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अपनी ज़िंदगी, अपने फैसले, फिर भी महिला के हर कदम पर क्यों बरसते हैं सवाल ?

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लिए जाने वाले निर्णयों को लेकर औरतों को अक्सर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ता है। ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। इस विषय पर बात करना ज़रूरी है। जानें अधिक इस ओपिनियन ब्लॉग में-

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Vaishali Garg
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Why daughters have to face more comments than praises?

Why Women Decisions Are Often Criticized? रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लिए जाने वाले निर्णयों को लेकर औरतों को अक्सर पुरुषों की तुलना में ज़्यादा आलोचना का सामना करना पड़ता है। ये एक ऐसी सच्चाई है जिसे नज़रअंदाज़ करना मुश्किल है। इस विषय पर बात करना ज़रूरी है क्योंकि ये असमानता समाज में पनप रही गलत सोच का नतीजा है।

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अपनी ज़िंदगी, अपने फैसले, फिर भी महिला के हर कदम पर क्यों बरसते हैं सवाल ?

कहाँ से आती है ये आलोचना?

इस आलोचना की जड़ें सदियों पुराने पितृसत्तात्मक समाज में निहित हैं। जहां एक तरफ पुरुषों को निर्णय लेने का हक़ दिया जाता है वहीं दूसरी तरफ औरतों की क्षमता पर लगातार सवाल उठाए जाते हैं। ये सोच पैदा की जाती है कि औरतें भावनाओं में बहकर फैसले लेती हैं या फिर उनकी समझदारी पुरुषों के बराबर नहीं होती।

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इसके अलावा समाज में बने हुए ख़ास नियम औरतों की स्वतंत्रता को सीमित करते हैं। उदाहरण के लिए औरतों के कपड़ों, उनके घूमने-फिरने, देर रात तक बाहर रहने, करियर चुनने, शादी करने या न करने जैसे मामलों में अक्सर दख़लअंदाज़ी की जाती है। इन नियमों को तोड़ने पर ही औरतों पर आलोचनाओं का तूफान टूट पड़ता है।

कैसे बदलें ये सोच?

इस असमानता को कम करने के लिए ज़रूरी है कि समाज की सोच बदले। हमें ये समझना होगा कि औरतें भी समझदार इंसान हैं जिन्हें अपने जीवन के बारे में खुद फैसले लेने का हक़ है। किसी भी निर्णय के लिए उनकी आलोचना करना सही नहीं है।

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इस बदलाव के लिए ज़रूरी है कि:

बच्चों की परवरिश में बराबरी का हक़ दिया जाए: लड़कों और लड़कियों की परवरिश में भेदभाव न किया जाए। दोनों को आत्मनिर्भर बनने और अपने निर्णय लेने की क्षमता विकसित करने का मौक़ा दिया जाए।

शिक्षा का महत्व समझा जाए: शिक्षा समाज में बदलाव लाने का सबसे शक्तिशाली हथियार है। लड़कियों की शिक्षा पर ज़ोर देकर और उन्हें हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।

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सोशल मीडिया की ज़िम्मेदारी: सोशल मीडिया को ऐसे कार्यक्रम और कहानियां दिखानी चाहिए जो औरतों को सशक्त बनाएं और उनकी उपलब्धियों को उजागर करें। साथ ही औरतों के ख़िलाफ़ रूढ़िवादी सोच को बढ़ावा देने वाली सामग्री से बचना चाहिए।

कानून का सख़्ती इस्तेमाल: औरतों के ख़िलाफ़ होने वाले भेदभाव और हिंसा के ख़िलाफ़ सख़्त कानून बनाए जाने चाहिए और उनका सही तरीके से पालन होना चाहिए।

ये छोटे-छोटे कदम मिलकर समाज में एक बड़ा बदलाव ला सकते हैं। हमें ये याद रखना चाहिए कि औरतें समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनके निर्णयों का सम्मान करना हमारी ज़िम्मेदारी है। आइए सब मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जहां औरतें बिना किसी आलोचना के अपने सपनों को पूरा कर सकें।

 

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