्यों हैं जरूरी

Why Is It Important For Men To Be Sensitive About Periods? पीरियड्स हमारे समाज में एक ऐसा विषय है। जिसके संबंध में आज भी खुलकर बात नहीं की जाती। आज भी लोग इस विषय पर बात करना शर्म या गलत समझते हैं। हमेशा से ही पीरियड एक टैबू रहा है। चाहे स्कूल हो, घर हो, समाज हो या दफ्तर लेकिन आखिर क्यों? जिस स्त्री शरीर के प्रति पुरुष इतने आकर्षित होते हैं। जिसे प्रेम करने का दावा करते हैं। वह उस शरीर के बारे में कितना जानते हैं। यह पुरुष वर्ग के लिए खुद में एक बड़ा सवाल है। जिसका जवाब चुप्पी है। आज भी कई ऐसे पुरुष हैं, जो औरत के शरीर से जुड़ी किसी भी बीमारी को जानने का इच्छुकता नहीं रखते, क्योंकि उनके अनुसार इसका संबंध औरत के शरीर से है। जो इस पितृसत्तात्मक समाज में औरत से जुड़ी हर बात हमेशा शर्म और डर की बात ही रही है। जो कि गलत है, क्योंकि यह सुंदरमय देन तो प्रकृति का है। इस पर ग्लोरिया स्टाइनम ने बड़ी खूब लिखा है कि “अगर प्रकृति ने ऐसा बनाया होता कि पीरियड पुरुषों को होते तो यही प्राकृतिक क्रिया ताकत और मर्दानगी का प्रतीक होती।” हालांकि, पहले की तुलना से हालात बदले हैं। पहले तो स्त्रियां दूसरे से तो दूर खुद से भी बात नहीं कर पाती थी, लेकिन आज भी पीरियड्स में पुरुषों की कोई भूमिका उतनी दिखाई नहीं देती।

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पीरियड्स को लेकर पुरुषों का संवेदनशील होना क्यों हैं जरूरी?

बचपन से हम देखते आए हैं कि पीरियड्स को लेकर बातें भी घर में मां ही करती हैं। इसमें घर में मौजूद पिता व भाई की कोई भूमिका नहीं होती, जो कि गलत है। जिसके पीछे सबसे बड़ी बाधा रूढ़िवादी सोच है। जिस कारण पुरुषों की कोई भूमिका नहीं दिखती। यूनिसेफ के रिपोर्ट के मुताबिक केवल 13 फ़ीसदी लड़कियां ही पीरियड्स के होने के पहले पीरियड्स के बारे में जानती हैं, जो कि एक बड़ा मुद्दा है कि महिलाओं में भी इसे लेकर उतनी जागरूकता नहीं है, तो ऐसे में महिलाएं पुरुषों के समक्ष कैसे सहज महसूस करेंगी? कैसे वो अपनी बात रख पाएंगी? इसमें सबसे बड़ी पहल पुरुषों को करनी चाहिए। उन्हें खुलकर इस बारे में बातें करनी होगी। जब वह पीरियड्स को लेकर संवेदनशील होंगे तो खुद महिलाएं भी इसे लेकर सहज हो पाएंगी और अपनी बात को बेझिझक सामने रख पाएंगी।

शहरी इलाकों के तुलना में ग्रामीण इलाकों में आज भी यह बड़ी समस्या है, लेकिन यदि पुरुष इसकी पहल करें तो स्थिति में कुछ हद तक सुधार आ पाएगा, क्योंकि आज भी पुरुष प्रधान समाज में खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में पुरुषों के बात का प्रभुत्व कायम हैं। इसके लिए हर पुरुष को अपने घर में पीरियड्स को टैबू ना बनाकर खुद को जागरूक करना होगा और महिलाओं के साथ पीरियड्स को लेकर खुलकर बातें करनी होगी। ऐसा करने से महिलाओं की स्थिति में सुधार आएगा। उन्हें पीरियड्स जैसे जटिल वक्त में भावनात्मक समर्थन मिलेगा और उन्हें अपवित्र नहीं समझा जाएगा। साथ ही समाज में मौजूद पीरियड्स मिथ्स भी दूर होंगे, क्योंकि आज भी कई मिथक चीजें कायम हैं, जो महिलाओं को शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तौर पर प्रभावित करती हैं, इसलिए जरूरी है कि पीरियड्स पर खुलकर बातचीत की जाएं। इसकी शुरुआत हर महिला को अपने घर से करनी होगी। इस बारे में सिर्फ लड़कियों को जागरूक न करके घर में मौजूद हर पुरुष को भी जागरूक करने की पहल करनी होगी।

पीरियड्स periods मानसिक और शारीरिक पितृसत्तात्मक समाज
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